जानिये कैसे हुआ इण्टर कॉलेज यमकेश्वर का निर्माण, किन महान विभूतियों की रही महत्वपूर्ण भूमिका
यमकेश्वरः यमकेश्वर ब्लॉक में वर्तमान में 07 अशासकीय इण्टरमीडिए विद्यालय हैं, जिनमें सबसे प्राचीन इण्टरमीडिएट स्कूल चमकोटखाल है, जिसका स्थापना वर्ष 1927 है, उसके बाद यमकेश्वर में भृगुखाल और उसके बाद साठ-सत्तर के दशक में इण्टर कॉलेज किमसार, इण्टर कॉलेज यमकेश्वर, शिवदयाल गिरी इण्टर कॉलेज दिउली, एवं पोखरीखाल, और यमकेश्वर एवं बुधोली हैं। आज हम यमकेश्वर ब्लॉक के जनता इण्टर कॉलेज यमकेश्वर के स्थापना कैसे हुई और इसकी स्थापना में स्थानीय किन किन विभूतियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, उसकी विस्तृत चर्चा करेगें।
जनता इण्टर कॉलेज यमकेश्वर की स्थापनाः- जनता इण्टर कॉलेज की स्थापना का वर्ष सन् 1965-66 में हुई। शुरुआत में कक्षाओ का संचालन यमकेश्वर महादेव के प्रागंण में स्थित धर्मशाला में हुआ और परीक्षा भृगुखाल में हुई । उसके बाद विद्यालय को हाईस्कूल की मान्यता 1972 में मिली और पहला हाईस्कूल बोर्ड़ की परीक्षा लैंसडाउन में हुई, उसके बाद 1976 में 12वीं की मान्यता उत्तर प्रदेश के शिक्षा परिषद इलाहाबाद बोर्ड के द्वारा प्राप्त हो गयी।
जनता इण्टर कॉलेज यमकेश्वर का निर्माण कैसे हुआ : जनता इण्टर कॉलेज यमकेश्वर के निर्माण में अग्रणी भूमिक निभाने वाले या जिसको यमकेश्र इण्टर कॉलेज में शिक्षा का अलख जगाने में मुख्य भूमिका जामल गॉव के तात्कालीन संरपंच स्व0 श्री सोहन सिहं चौहान पुत्र स्व0 नैन सिंह चौहान की रही। सोहन सिंह चौहान का जन्म 5 दिसम्बर 1922 को हुआ। सोहन सिंह चौहान सरपंच और उसके बाद उन्होंने ब्लॉक प्रमुख का चुनाव लड़ा। उनकी मृत्यु 22 दिसम्बर 1995 में हुई। यमकेश्वर जनता इंटर कॉलेज के सन 1966 से आजीवन प्रबंधक नियुक्त किये गये। उन्होने अपना सम्पूर्ण जीवन काल इस विद्यालय को समर्पित कर दिया। विद्यालय निर्माण से लेकर मान्यता के लिए तन मन धन सब कुछ लगाया। चंदा लेने के लिए हरियाणा, पंजाब, उत्तरप्रदेश दिल्ली आदि राज्यों दूर दूर तक यात्रायें कि और धनराशि निस्वार्थ भावना से एकत्रित की। साथ ही स्थानीय स्तर पर विद्यालय के प्रति और शिक्षा के महत्व के संबंध में लोगो को जागरूक किया।
जामल के स्व0 सोहन सिह चौहान के पारिवारिक भतीजे सत्यपाल चौहान ने बताया कि चाचा जी विद्यालय खोलने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध रहे। उनको कई बार ग्रामीण महिलाओं का विरोध का सामना भी करना पड़ा, क्योंकि स्कूल के विद्यालय परिसर से सटे खेतों को पूरी तरह नष्ट कर देते थे किंतु वे हॅसते हुए और बालकों की नादानी बतालकर शिक्षा के महत्व को बताकर उन्हें मनवाने में सफल हो जाते थे। उस वक़्त कार्य के लिए लखनऊ और इलाहाबाद जाना पड़ता था, सोहन सिंह चौहान कई चक्कर लगाते साथ में वंहा से स्कूल भवन के निर्माण के लिए चंदा एकत्रित करके लाते थे।
स्थानीय लोगो ने बताया कि स्कूल भवन के निर्माण के लिए जिस स्थान पर वर्तमान भवन है वंहा पर ग्राम जिया दमराड़ा के विद्यादत्त थपलियाल के निर्देशन रामलीला का आयोजन किया गया उन्होने ही रामलीला से प्राप्त होने वाले चंदे से स्कूल निर्माण का सुझाव रखा और सबने सहमति व्यक्त कर रामलीला का आयोजन किया, रामलीला से प्राप्त चंदे से विद्यालय भवन कि नीव रखी गई, उस समय क्षेत्र के अन्य जागरूक लोगो कि भी बड़ी भूमिका रही जिनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है, उसमे ग्राम बडोली के मोहन लाल उनियाल जी जो कि सोहन सिंह चौहान के जोड़ीदार समझे जाते थे, और उनके हर कार्य में उनका महत्वपूर्ण सहयोग और योगदान रहता था।
