जहां विवाह एक अत्यंत पवित्र कल्याणकारी संस्कार है। जो स्त्री पुरुष को वंश वृद्धि, पारिवारिक मूल्यों के संरक्षण और सामाजिक उत्तरदायित्वों के भीतर एकीकृत करता है। इसलिए समलैंगिकता का वैधीकरण विवाह भारत जैसे देश में भीषण विसंगतियों का कारण बनकर भारत राष्ट्र की दिव्य वैदिक मान्यताओं, सांस्कृतिक प्रथाओं और सामाजिक विकास की विविध साधन पद्धतियों को ध्वस्त कर मानवीय अस्तित्त्व के लिए अनिष्टकारक सिद्ध होगा।

भारत के शीर्षस्थ धर्माचार्य संत सत्पुरुष इस प्रकार के अप्राकृतिक अस्वाभाविक विचार से स्तब्ध हैं। इस प्रकार के अनुचित और अनैतिक प्रयोग भारत में सर्वथा अस्वीकार्य रहे हैं। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्रपुरी महाराज ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों को पत्र लिखकर समलैंगिक विवाह को मान्यता दिए जाने संबंधी याचिका की सुनवाई में उन्हें भी अपना पक्ष रखने का अवसर दिए जाने की मांग की है।

उन्होंने कहा कि विवाह एक पुरातन संस्था है। विवाह संस्था में संशोधन का काम लोकसभा और विधानसभाओं पर छोड़ दिया जाना चाहिए। जल्दबाजी में इस पर विचार किए जाने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इसके लिए समितियों का गठन कर पूरे देश में समाज की राय लिया जाना भी आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक संबंधों की मान्यता से जुड़ी याचिकाओं को लेकर अखिल भारतीय सनातन परिषद के अंतरराष्ट्रीय महामंत्री पुरषोत्तम शर्मा ने धर्माचार्यों की राय लेने का अनुरोध सुप्रीम कोर्ट से किया है। साथ ही, चिंता भी जताई है कि यदि समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता मिलती है तो समाज में विघटन और नैतिक पतन की स्थितियां पैदा होंगी।