जानिये शिवदयाल गिरी इण्टर कॉलेज पोखरखाल का इतिहास, इन शिक्षा विदो का रहा महत्वपूर्ण योगदान
यमकेश्वरः एक तरफ सन! 1946 में देश की आजादी के लिए जंग चल रही थी, और भारतीय जनमानस संघर्ष कर रहे थे, वहीं हमारे यमकेश्वर क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता और स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी क्षेत्र में शिक्षा की अलख जगाने के लिए आजादी के साथ- साथ शिक्षा के लिए भी संघर्ष कर रहे थे। उस दौर में जब हमारे क्षेत्र में उंगली में गिनती करने लायक ही प्राथमिक विद्यालय थे, और जूनियर हाईस्कूल जिन्हें मिडिल स्कूल कहा जाता था उनमें चमकोटखाल, भृगुखाल, और सिलोगी प्रमुख थे। उस दौर में यमकेश्वर, के विनक मागथा, बूंगा, कुमार्था के सामाजिक कार्यकर्ता विद्यालय खोलने के लिए प्रयासरत थे। मागथा के स्व0 शिवप्रसाद कुकरेती और कुमार्था के स्वतन्त्रता सग्रांम सेनानी स्व चंदन बिष्ट आदि विद्यालय खोलने के आम जन मानस को जागरूक कर रहे थे। आज हम शिवदयाल गिरी इण्टर कॉलेज पोखरीखाल का इतिहास जानेगें।
शिवदयाल इण्टर कॉलेज पोखरीखाल का परिचयः शिवदयाल इण्टर कॉलेज पोखरीखाल लक्ष्मणझूला काण्डी मोटर मार्ग पर अवस्थित है। यहॉ पर लगभग 15 से अधिक गॉवों के छात्र-छात्रायें अध्ययन करती हैं, इस स्कूल की स्थापना 1946 में श्री शिव प्रसाद कुकरेती ग्राम मागथा एवं अन्य के प्रयासों से किया गया। सन् 1977 में हाई स्कूल की कक्षायें संचालित होने लगी। सन् 1986- 87 मेंं विद्यालय को इण्टरमीडिएट की मान्यता प्राप्त हुई
शिवदयाल गिरी इण्टर कॉलेज पोखरखाल के निर्माण का इतिहास। श्री शिवदयाल गिरी इण्टर कॉलेज पोखरखाल से सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य श्री कोमल गिरी जी( 1969- 1998) द्वारा दिये गये पत्रिका के लेख के अनुसार शिवदयाल गिरी इण्टर कॉलेज पोखरखाल का निर्माण लंबे संघर्ष के बाद हुआ है। उनके अनुसार सन् 1946 इस क्षत्र के शैक्षिक वातावरण का युग परिवर्तन का वर्ष रहा। इससे पूर्व शिक्षा के साधन नगण्य थे। तत्कालीन समय में विरले ही धन साधन परिवार के लोग अपने बच्चों को पढाने में समर्थ होते थे, जिससे समाज में अधिकांश लोग शिक्षा से बंचित रहते थे, जिसकी कसक समाज के कुछ विशिष्ट व्यक्तियों के मन में रहती थी, वही विशिष्ट व्यक्ति ही इस कसक को दूर करने के लिए विशिष्ट भूमिका निभाते थे। उसी दौरान पोखरखाल क्षेत्र के आस पास के कुछ प्रबु़द्ध लोग जिनके मन में शिक्षा से बंचित समाज के लिए कुछ करने की ललक उन्हें कुछ नया करने की प्ररेणा दे रही थी। उस समय एक जन चेतना जागृत हुई और वक्त में बदलाव आना शुरू हुआ, इस वक्त के बदलाव को समझने और जनता को आगे बढाने के लिए एक नेतृत्व की आवश्यकता थी। इस आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए वीर स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी चंदन सिंह बिष्ट ग्राम कुमार्था और शिव प्रसाद कुकरेती ग्राम मागथा दोनों व्यक्तियों ने। इन्होनें क्षेत्र में एक जूनियर हाईस्कूल के निर्माण का निश्चय किया गया। स्थान का चयन होने लगा, लेकिन सर्वसम्मति से कोई उपयुक्त स्थान नहीं मिल सका। स्थान चयन में मतान्तर के कारण श्री चन्दन सिंह बिष्ट अलग हो गये और उन्होंने अपने ही निकट के स्थान मोहनचट्टी नामक स्थान पर एक हिमांचल मिडिल स्कूल नामक संस्था की स्थापना कर दी।
