बूढ़ बुढ्यो खैरी ( गढ़वळी कहानी) मनखी की कलम बिटी।
बिंद्रा दादी न अपर नौन श्यामू कुणी टक लगे फोन करि ,हे श्यामू त्वेन ये साल रूड़ी छुट्टी मा नाती नत्योंण तै घर किले नि भेजी, त्यार बुब्बा सारू लग्यू छ्यायी कि श्यामू नौन ऐ जांद त जरा घर मा उदंकार ह्वे जांद। ब्वारी भी द्वी चार दिन हमरी दगड़ी रै जांदी, बच्चा भी तिमला, बेडू, हिसर, खै ल्यान्द, त्वे कुणी भी जरा सत्तू बणे धर्यू च, बिंद्रा दादी न इख़री सांस मा बोलि द्यायि।
श्यामू ब्वाली कि हे ब्वे जू त कनि बूनू छ्यायी, टक त मेरी भी लगी छेयी घर आण कि पर जरा सोनू अर स्मिता अजकली एक्स्ट्रा क्लास चलनी छन, एक द्वी दिन बाद दिखलू।
बिंद्रा दादी न ब्वाल बाबा द्वि चार दिने छुट्टी लेकन ऐ जैयी, परसे बथाव मा जरा मुंडळ पटळ उड़ी गीन, वे मना कुणी प्लास्टिक लये, ये साल इनी दिन काटी ल्योला। एक होर गैस सिलेंडर लीण, म्यार बसोक नि छ रंयू चुल्लू पर बसगाळ मा फूक मन्न। बाबा ब्वारी तै भी लयेई, भैर भीतरी जरा लीपि देलि, दिवाल पन बीड़ा निकळी गीन।
श्यामू ब्वाल अभी दिखलू फिर जन सज बैठल तन कोशिश करलू घर आणा बाबत।
इने श्यामू बुब्बा न वेकि ब्वे त पूछी कि आणू च श्यामू छूट्टी लेकन घर, जरा मिल अपर आंखयु पर चश्मा लगोण छ्यायी, बिंद्रा दादी न ब्वाल अजो पक्कू नि छ।
श्यामू ब्यखन बगत ड्यूटी करि कन घर आयी अर अपरि घरवलि रीता कुणी ब्वाल, ब्वे फोन ऐ छ्यायी घर कब आणा छ्याव सब्बि लोग। इन सुणी कन रीता न ब्वाल घर जैकन नौंन बिगड़ी जदिन, वख सब्बि गढ़वळी मा बुल्दन, अंग्रेजी सफ्फा भुली जै करदन, बड़ी मुश्किल कैरि कन सोनू अंग्रेजी मा बच्याण सिखणु च, सी पट्ट पांच हजार फीस जाणी छ तख एक्स्ट्रा क्लास मा, तुमर तरा प्राइवेट छुटी मुटी नौकरीं नि हूँण वेकि गुजर। उनि स्मिता हैक वसाल 10वी बोर्ड च, घर जैकन यूल बिगड़ी जाण। तुमल जाणे त जाव।
रीता अपर नौंन भविष्य बणाणा खातिर सब्बि छोड़ीं कन्न दगड़ी मा ऐ ग्यायी, ताकि नौंन कान्वेंट मा पड़ी साको। अब श्यामू न ब्वाल ठीक छ, तुम यखी राव, मि द्वि दिन कुणी घर ह्वेकन ऐ जांदू।
द्वी दिन छुट्टी लेकन रात गाड़ी मा बैठिकन ऋषिकेश ऐ ग्यायी, अर घर कुणी साग भुज्जी ल्याई द्वि किलो देसी आम लेन, अर गाड़ी मा बैठिकन घर ऐ ग्यायी। बिंद्रा दादी अधबट मा घड़ों ठंडो पाणी लेकन आयी, जब श्यामू तै इखुलि आन्द देखि त रगर्यान्द आंखयु न सवाल करि म्यार नाती नतयोण कख छन, ब्वे कळगसू प्राण नि माणि अर पूछी द्यायी कि ब्वारी, सोनू स्मिता अब्बी अधबट पर ही छन, मि उ कुणी पाणी लेकन जांदू। श्यामू न ब्वाल उ लोग नि ऐ सकीन, अभी घर चल उकि बात करला। बिंद्रा दादी न बेग मुंड मा धरि अर बाटू हिटणि लगि ग्यायी। रस्ता पर बाँझ पुंगड़यो खैर अफिक सुणाण लगि, बाबा त्यार बुब्बा ल यूँ पुंगड़ी पर अपर हड़क तूड़ीन, अपार सि सब्बि भीड़ा उजड़ी गीन, बिना हळ मोळ कू सब्बि डाळी सुखि कन ठंगर बणी गीन, हम भी यूँ दगड़ी ठंगरा ह्वे ग्यवा। श्यामू चुप सुणनू रायी, वेन दुवार बचन कुछ नि ब्वाल अर एथर पन्न बाटू लग्यू रायि।
