साहित्य

द्वी माणी घी (गढवाली कहानी ) मनखी की कलम से

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  मदन भैजी फौज बिटी रिटायर आण से पैली देहरादून मा एक 140 गज प्लॉट लिये छ्यायी। चैता बौ मदन भैजी पैथर पड़ी छेयी कि रिटायरमेंट आण से पैल देहरादून बालावाला मा कूड़ बणै द्याव। गॉव मा मदन भैजी ददा सौकार छयायी। मदन भैजी सौकार ददा एक ही नाती छ्यायी। सौकार जी लोग तै ब्याज पर रूप्या दींद छ्यायी, वैक बदल मा भली सी पुंगड़ी गिरवी रखी दीदं छ्यायी, कैन वापिस करी द्यायी त ठीक छ, नीथर वा पुंगड़ी पर अपर हळ तांगळ कन शुरू करी दींद छ्यायी। ये कारण गौ कि सरा बढिया पुगंड़ी सौकार ददा की छेयी। गॉव मा सबसे बढिया तिवरी भी मदन भैजी होरू की छेयी, सरा गौं की बरात उंकी तिवरी मा बैठदी छेयी। ये कारण सरा गौं मा सौकार ददा खूब रूतबा छ्यायी। मदन भैजी पिताजी भी गॉव मा मास्टर छ्यायी लेकिन उ कम उमर मा ही गुजर गे छ्यायी। मदन भैजी बगत पर  फौज मा भर्ती व्हे गेन तब जरा लगी कि अब या मवसी फिर पैल जणी व्हे जाली।
   मदन  भैजी ब्यौ चैता बौ दगड़ी व्हे ग्यायी, मदन भैजी मॉ सब पुंगड़ नी कर सकदी छेयी त कुछ पुंगड़ अर डाळ गॉव द्युरणी अर जिठणी तै देन देन, वैक बदल मा पुंगड़ त्याड़ अर डाळू घास कटण बदल मा द्वी माणी घी मील जांद छ्यायी। द्वी माणी घी मदन भैजी कुणी घर्यू रैंद छ्यायी। मदन भैजी ब्यो बाद नाती नतणा व्हे गीन तब एक माणी घी नाती नतणों काम आंद छ्यायी बकै मदन भैजी जब छुट्टी आंद छ्यायी तब वै घी तै खांद छ्यायी।
   मदन भैजी अब देहरादून व्हाळ व्हे ग्यायी, गॉव कब्बी द्यवता पूजण, कबरी ब्यो बरात, या क्वी भलू नखुरू काम बाना भी गौं मा आणी जाणी कनू रैंद।ू चैता बौ मदन भैजी कुणी जाण बगत बोल दींद कि जू हमर घास डाळ कटण यूं मनन घी लाण नी भुलीन, अग्यर त्याड़ बदल प्याज, ल्यासण जू भी व्हाल जरूर लयेन, ये पर हमर हक छ, हमरी कूड़ी पुंगड़ी खाणा छन। मदन भैजी बुलद छ्यायी कि कथुग दिन चलण वै प्याज ल्यासणन, बाकि त सब्बि कुछ मोल खाणा छवां ये तै भी खै ल्योला, मी न बोल सकदू कै कुणी कि त्याड़ द्याव। यी बात पर द्वीयूं मा खूब तुड़ाबुड़ी व्हे जांद।
   चैता बौ मंगतू तै पुंगड़ अर डाळ देकन अयीं छेयी, मंगतू ब्वारी नीला हर बगत त्याड़ क गहथ, उड़द देदीं छेयी, अर डाळ बदल मा द्वी माणी घी। यीं बार ना उ़ड़द गहथ व्हेन अर ना भैंस अर गौड़ी लैंदी भी नी छेयी, येकी गौड़ी दूध दीणा छेयी, उ भी चाय मा ही पूर व्हे जांद छ्यायी। मंगतू ब्वाल यीं बार ना त नाज पाणी व्हे अर ना घी छ, त्याड़ अर डाळू बदल त कुछ दीण छा, परसी मदन भैजी फोन अयूं छ्यायी कि मी घर आणू छौं। नीला ब्वाल एक अधूड़ी घी, छ जरा बीज कुणी गहथ छन उ मननी द्वी माणी दे द्यौला,  बकै बीज बुतै बगत कै मनन पैछूं ले ल्यौला।
  मदन भैजी द्वी दिन बाद गौं ऐन, ब्यखन बगत रूटी मंगतू कि यख खायी, नीला रूटी खाण बगत बोली द्यायी कि जेठाजी यीं बार ना त दाळ गहथ व्हायी, अर भैंस भी अजों गैबण हुयीं छ, राजी खुशी बिये जाली तब घी दे द्योला, मदन भैजी ब्वाल क्वी बात नी ब्वारी तुमर द्वार मोर भी खुल्या रंदीन यी बौत छ। नीला न एक अधूड़ी घी अर द्वी माण गहथ, दाळ, जरा, चून मदन भैजी बैग मा जांद बगत धरी द्यायी।
मदन भैजी जब देहरादून आयी, ब्यखन बगत चैता बौ ना बैग बिटी एक अधूड़ी घी, दाळ अर गहथ देखीकन ब्वाल की ये साल पुंगड़ी बांझी पड़ी गे होलू, अर डाळ पर भी घास नी व्हे होलू, यी क्या छ दियूं वीं नीला, ये तै भी दीणा क्या जरूरत छेयी, अहसान कना कुणी।  ये से बढिया त बांझ ही खूब छे पुंगड़ी। चैता बौ तै भारी गुस्सा अयूं छ्यायी।
