जानिये कैसे बना शिव दयाल गिरी राजकीय इण्टर कॉलेज दिउली, किन लोगों का रहा है योगदान, जानिये विद्यालय का रोचक इतिहास

यमकेश्वरः 1960-70 का दशक शिक्षा क्षेत्र में यमकेश्वर के लिए संघर्ष का दशक रहा, और 1970- 1980 का दशक उन संघर्षो का फलीभूत परिणाम के फलस्वरूप शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्तिकारी और परिवर्तन का दशक कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि इन 20 सालों में शिक्षा मंदिरो का निर्माण के साथ स्थानीय युवाओं को इण्टर तक अपने ही क्षेत्र में विद्यार्जन का सुअवसर मिलना प्रारम्भ हुआ। इन 20 सालों में यमकेश्वर के हर कोने में शिक्षा की जो अलख जगी उसका परिणाम यह रहा कि अब यहॉ के नौनीहालों को दूर दराज क्षेत्रों में शिक्षा के लिए नहीं जाना पड़ा। आज हम यमकेश्वर के शिव दयाल गिरी राजकीय इण्टर कॉलेज दिउली के गौरवमयी इतिहास के बारे में रोचक जानकारी आपके सम्मुख रखेगें। यह जानकारी स्थानीय बुजुर्गो के द्वारा दी गयी है, जिन्होनें उस समय विद्यालय खुलवाने के लिए संघर्ष किया।
शिवदयाल गिरी राजकीय इण्टर कॉलेज का परिचयः शिवदयाल गिरी राजकीय इण्टर कॉलेज दिउली नीलकंठ काण्डी मोटर मार्ग पर स्थित हिंडोला बाजार से लगभग 01 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है। विद्यालय स्थापना वर्ष 1958 में हुई, और उस समय विद्यालय का नाम श्री शिव दयाल गिरी हायर सेकेण्डरी स्कूल रखा गया । 1959- 60 में जिला परिषद बोर्ड द्वारा इसको स्थायी मान्यता दी गयी और 1964 में हाईस्कूल की मान्यता मिली और 1971-72 में यह विज्ञान वर्ग के साथ इण्टर की मान्यता और सन् 1979 में इस विद्यालय का प्रान्तीयकरण हो गया। स्थानीय निवासी और पूर्व अध्यापक श्री प्रसन्न सिंह पयाल, श्री अमर देव कंडवाल जी बताते हैं कि इस स्कूल का निर्माण बड़े संघर्षों के साथ हुआ और इस विद्यालय को प्रगति देने में आमड़ी गॉव के सोमदत्त गिरी जी का अनूठा और अनुकरणीय योगदान रहा है, उन्होंने विद्यालय का नामकरण अपने गुरू श्री शिवदयाल गिरी जी से कर गुरूओं के प्रति सच्चा श्ऱद्धा भाव समाज के सम्मुख रखकर यह बताया कि बिना गुरू के ज्ञान की प्राप्ति और ख्याति मिलना असम्भव है।
शिवदयाल गिरी राजकीय इण्टर कॉलेज दिउली की स्थापनाः श्री प्रसन्न सिंह पयाल जी बताते हैं कि इस स्कूल के संस्थापक श्री गोविन्द प्रसाद कण्डवाल, ग्राम मलेल गॉव जो कि जिला परिषद बोर्ड के शिक्षक थे और उस समय जूनियर हाईस्कूल पोखरिखाल में नियुक्त थे, उस समय पातली गॉव के दयाल सिंह पयाल प्रबन्धक थे उनके साथ किसी विषय पर विवाद हो गया और विवाद यहॉ तक बढ गया कि अध्यापक श्री गोविंद प्रसाद कण्डवाल के स्वाभिमान पर बात आ गयी।