श्यामू घर चौक मा आयी केदार ददा हुक्का पर सजला लगाणु छ्यायी, उकि नजर जब श्यामू पर ग्यायी त जरा झुर्री पड़ी मुखड़ी पर जरा सी चलांक ऐ ग्यायी, अर पैथर पन्न नाति नत्योण बाटू हिरणु लगि ग्यायी। कुछ देर बाद निरभगी क्वांसू प्राण रै नि साकी अर पूछी द्याय बाल बच्चा अजो ऐ नि छन। श्यामू न ब्वाल पिताजी यि बार मि इख्लू अयूँ छो। चाय पाणी पेकन थुडा थक बिसराई अर ब्यखन बगत गौ मा सब्यूँ तै मिळणु चली ग्यायी।
सब्बि त मिलिचाली कन आयी वेक बाद ब्यखन बगत रुट्टी खांद बगत श्यामू न ब्वाल तुम भी म्यार दगड़ी दिल्ली चलो, यख क्या कन्न तुमन पड़ी कन, बेर सबेर तबियत खराब ह्वे ग्यायी त ये बसगाळ मा अस्पताल भी कंक्वे ली जांण। ये चिलेन तुम भी परस्यू दगड़ी चलो।
बिंद्रा दादी ब्वाल बाबा हमर बसोग नि च वि दिल्ली गर्मी सण, पट्ट मरी जौला हम्म वख । तीन त गत्ती कन्न खातिर हम तै गोरि घाट भी नि लांण, उख हमरि आत्मा तै चैन नि मिलणु। क्वी बात नि च अपरि कुड़ी मा मरी भी जौला त द्वि दिन बाद हम तै कन्धा त देयी देलि।
केदार ददा ब्वाल बाबा नाति नतयोण भी ए जांद त ठीक ही छ्यायी, हमर त एक खुट्ट घाट मा एक यख छ, ना जाणे कब्ब ऐ जांद वेकू बुलावा। श्यामू कथगा समझाई पर द्वी बूढ़ बुढया नि मणिन।
श्यामू न सुबेर कूड़ मुंडलू मा प्लास्टिक बिछे कन उलण कुलंण पाणी बौल ( कूल) निकाली, फिर एक गैस सिलेंडर व्यवस्था करि अर द्वि चार काम निपटे कन अगल सुबेर बुब्बा तै लेकन ऋषिकेश आयी, एम्स मा आँख दिखे कन, चश्मा नम्बर लेकन हथो हाथ बणवे कन घर ली ग्यायी।
इने बिंद्रा दादी न उड़डू गथू गथूडि, जरा सत्तू, द्वी चार माण घर दाल, प्याज, तिमलु दाणी, आम दाणि खटे कुणी श्यामू बैग मा धरि द्याय। अगल दिन सुबेर श्यामू गाड़ी मा बैठीकन चली ग्यायी।
द्वी मैना बाद सौणा मैना बरखा तड़ लग्या छ्यायी, चिपुल हूंण कारण केदार ददा सीढ़ी मनन लमड़ी ग्यायी अर द्वी खुट्ट टूटि गेन। बिंद्रा दादी अर गाँव एक द्वी लोगू न झकोलि कन उबर खटला मा पड़याळी द्यायि।
बिंद्रा दादी न श्यामू कुणी फ़ोन लगें कि त्यार बुब्बा लमड़ी ग्यायी झट्ट करि कन भोळ सुबेर यख आवा। श्यामू न जनि या बात सुणी झटपट तैयार ह्वे कन्न घर कुणी पैट ग्यायी। जनि सुबेर ऋषिकेश बिटी घर गाड़ी मा बैठ तनि गाँव मदन भैजी फोन ऐ ग्यायी काका नि रायी रे भुला, तकी बिटी गत्ती कना कुणी सामान भी लेकन एई।
अगली दिन सुबेर केदार ददा कि आखिरी बरात निकळी अर बिंद्रा काकि त गम मा रूणा तक नि छेयी, निठणी छेईं, इने रीता , अर द्वी नौंना भी सब्बि क्लास छोड़िकन गाँव ऐ गीन। स्मिता अर सोनू जब ददा फ़ोटो मा माला टकी देखिकन ब्वाल हे दादू हम तै गढ़वली मा कहानी अब्ब कू सुणालू, कू हम तै गढ़वळि बुलंण बच्याण सिखालू, इन बोलि कन तरपर आँसू निकळी गेन, अर अपरि दादी पर भीटे कन खूब रोई, अर बुल्द ग्यायी मि रूड़ी छुट्टी मा पापा दगड़ी ऐ जांद दादाजी मनन द्वी चार कानि सुणी लींद, पर अब अफी उ हमकुणि कानि बणी कन रै गीन।
आज रीता तै अपर बुल्यू याद आणा रायि घर एकन नौंन बिंगड़द छन या सुधरद छन अफ़ू तै पूछणि छ, सैद दादी जी बच्यूं तकन जबाब मिली जाल।
©® @ हरीश कंडवाल ” मनखि कलम बिटी”