उत्तराखंड में मानव-गुलदार में बढ़ता संघर्ष, जानिए कैसे लग सकती है इस पर रोक

उत्तराखंड में मानव-गुलदार में बढ़ता संघर्ष, जानिए कैसे लग सकती है इस पर रोक
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देहरादून। उत्तराखंड में मानव और वन्यजीव संघर्ष लगातर बढ़ता जा रहा है। पिछले कुछ सालों बड़ी संख्या में लोगों ने इस संघर्ष के चलते अपनी जान गंवाई है। वन्यजीवों द्वारा आये दिन हो रहे हमलों के कारण अब मानव भी आक्रामक होने लगा है। पौड़ी जिले के सपलोड़ी गांव की घटना इसका ताजा उदाहरण है। वहां पिंजरे में कैद हुए गुलदार को जिंदा जलाने की घटना आजलक सुर्खियों में बनी हुई है। उत्तराखंड गठन के बाद से अब तक यह ऐसा तीसरा मामला है। इससे पहले धामधार व विकासनगर क्षेत्र में भी ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं। आज के सभ्य समाज में इस तरह की घटनाओं को उचित नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन प्रश्न अपनी जगह कायम है कि शांत स्वभाव वाले यहां के निवासियों में ऐसा गुस्सा क्यों पनप रहा है। इसके लिए कौन जिम्मेदार है। असल में वन्यजीवों विशेषकर गुलदारों के आतंक को लेकर अब पानी सिर से ऊपर बहने लगा है। यद्यपि, मानव-गुलदार संघर्ष थामने को अब तक कई अध्ययन हो चुके हैं, लेकिन रणनीतिक तौर पर धरातल पर ठोस उपाय अभी तक नहीं उतर पाए हैं। अब समय आ गया है कि ऐसी कार्ययोजना धरातल पर उतारी जाए, जिससे मनुष्य व वन्यजीव दोनों सुरक्षित रहें।

यहां से गुजरते समय रहें सतर्क
सावधान, इन दिनों गजराज अत्यधिक आक्रामक दिख रहे हैं। ऐसे में हाथियों के बसेरे वाले क्षेत्र से गुजर रहे हैं तो जरा संभलकर। यानी, अपने आंख-कान पूरी तरह से खुले रखें, इसमें बेपरवाही भारी पड़ सकती है। जी हां, उत्तराखंड में यमुना से लेकर शारदा नदी तक 6500 वर्ग किलोमीटर में फैले हाथियों के बसेरे वाले क्षेत्र में स्थिति ऐसी ही है। दरअसल, वर्तमान में हाथियों का मस्तकाल चल रहा है। इस दौरान प्रजनन को लेकर हाथी काफी आक्रामक रहते हैं और उनमें आपसी संघर्ष सामान्य बात है। इन दिनों हरिद्वार के श्यामपुर क्षेत्र में दो हाथियों के बीच चल रहे संघर्ष ने नींद उड़ाई हुई है। संघर्ष इतना खतरनाक होता है कि कभी-कभी हार न मानने अथवा रण न छोडऩे वाले हाथी को जान तक गंवानी पड़ती है। इस दौरान यदि कोई सामने आया तो…। यानी यह बेहद संवेदनशील समय है, जिसमें हर स्तर पर सतर्कता की जरूरत है।

आखिर कब शिफ्ट होंगे अन्य बाघ
ज्यादा समय नहीं बीता, जब दावा किया गया था किराजाजी टाइगर रिजर्व के मोतीचूर-धौलखंड क्षेत्र में बाघों का कुनबा बढ़ेगा। तय हुआ कि कार्बेट टाइगर रिजर्व से पांच बाघ यहां लाकर छोड़े जाएंगे। मोतीचूर-धौलखंड ऐसा क्षेत्र है, जिसमें राजाजी की चीला रेंज से बाघ नहीं आ पाते। कारण है रिजर्व के मध्य से गुजर रही गंगा नदी और राष्ट्रीय राजमार्ग व रेलवे लाइन। ऐसे में मोतीचूर-धौलखंड क्षेत्र में वर्षों से रह रही दो बाघिनों को साथी नहीं नहीं मिल पा रहे थे। दिसंबर 2020 में इस क्षेत्र में पहला और कुछ समय बाद दूसरा बाघ छोड़ा गया। बाघों का कुनबा बढ़ाने के मद्देनजर यहां तीन और बाघ लाए जाने हैं, लेकिन सालभर से अधिक समय से यह पहल धरातल पर नहीं उतर पाई है। वह भी तब जबकि, शिफ्टिंग को कार्बेट में तीन बाघ चिह्नित किए जा चुके हैं। ये कब शिफ्ट होंगे, इस पर सभी की नजर टिकी हैं।

अध्ययन रिपोर्ट को लेकर बढ़ी प्रतीक्षा
उत्तराखंड में गहराते मानव-वन्यजीव संघर्ष के बीच भालू भी नई मुसीबत बनकर उभरे हैं। राज्य में गुलदार के बाद भालू के हमले सर्वाधिक हैं। अब तो स्थिति ये हो चली है कि सर्दियों में शीत निंद्रा के लिए गुफाओं में चले जाने वाले भालू निरंतर ही आबादी वाले क्षेत्रों के आसपास घूमते दिखाई पड़ रहे हैं। फिर चाहे वह चमोली जिले का जोशीमठ क्षेत्र हो अथवा अन्य पर्वतीय जिलों के दूसरे इलाके, सभी जगह भालू का आतंक चिंता का विषय बना है। इस सबको देखते हुए पता लगाना आवश्यक है कि आखिर भालू के व्यवहार में बदलाव क्यों आ रहा है। इसे लेकर पूर्व में वन विभाग ने अध्ययन कराने का निश्चय किया, ताकि समस्या के समाधान को कदम उठाए जा सकें। बावजूद इसके, सालभर से ज्यादा समय गुजरने के बावजूद इस अध्ययन रिपोर्ट का कहीं कोई अता-पता नहीं है और न कोई इस बारे में कुछ बोल ही रहा।

Mankhi Ki Kalam se

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