वहीं दूसरी ओर शिव प्रसाद कुकरेती क्षेत्र के प्रबुद्ध लोगों को साथ लेकर किय्राशील रहे, उसके बाद सर्वसम्मति से पोखरखाल में विद्यालय खोलने का निश्चय किया गया। यह स्थान पातली गॉव के राजस्व में आता है। यहॉ के निवासियों ने सहर्ष विद्यालय की आवश्यकतानुसार अपनी अपनी भूमि विद्यालय को समर्पित कर दी। स्थान चयन के बाद विद्यालय का निर्माण शुरू हो गया। आवश्यक संसाधन जुटाये जाने लगे, कुछ समय तक दिउली में कक्षाओं का संचालन शुरू हो गया। काण्डी के बचन सिंह बिष्ट यहॉ के पहले प्रधानाध्यापक थे। कुछ समय बाद निर्माण कार्य सुविधा जनक हो गया तो पोखरखाल में कक्षाओं का श्रीगणेश हो गया। इस तरह से सन् 1946 इस विद्यालय का प्रथम शैक्षिक वर्ष था। सर्वप्रथम यहॉ पर 1947 में एक त्रिकक्षीय भवन का निर्माण हुआ। भवन निर्माण के लिए क्षेत्रीय लोगों के द्वारा श्रमदान किया गया जो कि सामाजिक एवं सामुदायिकता का सबसे बड़ी अनूठा उदाहरण था। भवन निर्माण हेतु श्री शिव प्रसाद कुकरेती अन्य आवश्यक सामग्री एवं अन्य कक्षा निर्माण के लिए जगह जगह वास प्रवास कर घर-घर भूखे प्यासे रह कर भ्रमण करते रहे और धन संचय करते रहे। श्री शिव प्रसाद कंडवाल जी बताते हैं की श्री शिव प्रसाद कुकरेती जी गाँव गाँव छात्रों क़ो लेकर जाते थे साथ में ढ़ोल दमाऊ बजता था, उस दौर में लोगों के पास धन का. अभाव रहता था, अनाज भरपूर था, लोग धन के बदले अनाज दे देते जिसमें मंडुवा, झंगोरा चौलाई आदि दे देते थे और उसे वह इकट्ठा करवाकर बेच देते थे, और उस धन क़ो चंदे के रूप में विद्यालय क़ो दे देते थे, इसी तरह राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के दिन प्रभात फेरी लेकर भी चंदा एकत्रित किया जाता था जिससे शिक्षकों का वेतन निकलता था, उस समय छात्रों से शुल्क आठ आना या अधिकतम एक रुपया लिया जाता था।
इस तरह से उन्होंने विद्यालय की स्थापना करने में अपना जीवन अर्पण किया। विद्यालय के इतिहास से जुड़े हर पृष्ठ पर उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगा। श्री शिव प्रसाद कुकरेती को विद्यालय का संस्थापक माने जाते हैं। इनके साथ सहयोग करने वाले अन्य महापुरूषों में जीत सिंह बिष्ट पोखरी, श्री जीत सिंह असवाल, खेड़ा, श्री लाल सिंह की उनके साथ पूर्ण सहभागिता रही।
विद्यालय के तीव्र विकास की इच्छा से यहॉ के प्रवासियों दिल्ली में एक सहायक कमेटी का गठन किया। इस सहायक कमेटी के गठन का श्रेय श्री दर्शन सिंह रावत निवासी दिउली को जाता है। उनके द्वारा दिउली और पोखरखाल विद्यालय के उच्चीकरण ले लिए तात्कालीन जनप्रतिनिधियों के साथ समन्वय बनाकर विद्यालय के संबध में पत्राचार किया जाता था, और स्थानीय कार्यक्रम की रूपरेखा तय की जाती थी।
