उत्तराखण्ड वासियों का कुल देवता – नरसिंह देवता के सम्बंध में जानिए विस्तृत जानकारी
उत्तराखण्ड को देवी देवताओं की भूमि कहा जाता है, यहॉ हर घर में देवी देवता निवास करते हैं। यहॉ हर घर में किसी ना किसी रूप में कुल देवता के रूप में देवी और नरसिंह नागरजा, गोल्जू, निरंकार, भैरव आदि देवता का थान और पूजन होता है। नरसिंह देवता और अन्य देवता जैसे नागर्जा, गोलजु आदि लगभग सभी घरों में थान हैं। देवी का गॉव में मंदिर हैं तो नरसिंह देवता का मंदिर या थान हर घर मेंं बना हुआ रहता है। नरसिंह देवता के जागर जागरी या डांगरी के द्वारा लगाया जाता है। इसमें जागरी द्वारा नरसिंह देवता के 09 रूप और 52 वीर के रूप में गाथा गायी जाती है। नरसिंह देवता को डौंर थाली से वादन करके जागरी उसके जागर गीत गाता है, उसका साथी जो थाली बजाता है वह भौंण पूजता है, जिसका मतलब वह कोरस में गाता है। नरसिंह देवता के घडियाली लगाते समय जागरी नरसिंह देवता का आहवान कर सभी देवताओ का आह्वान कर बिरदवाली करके सुमिरन करने के बाद तब नरसिंह देवता के जागर कुछ इस प्रकार गाता है-
तेरू गुरू गोरखनाथ को आदेश
तेरू मॉ काली को आदेश
तेरू जोशीमठ की नगरी को आदेश
तैरू नेपाली चिमटा,
तेरू टिमरू को सोठा को आदेश
जलती जलंधरी तेरी धूनी को आदेश।
*तिरिया नरसिंह जाग थड़िया नरसिंह जाग, अघोड़ी नरसिंह जाग, रामेश्वरी नरसिंह जाग, दूधी नरसिंह जाग, रुद्री भैरव जाग काल भैरव जाग, उखीमठ जाग, जोशीमठ जाग, नौ नाग जाग, नौ देवी जाग, गुरू गोरखनाथ जाग*।
उसके बाद नरसिंह देवता का पश्वा हुंकार भरता है, गर्जना करता है और नाचने लगता है। नरसिंह देवता का पश्वा कई बार चमत्कारी प्रभाव भी दिखाता है, जैसे संगल से खुद को पीटना, जलते अंगारों में नाचना, जलते अंगारों को चबा जाना, ऐसे ही कई प्रकार से चमत्कारी प्रभाव दिखाता है। आज के इस लेख में हम उत्तराखण्ड के प्रमुख कुल देवता नरसिंह देवता के बारे में जानकारी साझा करेगें।
हिंदू ग्रन्थों के अनुसार नरिंसह देवता को विष्णु का चौथा अवतार माना गया है, जिसमें भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु हिरण्यकश्यप को मारने के लिए अवतार लेते हैं। इस अवतार में जिनका मुॅह शेर और धड़ मानव का था। अतः नरसिंह देवता को हिंदू धर्म ग्रन्थों में इसी रूप से पूजा करने की मान्यता है। लेकिन वहीं उत्तराखण्ड में नरसिंह देवता को भगवान विष्णु के चौथे अवतार के रूप में न पूजकर एक सि़द्ध योगी नरसिंह देवता के रूप में पूजे जाने का विधान हैं, यहॉ उनको जोगी का रूप माना जाता है। जागर में गाथा के अनुसार नरसिंह देवता का जो स्वरूप उसमें उनको जोगी मानकर उनके कंधे पर खरवा की झोली गले मे रुद्राक्ष की माला, तन पर भभूत, और एक हाथ पर ढाई गज का चिमटा और ढाई गज की फावड़ी दूसरे हाथ पर भष्म कंकण, धारण किये हुए मुट्ठी में टिमरू का डंडा लिये रहते है। इनको लौंग का जोड़ा औऱ पान का बीड़ा पूजा में चढ़ाया जाता है। नरसिंह देवता के इन्हीं प्रतीकों को मानकर उन्हें देवता के रूप में मानने एवं पूजने का प्रावधान है।
