आखिर क्यों मनाया जाता है चेटीचंद का त्यौहार, जानिये क्या है इसका महत्व
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में चन्द्र दर्शन की तिथि को सिंधी समुदाय के लोगों चेटीचंड मनाते हैं इस दिन सिंधी समुदाय के लोग झूलेलाल मंदिरों में पूजा करते हैं.यह इनके सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है.
झूलेलाल जी को जल के देवता वरुण का अवतार माना जाता है. चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में चन्द्र दर्शन की तिथि को सिंधी चेटीचंड (ChetiChand) मनाते हैं. सिंधी समुदाय (Sindhi community) के लोगों के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक झूलेलाल जयंती है. झूलेलाल जयंती पर सिंधी समुदाय के लोग झूलेलाल मंदिरों (Jhulelal Temples) में जाते हैं और श्रद्धा भाव के साथ उनकी पूजा करते हैं.
संत झूलेलाल को लाल साईं, उदेरो लाल, वरुण देव, दरियालाल और जिंदा पीर भी कहा जाता है. सिंधी हिंदुओं के लिए संत झूलेलाल उनके उपास्य देव हैं. इस त्यौहार को चेटी चंड भी कहा जाता है. मान्यताओं के अनुसार संत झूलेलाल वरुण देव के अवतार माने जाते हैं. सिंधी हिंदुओं के लिए झूलेलाल झूलेलाल का मंत्र बिगुल माना जाता है. चंद्र-सौर हिंदू पंचांग के अनुसार, झूलेलाल जयंती की तिथि वर्ष और चेत के हिन्दू महीने की पहली तिथि को मनाया जाता है. सिंधी समुदाय के लोगों के लिए यह तिथि बेहद शुभ मानी जाती है क्योंकि इस दिन से सिंधी हिंदुओं का नया साल प्रारंभ होता है. हर नया महीना सिंधी हिंदुओं के पंचांग के अनुसार नए चांद के साथ प्रारंभ होता है इसलिए इस विशेष दिन को चेटी चंड भी कहा जाता है.
जल के देव होने के कारण इनका मंदिर लकड़ी का बनाकर जल में रखा जाता है. इसके अलावा इनके नाम पर दीपक जलाकर भक्त आराधना करते हैं. चेटीचंड के अवसर पर भक्त इस झूलेलाल भगवान की प्रतिमा को अपने शीश पर उठाते हैं जिनमें परम्परागत छेज नृत्य किया जाता है. सिंध प्रांत से भारत में आकर भिन्न भिन्न स्थानों पर बसे सिंधी समुदाय के लोगों द्वारा झूलेलाल जी की पूजा की जाती हैं. तथा बहिराना साहिब के साथ छेज और नृत्य के साथ झांकी निकाली जाती है. झूलेलाल जी इष्ट देव हैं. सागर के देवता, सत्य के रक्षक और दिव्य दृष्टि के महापुरुष के रूप में इन्हें मान्यता दी गई हैं. ताहिरी, छोले (उबले नमकीन चने) और शरबत आदि इस दिन बनाते हैं तथा प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं. चेटीचंड की शाम को गणेश विसर्जन की तरह बहिराणा साहिब की ज्योति विसर्जन किया जाता हैं.