उन्होंने अपने सक्रिय रूप में अपने सहयोगी कार्यकर्ता श्री रामलाल कुकेरती, श्री लालसिंह राणा, श्री जयदत्त ग्वाड़ी, रामलाल रियाल, श्री महानंद कण्डवाल एवं अन्य सभी सदस्यों के सहायोग से यहॉ एक छात्रावास बनवाया। यह छात्रावास 12 कमरो का है तथा आज भी विद्यालय की धरोहर निधी के रूप में विद्यमान है। समय समय पर विद्यालय को कमेटी से विद्यालय को अन्य सहायतायें मिलती रहीं। श्री कुकरेती जी के संचालन में विद्यालय चलता रहा। विभाग से डेपुटेशन पर अध्यापक मिलते रहे, जिनमें श्री दलीप सिंह गुसाई, श्री सदानंद त्रिपाठी, श्री जितार सिंह,श्री गोविन्द प्रसाद कण्डवाल, प्रमुख थे। विद्यालय के विधान के अनुसार प्रबन्धक भी बदले जाते रहे, जिनमें श्री दयाल सिंह रावत, श्री छप्पन सिंह, श्री वामदेव कुकरेती, नारायण सिंह रौथाण विशेष रूप से रहे। लगभग 12- 13 साल बाद आपसी मतभेदों के चलते विद्यालय में आपसी विवाद होने लगा। श्री बहादुर सिंह फल्दाकोट निवासी द्वारा श्री गोविन्द प्रसाद कण्डवाल के साथ सन् 1960 में दिउली में एक जूनियर हाईस्कूल इसी के प्रतिरोध में दिउली मे खोला गया।
पोखरखाल विद्यालय में अस्थिरता का वातावरण होने लगा, जिस वजह से विद्यालय संचालन सहीं नहीं होने से कुछ समय यहॉ पर स्थायी प्रधानाध्यापक नहीं रह पाये। विद्यालय में नेतृत्व का अभाव हो गया और विद्यालय ऋणग्रस्त हो गया। इस दौरान श्री प्रताप सिंह पुण्डीर, श्री कीर्ति सिंह बिष्ट श्री जोत सिंह रौतेला प्रधानाध्यापक थे।
सन् 1969 में विभाग से प्रशिक्षित अध्यापको क़ो रखने हेतु सख्त निर्देश जारी कर दिये गये, विद्यालय आर्थिक संकटों से गुजर रहा था। अध्यापकों के वेतन भुगतान करने की समस्या थी वे महीनों वेतन के अभाव से उनकी आर्थिक स्थिति तंग हो गयी थी। श्री कोमल गिरी जी लिखते और बताते हैं कि मुझे याद है कि उस आर्थिक संकट में त्रिलोक सिंह रौथाण ग्राम विनक ने अध्यापकों को व्यक्तिगत रूप से भरपूर आर्थिक सहायता प्रदान की। इस दौरान श्री दयाल सिंह रावत, विद्यालय प्रबन्धक थे। उन्होंने धैर्य और साहस से काम लेते हुए अपने साथ विद्यालय अध्यक्ष श्री घनश्याम प्रसाद भट्ट जो कि दीर्धकाल से संचालक मण्डल से जुड़े व्यक्ति थे को लेकर श्री राजाराम कुकरेती इ0कॉलेज दिउली से सम्पर्क किया। श्री कुकरेती ने उनके आमंत्रण को सहर्ष स्वीकार करते हुए सहयोग देने की बात की और समस्याओं के निराकरण करने के लिए हामी भर दी। उनके द्वारा हामी भरने के बाद उन्हें प्रबन्धक 15 सिंतम्बर 1969 को लेकर आये और उन्हें प्रधानाध्यापक नियुक्त कर दिया।
श्री राजाराम कुकरेती के अथक प्रयासों से विद्यालय विवादों बाहर आया। प्रबन्धन समिति ने उनके साथ आपसी सामजस्य बिठाया फलस्वरूप क्षेत्रीय जागरूक लोगों के साथ मिलकर विद्यालय हेतु आर्थिक संसाधन चंदे से जुटाया जिसके परिणामस्वरूप विद्यालय ऋणमुक्त हो गया। विद्यालय के भविष्य और प्रगति को देखते हुए उन्होनें जनसमर्थन के साथ इण्टर कॅालेज दिउली के संस्थापक श्री सोमगिरी महाराज हरिद्वार के संरक्षण में दे दिया। श्री सोमगिरी जी के संरक्षण में आते ही विद्यालय प्रगति पथ पर अग्रसर हो गया, और विद्यालय को विभाग से अनुदान मिलना शुरू हो गया, और अध्यापको की नियुक्तियॉ होने लगी। श्री राजाराम कुकरेती जी को उनका यथोचित सहयोग मिलता रहा, जिसके परिणामस्वरूप विद्यालय की कमियां दूर होती गयी, उन्होंने यहॉ पर एक स्वच्छ पंरपरा विद्यालय में स्थापित कर दी। कुछ समय बाद 1974 में उन्होंने यहॉ से स्वेच्छा से त्यागपत्र दे दिया और आई0डी0पी0एल0 इण्टर कॉलेज में नियुक्ति हो गयी। उनकी उत्कृष्ट सेवायें विद्यालय एवं समाज हित में अविस्मरणीय रहेंगी।