उस समय दिउली के आस पास क्षेत्र के जूनियर हाईस्कूल पोखरीखाल में 60 से अधिक छात्र अध्ययनरत थे, उन्होंने अपने यहॉ के विद्यार्थियों को विद्यालय से ले जाने के लिए अड़ गये और उसके बाद अपने ही डिंडयाली में पढ़ाने लगे, उनके साथ दो अन्य अध्यापक भौन गाँव के श्री कुशाल सिंह पयाल और पूंन्डरासु के उत्तम सिंह रावत ने पढ़ाया। कुछ दिन बाद अपने ही घर के खेत में झोपडी बनाकर बच्चों को पढ़ाया। स्थानीय निवासी पहले से ही दिउली के आस पास विद्यालय बनाना चाह रहे थे, लेकिन जमीन उपलब्ध नहीं हो रही थी. धमान्दा गाँव कि सुनारी देवी ने अपने खेत जो चौंर में थे वंहा पर बनाने कि स्वीकृति दी और वंहा पर झोपड़ी बनायी और उन सभी छात्रों की स्थानान्तरण यहॉ करवा दिया। दो साल तक उन्होंने इस विद्यालय में पढाया, उसके बाद उनके साथ स्थानीय अध्यापक श्री राजाराम कुकरेती, चन्द्रमणी शर्मा और श्री सुरेन्द्रदत्त मारवाड़ी जी को देहरादून के नेहरू ग्राम से लेकर आये और उन्हें प्रधानध्यापक नियुक्त किया गया, किंतु कुछ समय बाद श्री सुरेन्द्र दत्त मारवाड़ी के साथ भी विवाद हो गया और वह वह 1964 में किमसार स्कूल में आ गये। इसी दौरान गोविंद प्रसाद कण्डवाल पौड़ी चले गये।
विद्यालय का संचालन तो हो गया किंतु अब इसको चलाने और भवन निर्माण की समस्या मुॅह के सामने ललकार रही थी, ऐसे में कुछ क्षेत्रीय निवासी श्री सोमदत्त गिरी महाराज को मिलने हरिद्वार कनखल गये, वह मूल निवासी आमड़ी के थे, अपने क्षेत्रीय लोगों का स्वागत करते हुए विद्यालय संचालन की समस्या को गंभीरता से लिया और उसी समय उन्होंने इस विद्यालय संचालन और भवन निर्माण का संकल्प लेकर वह अगले ही दिन दिउली आ गये, जगह का चयन हुआ और विद्यालय निर्माण का कार्य शुरू हो गया। राजकीय इंटर कॉलेज दिउली के संस्थापको में मुख्य भूमिका निभाने वाले श्री सोमगिरी जी महाराज, श्री इंद्र सिंह पयाल ग्राम भौन, जुलेडी गाँव के सरपंच श्री राघवानंद ममगाई जी, श्री हरि सिंह श्री बचन सिँह पयाल ग्राम कोठार ग्राम दिउली, श्री विशम्बर दत्त कपरुवान ग्राम आमड़ी,तारा दत्त कपरुवान ग्राम आमड़ी, रामकृष्ण भट्ट ग्राम इड़िया, और श्री माधो सिंह ग्राम धमान्दा आदि प्रमुख रहे। जूनियर हाई स्कूल के पहले प्रबंधक दिउली के प्रधान श्री हरि सिंह पयाल और उसके बाद कुछ समय माधो सिंह जी भी रहे। हाई स्कूल कि मान्यता मिलने के बाद श्री सोमगिरी जी महाराज आजीवन प्रबंधक नियुक्त किये गये। प्रबंधन समिति में क्षेत्र के 12 गाँव के प्रधान मुख्य सदस्य निर्वाचित करने का विधान निर्धारित था।
श्री दर्शन सिंह रावत जो उदयपुर मंडल के अध्यक्ष थे उनके द्वारा विद्यालय के संबधित समस्त पत्रों का सिर्फ आलेख ही नहीं किया जाता था बल्कि आप स्वयं तत्कालीन जनप्रतिनिधियों तक भी आप स्वयं पहुँचाते थे, आपके द्वारा लिखें गये कई पत्र आज भी साक्ष्य के तौर पर उपलब्ध है, आपका बहुत बड़ा योगदान रहा है। आप सभी जनप्रतिनिधियों से मिलकर क्षेत्र एवं विद्यालय हित में यँहा कार्यक्रम निर्धारित करवाते थे, आपने श्री सोमगिरी जी महाराज के साथ मिलकर इस विद्यालय के निर्माण से लेकर प्रगति और स्थानीय अन्य विकास कार्यों को करवाने में आपका योगदान सदैव अनुकरणीय रहा है।