उत्तराखण्ड के गढवाल और कुमाऊं दोनों में नरिंसह देवता की पूजा होती है। नरसिहं के नौ रूपों की पूजा होती है। इन्हें नाथपंथी देवता के रूप मेंं माना जाता है।
लोक कथा के अनुसार कहा जाता है कि भगवान शिव ने इनकी उत्पत्ति की थी। इनकी उत्पत्ति के विषय में अलग अलग अवधारणायें प्रचलित हैं, लेकिन जो अवधारणा अधिक मान्यता है वह यह है कि भवगान शिव शंकर ने केसर के बीज बोये और उनमें पानी की जगह दूध डाला। जब केसर का पौधा उगा बाद में जब डाली बनी तो दूध से ही सींचा गया। बाद में जब केसर का पेड़ बन गया तो उस पर 09 फल लगे और वह 09 फल अलग अलग स्थान/खंडों पर गिरे तब जाकर 09 भाई नरसिंह पैदा हुए। जनश्रुति है कि पहला फल गिर कर केदार घाटी में पड़ा वहॉ केदारी नरंसिंह पैदा हुए वहीं दूसरा फल बद्रीनाथ मेंं पड़ा वहॉ ब्रदी नरसिंह के नाम से प्रसि़द्ध हो गये। इसी तरह तीसरा फल दूध के कुंड में पड़ा वह दूधिया नरसिंह कहलाये। दूधिया नरसिंह का मंदिर जोशीमठ में अवस्थित है, इन्हें भगवान बद्रीनाथ का मामा माना जाता है। चौथा फल डौडियों के कुल गिरा वहॉ तब डौंडिया नरसिंह पैदा हुए। दूधिया नरिंसह को शांत और दयावान माना जाता है, जबकि डौंडया दूधिया नर्सिंग विकृत रूप होता है।
यह नौ भाई नरसिंह बाद में गुरू गोरखानाथ के शिष्य बने जो कि बहुत ही वीर हुए। यह सब बाद मेंं सन्यासी बन गये , इनकी लंबी जटायें उनके पास खैरवा की झोली, टिमरू का सोठा (डंडा) चिमटा आदि चीजें होती थी। इन नौ भाई नरसिंह मेंं सबसे बड़ा दूधिया नरसिंह को माना जाता है जो शांत और दयालू स्वभाव के माने जाते हैं। उत्तराखण्ड के अधिकांश लोगों के कुल देवता दूधिया नरसिंह ही है। इनको दूध चढाया जाता है और घडियाली लगाने के बाद पूजा में रोट काटा जाता है। 9 नरसिंह भाई में से यदि कोई एक भाई उग्र या विकृत रूप हो जाता है तो वह डौंडिया नरसिंह का रूप धारण कर लेता है। यह नरसिंह हंकार या घात का प्रतिरूप माना जाता है ।
जागर विधा के जानकार श्री भगवती प्रसाद सुयाल बताते हैं कि जागरों के अुनसार गुरू गोरखनाथ के शिष्य के रूप में इनके नौ नाम के वीरों का वर्णन है। *दूधिया, कृष्णा अवतारी नाथ, स्यून्दी नाथ, केदारनाथ, बद्रीनाथ, कालनाथ, रामेश्वरी, जटाधारी, और ओखिनाथ*।
यह 09 भाई नरसिंह एक साथ चलते हीं हैं, इनके साथ में ये 9 गण इंगला वीर, पिंगला वीर, जती वीर, थती वीर, घोर अघोर वीर, चंड वीर प्रचंड वीर देवी देवता और भैरव, मसाण भी चलते हैं। जागरों के अनुसार नौ नाग, अष्ठ भैरव, अठारह कलवे, 64 जोगिनी 52 वीर, 56 कोट कलिंका की शक्ति चलती हैं, साथ ही इनको 84 सि़द्ध प्राप्त जोगी माना जाता है। इनके बारे में कहा जाता है कि नरसिंह देवता कुल की रक्षा करते हैं, लेकिन यदि किसी कारण वश यह रूष्ठ हो गये तो घातक भी बन जाते हैं, तब इनकी शक्ति के आगे कोई नहीं टिक पाता है। कहा जाता है कि यदि कोई परिवार नरसिंह देवता की 06 पीढी तक किसी ने पूजा नहीं की तो यह सातवीं पीढी का सर्वनाश कर देते हैं। इनके बारे में एक और जनश्रुति है कि पिता भष्मासुर और माता महाकाली के पुत्र के रूप में जागर गाते समय इनका आहवान किया जाता है।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।