श्री राजाराम कुकरेती जी के जाने के बाद भी श्री सोमगिरी महाराज का वरदहस्त यथावत रहा। विद्यालय और क्षेत्र हित में उनकी अगाध श्रद्धा हो गयी। उन्होने अपने गुरू श्री शिवदयाल गिरी जी की स्मृति में दिउली और पोखरखाल को नाम देकर अलंकृत किया। उन्होंने विद्यालय के उच्चीकरण की कार्यवाही प्रारम्भ की। कार्यवाही से मान्यता प्राप्त होने तक इसके उच्चीकरण के लिए इण्टर कॉलेज दिउली के प्रधानाचार्य श्री बृजमोहन चंदोला, तत्कालीन विधायक भारत सिंह रावत, श्री देवेंन्द्र सिंह कुंवर का विशेष सहयोग रहा।
सन् 1977 में हाईस्कूल कक्षायें संचालित हो गयी, जनता में उत्साह और खुशी का माहौल हो गया। लेकिन इसी दौरान 23 सितम्बर 1978 को पूज्य मंहत जी इहलीला समाप्त कर ब्रहमलीन हो गये। उनके द्वारा विद्यालय के लिए किये गये उपकार सदैव अविस्मरणीय रहेंगे।
पूज्य मंहत जी के ब्रहमलीन होने के बाद तत्कालीन उप प्रबन्धक श्री दर्शनलाल कुकरेती को प्रबन्धक बने और उन्होनें 1979 में श्री गम्भीर सिंह नेगी को विद्यालय मे प्रधानाचार्य के पद पर नियुक्ति दी। नेगी जी का विद्यालय के प्रगति में अपार सहयोग मिला। उनको अपनी सेवाअवधि में प्रबन्धन समिति में श्री दलीप सिंह रावत, श्री राम सिंह रावत, एवं त्रिलोक सिंह रौथाण का उन्हें विशेष सहयोग मिलता रहे। इन सभी महापुरूषों के योगदान से सन् 1986- 87 में विद्यालय को इण्टर मीडिएट की मान्यता मिल गई। श्री गंभीर सिंह नेगी 1979 से 1993 तक प्रधानाचार्य के पद रहे। उपरोक्त सभी तथ्य स्थानीय वरिष्ठ नागरिको से ली गई जानकारी के आधार पर ली गई हैं।
विद्यालय में पहले प्रबंधक श्री दिलीप सिंह रावत श्री राम सिंह दूसरी और पाँचवी बार, तीसरी बार श्री चंद्रमोहन पयाल श्री भगत सिंह पयाल श्री बलदेव प्रसाद कुकरेती, और वर्तमान में श्री सुनील बड़थवाल प्रबंधक तथा श्री प्रताप सिंह रावत ग्राम दुबड़ा अध्यक्ष हैं।
विद्यालय में पढ़ाने वाले अध्यापक भगवती प्रसाद कपरूवान, श्री दर्शनलाल कंडवाल, श्री बीरबल सिंह असवाल, श्री भगत बढियारी, श्री मोहन प्रसाद बरमोला, श्री कन्हैया लाल शास्त्री, श्री जयदत्त कुकरेती, श्री उम्मीद सिंह रावत, श्री प्रहलाद राम यादव आदि रहे।
यँहा विद्यालय में उमड़ा, फ़लदाकोट तल्ला मल्ला ,पातली, विनक, कंडवाल गाँव, मागथा, गणेशपुर, खेड़ा, तल्ला, दुबड़ा, वासवा, सिंदूड़ी, मुसराली, गहली, कुकरेती धार, नलतूर, मंगल्या गाँव, दौर गोदी, तौलसारी, टोला, पम्बा, दलमोगी पोखरी भड़ेथ, खरदूनी घाई खाल गडयर और बूँगा आदि गांव के विद्यार्थी यँहा पढ़ने आते हैं।
प्रधानाचार्य श्री जी एस असवाल जी ने बताया की वर्तमान में विद्यालय में 266 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं, यंहा पर 11वी और 12 वी में वित्त विहीन विज्ञान विषय की कक्षाएं संचालित की जा रही हैं, साथ हीं विद्यालय में कुल 12 कार्मिक कार्यरत हैं।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।