यमकेश्वर में आजादी के बिगुल फॅूकने वाले क्रान्तिकारियों की क्रान्तिकारी स्थली, ताल मण्डी चढी आपदा की भेंट, दुकान के खण्डर बहकर समतल में हुए तब्दील
यमकेश्वरः इतिहास के पृष्ठों को अगर पलटा जाय तो और उन पर मनन किया जाय तो जितनी भी सभ्यतायें या नगर नदी के किनारे बसे उनका अंत भयावह आपदा या बाढ के कारण ही अतिंम विकल्प के रूप में देखने को मिलता है। शायद हमारे पूर्वजों ने खासकर जो पहाड़ में निवास करने गये, उन्होंने इतिहास से सबक लेकर अपना निवास पहाड़ों में बनाये, जबकि उनके पास नदी के किनारे का विकल्प मौजूद था। अतः उनकी सोच और दृष्टिकोण बहुत ही परिपक्व और वैज्ञानिक था, उन्होंने इतिहास में पूर्व की सभ्यताओं के अंत का अनुकरण किया और नदीयों के किनारे बसने की बजाय उॅचे स्थानों में घर बनाये और गॉव बसाये।
इतिहास में चाहे सिंधु सभ्यता रही हो या फिर मैसोपोटामिया की सभ्यता या फिर मिश्र यानी नील नदी की सभ्यता, इन सभी सभ्यताओं का अंत लगभग नदी के बाढ के कारणों से ही हुआ है। ऐसे ही यमकेश्वर की ताल घाटी में कण्डरह मण्डी और ताल मण्डी कुशासील मण्डी जो ताल और त्याड़ो नदी के किनारे अवस्थित थी उनका जीवन सफर आपदा के कारण ही हुआ है। यमकेश्वर की तालघाटी में एक समय में कण्डरह और ताल एवं कुशासील मण्डी पूरे यमकेश्वर की अर्थव्थ्यवस्था की रीढ मानी जाती थी, आज यह सब नदी में बहकर विश्राम ले चुकी हैं।
तालघाटी का इतिहास पर यदि नजर डाली जाय तो यहॉ पर अग्रेंजों के समय ताल मण्डी के पास स्थित बगीचे में अग्रेंजों की शराब की छोटी सी मधुशाला थी। कहा जाता है कि दो बार वहॉ पर तात्कालीन सुल्ताना डाकू उस मधुशाला को लूटने के लिए आया था और लूटकर चला गया था। उसके बाद आजादी के 1942 के आंदोलन में यमकेश्वर के कुछ क्रान्तिकारियों ने इस भट्टी को तोड़कर अग्रेंजो का विरोध दर्ज किया था और यमकेश्वर में आजादी के क्रान्ति का झण्डा बुलंद किया था। किमसार के कुशालमणी कण्डवाल, कन्हैयाला भट्ट, बेगरा के माधो सिंह रावत, रामजीवाला के नारायण दत्त भट्ट, गंगा सिंह, और खुशाल सिंह जिन्होने ताल घाटी में अग्रजों की अधीकृत मदीरा की भट्टी को दो बार तोड़ दिया था और ब्रिटीश गढवाल के कमिश्नर ने इनको बागी घोषित कर इनको पकड़ने के लिए आदेश जारी कर दिये थे, ये लोग कुछ समय तक थुपलडंग की गुफा में दिन में रहकर आंदोलन की योजना को बनाते थे। उसके बाद काण्डी से गॉधी जी के असहयोग आंदोलन में यमकेश्वर के कई क्रान्तिकारी शामिल हुए।
आजादी के बाद तालघाटी में ताल मण्डी भी कण्डरह मण्डी से छोटी मण्डी थी। यहॉ पर सबसे पहले किमसार के स्व0 फतेराम कण्डवाल ने दुकाने बनायीं जिसमें उन्होंने सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान, और परचून की दुकान खोली, जब तक आवागमन का एक मात्र रास्ता तालघाटी थी तब तक ताल मण्डी में लगभग एक दर्जन से अधिक दुकानें थीं। ताल मण्डी में मल्ला बनास, तल्ला बनास, जोगियाना, भूमियाकिसार, कसाण, नौंगाव, उड्डा, तिमली, अकरा, सिलसारी, पम्बा, टोला, कुलेथा, आदि गॉव के लोग सामान लेने आते थे, तथा यहॉ से ही व्यापार होता था। उनके साथ कई सालों तक मल्ला कोटा के स्व0 बालकिशन परिन्दयाल की परचून की दुकान काफी समय तक संचालित होती रही। फतेराम कण्डवाल के देहवसान होने के बाद कई वर्षो तक उनकी दुकान किराये पर रहीं,जिनमें तल्ला बनास तल गॉव के चन्दर सिंह, घोरगड्डी के स्व0 कृपाल सिंह जिनकी चाय की दुकान, यहॉ पर जगमेहन सिंह रावत की धान कुटाई और आटे की चक्की तथा रजाई गद्दे बनाने का काम था। चन्दर सिंह नेगी की परचुन की दुकान के साथ उनका सरिया सीमेंण्ट आदि सामान का क्रय विक्रय करते थे। कीरत सिंह रावत, स्व0 मोहन सिंह रावत की स्टेशनरी की दुकान व अभी तक सूबेदार रिटायर्ड आनंद सिंह रावत की दुकान उपलब्ध थी।
ताल में इसी जगह पर काफी समय तक गेंद मेला और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता था, साथ ही स्कूलों के गढदेवा खेल प्रतियोगिता का आयोजन भी इसी स्थल पर होता था। इसी ऐतिहासिक मण्डी के प्रांगण में रामलीला का आयोजन कई वर्षो तक हुआ। यह स्थल भी 1950 से 2005 तक काफी गुलजार रहा, लेकिन अन्य गॉवों में सड़क जाने से यह क्षेत्र विरान होता गया और धीरे धीरे दुकानों का संचालन बंद हो गया। विगत दिनों में हुई आपदा में यहॉ पर स्थित शोभास्थली और सम्पूर्ण दुकानें इस आपदा की भेंट चढ गयी और यह स्थल अब पूरी तरह नदी के रेत में समतल रूप में तब्दील हो चुका है। जूनियर हाईस्कूल एवं प्राईमरी स्कूल एवं ताल बॉदणी जाने वाला रास्ता टूट गया है। यहॉ की जो तस्वीरें सोशल मीडिया से प्राप्त हो रहीं हैं, वहं इस भयावह मंजर की दस्तक देकर एक चुभन दे रही हैं, कि आपदा ने इस क्रान्तिकारी स्थली को अपने में समा लिया।
हरीश कण्डवाल मनखी की कलम से।