कार्डियक अरेस्ट के दौरान आपात स्थिति में जीवन बचाने के उद्देश्य से एम्स के सुरक्षा गार्डों को ’कम्प्रेशन ऑनली लाईफ सपोर्ट प्रक्रिया का प्रशिक्षण

कार्डियक अरेस्ट के दौरान आपात स्थिति में जीवन बचाने के उद्देश्य से एम्स के सुरक्षा गार्डों को ’कम्प्रेशन ऑनली लाईफ सपोर्ट प्रक्रिया का प्रशिक्षण
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ऋषिकेश :कार्डियक अरेस्ट के दौरान आपात स्थिति में जीवन बचाने के उद्देश्य से एम्स के सुरक्षा गार्डों को ’कम्प्रेशन ऑनली लाईफ सपोर्ट प्रक्रिया का प्रशिक्षण दिया गया। यूथ-20 रन अप इवेंट्स के अन्तर्गत एनेस्थिसियोलाॅजी विभाग द्वारा आयोजित इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में कार्डियक अरेस्ट के बारे में विभिन्न लाभदायक जानकारियां भी दी गयीं।

कार्डियक अरेस्ट के दौरान आपात स्थिति में फंसे संकटग्रस्त व्यक्ति का जीवन बचाना सबसे पहली प्राथमिकता होती है। ऐसे में जब आस-पास अस्पताल की सुविधा न हो तो मरीज को अस्पताल तक ले जाने में विलम्ब को देखते हुए कम्प्रेशन ऑनली लाईफ सपोर्ट विधि मरीज की सांस लौटाने में बहुत कारगर होती है। इस विषय पर फोकस करते हुए उत्तराखंड सोसाइटी ऑफ एनेस्थिसियोलॉजी (यूकेएसए) और इंडियन रिससिटेशन काउंसिल फेडरेशन के तत्वावधान में एनेस्थिसियोलॉजी विभाग, एम्स ऋषिकेश ने सुरक्षा गार्डों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया। यूथ-20 रन अप के तहत आयोजित इस कार्यक्रम में सुरक्षा गार्डों को संबन्धित विषय पर विभिन्न माध्यमों से प्रशिक्षित किया गया।

संस्थान की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) मीनू सिंह ने कहा कि यह एक महत्वपूर्ण कौशल है जिससे प्रत्येक व्यक्ति को अच्छी तरह से वाकिफ होना चाहिए। उन्होंने बताया कि ( सीपीआर ) एक आपातकालीन प्रक्रिया है जिसमें छाती के संकुचन को अक्सर कृत्रिम वेंटिलेशन के साथ जोड़ दिया जाता है। ताकि कार्डियक अरेस्ट वाले व्यक्ति में स्वतः रक्त परिसंचरण और श्वास प्रक्रिया बहाल होने तक उसे मैन्युअल रूप कृत्रिम श्वास दी जा सके। डीन एकेडमिक्स प्रो. जया चतुर्वेदी ने भी सभी प्रतिभागियों से आह्वान किया कि कार्डियक अरेस्ट की वजह से अपनी सांसों के लिए संघर्षरत व्यक्ति का जीवन बचाना हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से प्रशिक्षित होने के बाद हमें चाहिए कि हम अन्य लोगों को भी लाईफ सपोर्ट विधि के बारे में बताएं।

प्रशिक्षण में बताया गया कि कार्डियक अरेस्ट की पहचान हो जाने के बाद, बचावकर्ता को चाहिए कि वह पीड़ित व्यक्ति को किसी सख्त और सपाट सतह या जमीन के ऊपर पीठ के बल लिटाकर तत्काल उसकी छाती को दबाते हुए उसे कृत्रिम श्वास देना शुरू कर दे। सीपीआर देते समय प्रति मिनट कम से कम 100-120 बार उसकी छाती दबानी चाहिए। प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान कौशल प्रदर्शन और अभ्यास कार्यक्रम भी आयोजित किए गए।

इस दौरान उत्तराखंड सोसाईटी ऑफ ऐनेस्थेसियोलाॅजी के प्रोफेसर डॉक्टर पारुल जिंदल, एनेस्थिसियोलॉजी विभाग, एम्स ऋषिकेश के समन्वयक फैकल्टी डॉ. प्रवीण तलवार, डॉ. मृदुल धर, डाॅ. रामानन्द, डाॅ. जूपी, डाॅ. स्वाति, डाॅ.आलोक, डाॅ. जाॅन बोनी, डाॅ. थेनमोजी और नर्सिंग ऑफिसर हेमंत तथा चन्दू आदि शामिल थे।

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