प्रधानमंत्री मोदी को सत्ता से हटाने के लिए इग्लैंड और अमेरिका चला रहे अभियान, रिपोर्ट में खुलासा
नई दिल्ली। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन ग्लोबलाइजेशन के एफ. विलियम एंगडाहल का दावा है कि घटनाओं की श्रृंखला बताती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाने के लिए अमेरिका व इग्लैंड द्वारा एक अभियान शुरू किया गया है। एंगडाहल के मुताबिक वर्तमान भू-राजनीति परिस्थितियों में भारत के प्रधानमंत्री मोदी के रुख से अमेरिका व यूरोपीय देश खुश नहीं हैं।
उनके अनुसार यूक्रेन युद्ध को लेकर वाशिंगटन और यूरोपीय संघ ने रूस पर अभूतपूर्व आर्थिक प्रतिबंध लगा रखा है। लेकिन भारत रूस का सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक साझीदार बना हुआ है। ऐसे में रूस के खिलाफ लगाया गया प्रतिबंध प्रभावी नहीं हो पा रहा है। एंगडाहल के लेख में कहा गया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की सरकार और ब्रिटेन के बार-बार के प्रयासों के बावजूद मोदी ने रूसी व्यापार के खिलाफ प्रतिबंधों में शामिल होने से इनकार कर दिया है।
इसी प्रकार मोदी के नेतृत्व में भारत ने संयुक्त राष्ट्र में यूक्रेन पर रूसी हमले के खिलाफ वाशिंगटन का साथ देने से भी परहेज किया है। बार-बार परिणाम भुगतने की अमेरिकी धमकियों के बावजूद भारत बड़े पैमाने पर रूसी तेल खरीद पर अमेरिकी प्रतिबंधों को मानने से इनकार किया है। ब्रिक्स का साथी सदस्य होने के अलावा, भारत रूसी रक्षा उपकरणों का एक प्रमुख खरीदार भी है। इसके कारण भी एंग्लो-अमेरिकन समूह मोदी सरकार से असंतुष्ट है।
एंगडाहल ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि जनवरी में मोदी और उनके प्रमुख वित्तीय समर्थक पर एक एंग्लो-अमेरिकन हमला शुरू किया गया। उनके मुताबिक वॉल स्ट्रीट वित्तीय फर्म, हिंडनबर्ग रिसर्च ने, जिस पर अमेरिकी इंटेलीजेंस के साथ संबंध होने का संदेह है, जनवरी में मोदी के निकटस्थ कहे जाने वाले अरबपति गौतम अदानी को निशाना बनाया। इससे अदानी समूह को 120 बिलियन डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ। लेख के मुताबिक हिंडनबर्ग के पास मोदी से करीबी संबंध रखने वालों की खुफिया जानकारी हो सकती है। इसी आधार पर हिंडनबर्ग ने अदानी समूह को निशाना बनाया।
उसी महीने जब अदानी पर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आई, जनवरी में ब्रिटिश सरकार के स्वामित्व वाली बीबीसी ने एक डॉक्यूमेंट्री जारी की, जिसमें 2002 में गुजरात में हुए सांप्रदायिक दंगों में मोदी की भूमिका का आरोप लगाया गया था, जब वे वहां के मुख्यमंत्री थे। एंगडाहल के मुताबिक बीबीसी की रिपोर्ट ब्रिटेन के विदेश कार्यालय द्वारा बीबीसी को दी गई अप्रकाशित खुफिया जानकारी पर आधारित थी।
लेख के मुताबिक एक और संकेत मिलता है कि वाशिंगटन और लंदन भारत में सत्ता परिवर्तन चाहते हैं। 92 वर्षीय अमेरिकी उद्योगपति जॉर्ज सोरोस ने 17 फरवरी को वार्षिक म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में कहा कि अब मोदी के गिने-चुने दिन हैं।
सोरोस ने कहा, भारत में लोकतंत्र है, लेकिन इसके नेता नरेंद्र मोदी लोकतांत्रिक नहीं हैं। सोरोस ने कहा कि एक तरफ भारत क्वाड (जिसमें ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान भी शामिल हैं) का सदस्य है, लेकिन यह रूस से भी बहुत घनिष्ठ संबंध रखते हुए व्यापार कर रहा और तेल खरीद रहा है। सोरोस ने कह कि मैं भारत में एक लोकतांत्रिक पुनरुद्धार की उम्मीद करता हूं।