श्री एच0एस0 पयाल निवासी दिउली बताते हैं कि वह उन्होंने कक्षा 06 में 1959-60 में इसी विद्यालय में प्रवेश लिया, उस दौरान उनकी कक्षायें झोपड़ी में ही चलती थी, आठवीं कक्षा का पहला बैच 1961 में पास आउट हुआ, और जूनियर परीक्षा का पहला सेंटर कोटद्वार रहा।
श्री सोम गिरी महाराज का जीवन परिचयः श्री सोम गिरी महाराज मूल निवासी आमड़ी के थे, इनके पिताजी का नाम श्री बालादत्त कपरूवाण था, इन्होंने युवावस्था में ही सन्याल ले लिया था और श्री शिवदयाल गिरी जी महाराज के सानिध्य मे चले गये, श्री शिवदयाल गिरी जी महाराज इनके सगे चाचा थे। श्री सोमगिरी महाराज अपने क्षेत्र के शिक्षा के प्रति अलख जगाने के लिए प्रतिबद्ध रहे, और उन्होंने सिर्फ दिउली ही नहीं बल्कि पोखरीखाल विद्यालय को इण्टर तक बनवाने के लिए अथक प्रयास किया। आप हरिद्वार जिला कांग्रेस के अध्यक्ष और उसके बाद हरिद्वार नगर अध्यक्ष के पद पर विराजमान रहे। आप ज़ब विद्यालय कार्यों कि समीक्षा और देखभाल करने विंध्यवासिनी से त्याडो होते हुए घुड़सवारी करते हुए जा रहे थे तब अचानक उकाली जड़ से ऊपर आप घोड़े से गिर गये आपको चोट आयी और आपको हरिद्वार में अस्पताल में लाया गया, किन्तु कुछ समय के बाद आप परलोक सिधार गये। आपके किये गये शिक्षा के प्रयासों के लिए आपको यमकेश्वर का श्री मदन मोहन मालवीय जी उपनाम से अलंकृत किया जा सकता है।
साथ ही आपने उस वक्त जब मात्र हरिद्वार विन्ध्यवासनी मोटर मार्ग एक मात्र यातायात का मुख्य साधन था तब आपने दिउली विद्यालय को सड़क मार्ग से विन्ध्यवासनी से जोड़ने का प्रयास किया और उन्होंने विद्यालय से लगभग 01 किलोमीटर तक सड़क का निर्माण करवाया। श्री प्रसन्न सिह पयाल बताते हैं कि उस समय दुगड्डा ब्लॉक प्रमुख से उक्त सड़क निर्माण के लिए बजट पारित करवाया था, किंतु बजट पूरा नहीं हुआ और सड़क निर्माण कुछ समय के लिए रूक गया, फिर उन्होनेंं स्व प्रयासों से उक्त सड़क निर्माण को आगे बढाने का प्रयास किया लेकिन सदैव की भॉति भूमि विवाद मुख्य विवाद बन गया और उन्होनें क्षेत्र में शांति व्यवस्था बनी रहे स्वतः ही इस योजना को वहीं पर विराम दे दिया।
हाईस्कूल और इण्टर से प्रातींय करण के लिए प्रयासः सोमदत्त गिरी महाराज ने उसके बाद इस विद्यालय को हाईस्कूल की मान्यता और फिर इण्टर कॉलेज के लिए मान्यता के लिए बहुत संघर्ष किया जिसके फलस्वरूप 1964- 65 में इस विद्यालय को हाईस्कूल की मान्यता मिल गयी। 