स्थानीय लोग और विद्यालय में अध्यापक के पद पर तैनात रहे पूर्व जिला पंचायत सदस्य श्री हरि सिंह चौधरी और श्री हरि सिंह भण्डारी जी का कहना है कि श्री सोहन सिंह चौहान जिन्होनें इस विद्यालय को खोलने में अहम भूमिका निभायी उसको भुलाया नहीं जा सकता है। उन्होनें क्षेत्रीय लोगां को यहॉ पर विद्यालय खुलवाने के लिए जागरूक किया। चंदा लेने के लिए उत्तराखण्ड के अलावा, उत्तर प्रदेश और हरियाणा तक की यात्रा की। उनके साथ बडोली गॉव के स्व0 मोहन लाल उनियाल जी, स्व0 पदम सिंह असवाल, बडोली, स्व0 इन्द्र सिंह ग्राम सिल्डी, जीत सिंह ग्राम काण्डा, नारायण सिंह बिष्ट ग्राम भडेथ, रतन सिंह रावत, ग्राम मझेडा का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
वंही बडोली गॉव के असवाल परिवार ने विद्यालय के लिए भूमिदान की जोकि इस विद्यालय के निर्माण के लिए सबसे बड़ा दान और योगदान रहा। इस दान पुण्य को करने वाले बडोली के असवाल परिवार के पदम सिंह असवाल, श्रीमती रुक्मिणी देवी श्री शिव सिंह, श्रीमती मुन्नी असवाल, और श्री जगदीश सिंह आदि ने अपनी भूमि का दान स्कूल के लिए किया। दमराड़ा गाँव के गेंदन लाल रतूड़ी ने विद्यालय के एक कक्ष का निर्माण और पुस्तकालय बनाया, इस तरह विद्यालय प्रगति में उनका योगदान भी महत्वपूर्ण रहा है। ग्राम ठूँण्डा के राजमिस्त्रीयो ने इस बिद्यालय का निर्माण श्रमदान में किया, जो कि भूमिदान के समान ही उनका अपना श्रमदान था, इस तरह समाज के हर वर्ग ने विद्यालय निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका और सामाजिक सौहार्दता का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया।
जूनियर में पहले प्रधानाध्यापक तोता राम बडोनी ग्राम बड़यूंण और उसके बाद प्यारे लाल उनियाल ग्राम आवई के बने। इस स्कूल में शुरुवाती दौर में पढ़ाने वाले अध्यापको में ग्राम बड़यूंण के खुशिराम बड़थवाल, दर्शन लाल कंडवाल शास्त्री, ग्राम उमरोली, हरि प्रसाद उनियाल आनंद सिंह बिष्ट ग्राम भड़ेथ, और हरि सिंह भंडारी ग्राम सिल्डी रहे।
स्थानीय निवासी बताते है कि स्कूल का निर्माण जनसहयोग से हुआ, यँहा पर अध्यापक और शिष्य दोनों ही स्कूल के बाद अतिरिक्त समय श्रमदान में देते थे। पनियाली से तख़्त उमरौली अमोला गदेरे से पत्थर बिसुंदरी डांडा से कड़ीयां, और कंडरह से स्कूल के लिए चद्दर सर पर ढोकर लाये गये तभी धीरे धीरे कक्षा कक्ष बनाये गये, उस समय स्थानीय निवासियों में समर्पण और सहयोग कि भावना थी। 1980 से 2000 के दशक में विद्यालय में छात्रों की संख्या 500 से अधिक होती थी, उस समय विद्यालय में शिक्षक शिक्षण कार्य को अपना कर्तव्य समझते थे, और स्कूल के लिए समर्पित थे, यँहा से पढ़े विद्यार्थी आज उच्च पदों पर आसीन हैँ। ग्राम भड़ेथ के जगमोहन सिंह बिष्ट 29 साल तक प्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत रहे, उन्होने अपने कार्य काल में विद्यालय कि प्रगति में मुख्य भूमिका निभाई।
यँहा के पूर्वजों ने 1965 से लेकर 1975 तक विद्यालय की मान्यता को लेकर तात्कालिक राजधानी लखनऊ और इलाहाबाद आते जाते रहे, और मान्यता लेने में सफलता रहे, 1975 से लेकर आज तक लगभग 48 सालो में यँहा पर विज्ञान संवर्ग की सवित्त मान्यता नहीं मिल पाई है।
आज की परिपेक्ष्य में तुलना की जाय तो आज विद्यालय से आठ किलोमीटर की दूरी पर कांडी में खंड शिक्षा अधिकारी का कार्यालय हैँ, और बिल्कुल पड़ोस में ब्लॉक मुख्यालय हैँ, वहीं माध्यमिक शिक्षा महानिदेशालय देहरादून में है,उसके बाद भी विद्यालय की भवन की भौतिक परिवर्तन के अलावा अन्य परिवर्तन नहीं होना पूर्वजों के सपनों की अवहेलना है।
वर्तमान प्रधानाचार्य मनमोहन सिँह रौतेला का कहना है की विज्ञान संवर्ग की सवित्त मान्यता के लिए प्रयास किये जा रहे हैँ।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।