जेठ मैना गॉव मा साझू द्यवता पुजै छेयी, चैता बौ भी जाणा कुणी तैयार व्हेगे अर विशेषकरी कन यीं बार त्याड़ ल्याणा कुणी अर डाळ दुसरी मौ तै द्याणा बाना जाणी छेयी, पूजा त सिरफ बाना बणी गे छ्यायी गौ जाणा कुन। मदन भैजी अर चैती बौ द्वी झणी गॉव पौछ गेन, मंगतू घर जैकन अपर घर द्वार मोर खुलीन, भीतर साफ करीयू छ्यायी अर म्याळू मोळ माट न सुंदर करी कन लिप्यूं छ्यायी। नीला तै जब भी बगत मिलदू छ्यायी त वा मदन भैजी भीतर भी साफ सफे अर लिपण पुतै करणा रैंदी छेयी।
रात मा देवी मन्नाण लगी, सुबेर पुजै व्हायी दिन खाणू सरा गौं कठ्ठी छ्यायी। ब्यखन बगत नीला न कुणी प्याज बुज्जी अर दाळ बणायी, चैता बौर अर मदन भेजी कुणी ब्वाल की इखमी रूट्टी खाण, सुबेर नाश्ता भी इखमी कन। चैता बौ ब्यखन बगत इने उने बात करी, त्याड़ बाना कुई बात नी व्हे, नीला अपर समझी कन सेवा पाणी कनी रायी। नीला न अपर तरफ बिटी बोली द्यायी कि दीदी यीं बार तुमर त्याड़ भी रै ग्यायी। अधूड़ी घी दे छ्यायी उ डाळू नी छ, उ मीन अपर तरफ बिटी द्यायी। पिछल साल बिज्जां बरखा व्हेन उड़द गहथ फूल सब साफ व्हेगेन फसल नी व्हे। ये साल व्हे जाल त दुगणू करी कन दे द्योल।
चैता बौ ना ब्वाल भुली जू व्हायी सी व्हायी पर  ब्याळी रूकमा भुली बुनी छेयी कि दीदी पुंगड़ अर डाळ हम तै दे द्याव मी भी हॉ बोली कन ऐ ग्यों।  चैता बौ त पैली बिटी मन बणै कन अयीं छेयी, बस बाना चियाणूं छ्यायी सी मिली ग्यायी। नीला न ब्वाल दीदी डाळ पुंगड़ सब्ब तुमर जै तै दीणा तुम दे देन, हम ना किलै बुलण पर तुम नाराज नी व्हेन, ये साल त्याड़ जरूर बौड़ै द्योल। मंगतू बुल्यां पर नीला न सुबेर नाश्ता पाणी भी बणै द्यायी, मन मा कनी जरा नखरू लग छ्यायी।
मदन भैजी अर चैता बौ देहरादून ऐ गेन, इना रूकमा न भी द्वी मैना तकन डाळ कटीन वै बाद वा भी नौन पढाणा कुणी  किराया कमरा पर ़ऋषिकेश ऐ गे। चैता बौ की पुंगड़ी बांझ ही रै गेन। चैता बौ तै जब पता चली त बड़ू गुस्सा आयी फिर स्वाच कि गलती मेरी हे छेयी जू मी होरू बखलाण मा ऐ ग्यों। अब शरम व्हेगे छेयी, मंगतू अर नीला कुणी भी बुलणा हिम्मत नी हूणा छेयी, कै गिच्चा न बुलण छ्यायी अफीकी ना बोली कन अयीं छेयी। बरसात बाद मदन भैजी अर चैता बौ द्वी घर गेन, ताळू खोली त सरा भीतर पर सिलकाण आणी छेयी, दीवार पर सीलण अलग, चौक मा घुण्ड घुण्ड घास हुयूं छ्यायी।  पैल नीला साफ सफै कनी रैंदी छेयी, अब वी न भी गुस्सा मा सब्ब कन छोड़ी देयी।
पुंगड़ पर घास जम्यूं छ्यायी अर डाळ पर सरा सिरळू लगल लिपटयां छ्यायी। बांझ पुंगड़ी देखीकन रूण आणा छ्यायी, मंगतू अर नीला कम से कम हळ लगै पुंगड़ू चळदू कर्यूं रैंद छ्यायी पर आज बांझ देखी कन भारी गुस्सा आणू छ्यायी। देहरादून वापिस आयी चैता बौ कुणी ब्वाल कि ना त्यार बसोग हळ फाळ कन ना म्यार बसोक, जन पैल चलणा छ्यायी तनी चलण देयी, मंगतू अर नीला तै बिना त्याड़ की कन दे। मी गॉव देखी कन आणू छौं, जन पुंगड़ी बांझ पड़ी गेन उं तै देखीकन त अब लगणू कि हम तै ही मंगतू तै कुछ दीण चियांद उं पुंगड़यूं तै आबाद कना कुणी। चैता बौ न ब्वाल लीण दीण त कुछ नी च, बांझ पड़या छन बांझ ही रण द्याव।
मदन भैजी नी मानी, अपर सौकार ददा बात याद ऐ ग्यायी कि बुब्बा पुरखू पुंगड़ी तै पैल त बचै कन राखो, ब्याचो ना उमा एक द्वी होर जोड़ द्याव, नवा कै बगत बेगत काम ऐ जाव। अपर चीज अपर हीं हूंद। मदन भैजी अब मंगतू तै कबरी हळ फाळ कना द्वी हजार रूप्या दे दीं छ्यायी जब भी गॉव जांद छ्यायी त एक द्वी बोतल व्हिस्की  लेकन चली जांद र मंगतू दगड़ी बैठीकन पे ले करदू। आण बगत मंगतू तै समझै द्यांद भुला जब तकन मी बच्यूं छों तबरी तकन ते से जथुग व्हे सकदू, यूं घर नजीक पुंगड़यूं तै बांझ नी छोडी।

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