1966 में पहला हाईस्कूल का बैच निकला और बोर्ड का सेंटर कालागढ़ पड़ा। हाई स्कूल में पहले प्रधानाचार्य धुरी राम कोठियाल जी को लाकर उन्हें नियुक्त किया गया, किन्तु वह एक वर्ष से पहले ही अन्यत्र चले गये। उसके बाद मेरठ से श्री बृजमोहन चंदोला को लाकर यहॉ पर प्रधानाचार्य नियुक्त किया गया उनके साथ तीन अन्य अध्यापक और आये, किंतु वह कुछ समय तक ही रहे। इण्टर की मान्यता विज्ञान सहित 09 विषयों के साथ मान्यता 1970-71 में मिली और फिर सोमदत्त गिरी जी महाराज के श्री भक्त दर्शन जी के साथ मधुर संबंध थे, उन्होनें इस विद्यालय को प्रान्तीयकरण करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। आपके प्रयासों से ही 1979 में दिउली विद्यालय का प्रांतीयकरण हो गया।
विद्यालय भवन का निर्माणः– विद्यालय भवन का निर्माण कार्य 1959-60 से प्रारम्भ हुआ।जमीन का सर्वप्रथम दान श्रीमती सुनारी देवी ग्राम धमाँदा ने दिया उसके बाद वंही के निवासी श्री त्रिलोक सिंह, दिउली के श्री महानन्द शर्मा, और श्री हरि सिंह पयाल, श्री श्याम सिंह पयाल ने दान स्वरुप जमीन विद्यालय को दे दी। स्थानीय निवासी प्रसन्न सिंह पयाल, श्री होशियार सिंह पयाल, श्री अमर देव कंडवाल आदि बताते है कि इसके लिए पत्थर वंही आस पास से ही निकाले और फोड़े गये। वहीं फर्नीचर में सतीर धमांदा और गोहरी रेंज से लाये गये, वन विभाग से छुपकर लकड़ी की चिरान अंधेंरे में की जाती थी और अगले दिन उन पट्टियों को सुबह सुबह लगाकर उसके ऊपर चद्दरें लगा दी जाती थी, दिउली के मिस्त्री श्री भौर्या दादा व अन्य ने इस विद्यालय का निर्माण करवाया। विद्यालय के लिए चद्दरे ज्वालापुर से मँगवाई गई।
यँहा पर अध्यापन करवाने वाले प्रमुख स्थानीय अध्यापक श्री सुरेंद्र दत्त मारवाड़ी ग्राम धारकोट ठागर के श्री त्रिलोक सिंह, तल्ला बनास के श्री विक्रम सिंह और आनंद सिंह, ग्राम भड़ेथ के जगमोहन सिंह बिष्ट, श्री राजा राम कुकरेती, श्री कोमल गिरी,श्री चन्द्रमणी शर्मा ग्राम धमान्दा, श्री मातवर सिंह पयाल ग्राम ढोसन, श्री राजेंद्र प्रसाद कपरुवाण ग्राम आमड़ी, श्री प्रसन्न सिंह पयाल ग्राम बस्टोला ( सौड़ ) श्री अमर देव कंडवाल मलेल गाँव, श्री भोलादत्त कपरुवाण ( शास्त्री जी ) ग्राम डोबरा आदि रहे।
1970 से लेकर दो हजार के दशक तक राजकीय इण्टर कॉलेज दिउली का अनुशासन और विज्ञान वर्ग में पढाई के लिए यमकेश्वर क्षेत्र के दूर दूराज के विद्यार्थी अध्ययन करने के लिए आते थे, क्योंकि उस समय विज्ञान विषय भृगुखाल और दिउली स्कूल में ही था, जिस कारण यहॉ पर छात्र विज्ञान विषय पढने पूरे डांडामण्डल से लेकर ढांगू पट्टी से लेकर उदयपुर तल्ला मल्ला, पल्ला, और वल्ला के विद्यार्थी यहॉ शिक्षा ग्रहण करते थे।
वर्तमान में कार्यरत प्रधानाचार्य डॉ नंद किशोर गौड़ ने बताया कि वर्तमान में 275 छात्र विद्यार्थी अध्ययनरत हैं, वर्तमान में विद्यालय में 23 स्टाफ कार्यरत हैं, विद्यालय में छात्रों को आधुनिक तरीके से अध्यापन करवाया जा रहा है, उन्होने कहा कि हमारा प्रयास है कि विद्यालय के सर्वागीण विकास कर विद्यार्थियों को नया आयाम दे सकें।
हरीश कंडवाल मनखी कि कलम से।