अनकही मोहब्बत (भाग 1) मनखी की कलम से।

अनकही मोहब्बत (भाग 1) मनखी की कलम से।
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                       हरीश कंडवाल मनखी की कलम से

सुबह के 7:00 बज रहे थे स्कूल में प्रार्थना सभा हो रही थी अजय अपनी लाइन के आगे वाली लाइन मैं किसी को ढूंढ रहा था लेकिन उसे नजर नहीं आ रहा था मन कुछ उद्वेलित था, सामने गुरुजी खड़े थे तो नजरें इधर उधर भी नहीं घुमा सकते थे, क्योकि यदि उनकी नजर मुझ पर पड़ गई तो कौन सा गाल लाल और कान खिंच जाय मालूम नहीं इसलिये अजय ने आँखे बंद कर प्रार्थना “वह शक्ति दो दया निधे कर्तव्य मार्ग पर डट जाए’ को लय बद्ध होकर सामूहिक गाने लगा, मुँह से सिर्फ शब्द प्रफुटित हो रहे थे दिल औऱ दिमाग मे तो तस्वीर सफेद रिबन से बंधी दो चुटिया बालों वाली, सफेद दुपट्टा सलीके से गले में डालने वाली की आ रही थी, मगर वह प्रार्थना सभा मे नजर नहीँ आ रही थी, बस मन को समझाया जा रहा था कि शायद आज आगे की पंक्ति में होगी या फिर उसे आने में देर हो गई होगी।

         मानसी भी यही सब सोच रही थी, की आज अजय स्कूल आया होगा या नहीं।  अजय आठवी पास करके इंटर कॉलेज में 9 वी में प्रवेश लिया था,  जब क्लास टीचर ने अगले दिन सुबह अजय से सारी क्लास के सामने परिचय पूछा  तो मानसी ने उसे पीछे मुड़कर देखा, मानसी उसकी अगली वाली सीट यानी स्टूल में बैठी हुई थी।  अजय सीधा सरल स्वभाव का लड़का, लग रहा था, मानसी भी वैसी ही थी, उसे भी सीधे लड़के ही अच्छे लगते थे।  खैर उन दोनों में कभी बात नहीँ हुई, बस दोनो एक दूसरे को निहारते और फिर नजरें नीचे कर लेते।

हाईस्कूल तक इश्क औऱ मोहब्बत या आकर्षण का ज्ञान नहीँ होता है, उस समय बालकपन रहता है, तब ना किसी के प्रति बुरा ख्याल आते हैं औऱ नही कोई धारणा क्योकि तब दिल साफ होता है। लेकिन जैसे ही 11 वी में दोनो ने प्रवेश लिया इधर किशोरावस्था ने उनको अपने आगोश में लेना शुरू कर दिया अब  कपोल कल्पनाओं का संसार बनना शुरू हो गया। अजय औऱ मानसी दोनो का आकर्षण बढ़ने लगा।  इधर दोनों अपना संसार एक दूसरे के लिये सजा बैठने लगे।

     अजय ने कभी मानसी को अपनी दिल की बात नहीं कही और न ही मानसी ने कभी अपने दिल के जज्बात अजय को बताए, बस अनकही मोहब्बत दोनो के मन मे हिलोरें मार रही थी।। अजय  बस उसको एक नजर भर देख लेता तो उसकी बेचैनी दूर हो जाती, और मानसी कभी चुन्नी जानबूझकर पीछे अजय के डेस्क में डाल देती तो कभी स्टूल को पीछे करती, ताकि उसे अजय की एक झलक मिल जाय ।

    अर्द्ध वार्षिक परीक्षा में सर्दियों में सब बाहर स्कूल के छत या मैदान में बैठे रहते तो वह चुपके चुपके एक दूसरे को निहारते हल्की मुस्कराहट देकर एक दूसरे को अपने अनकहे प्यार का इजहार करते।  उस दौर में मोहब्बत दिल से होती थी, लड़की के काफी पीछे दूर  तक जाना उसको छोड़कर आना , उसके आस पास खड़े भी रहना तो गज की दूरी तुझे ना छूना है मजबूरी का फार्मूला चलता था।   उस समय स्कूल में हर किसी की ऐसी ही मोहब्बत होती थी  बस एक दूसरे को निहारना, मुस्कराना एक दूसरे को देखे बगैर बेचैनी होना, आवाज सुनने के लिये कान लगाए रखना,  उसकी कक्षा में तारीफ सुनना आदि ये सब दिल को अच्छा लगता था।

  अक्सर क्लास में सारे दोस्त एक दूसरे को कहते देख  भाभी आ गई, लेकिन बात इतनी तक ही सीमित रहती, कोई मानसी की आलोचना करता तो अजय को बर्दाश्त नहीँ होता मन ही मन कुढ़ता, क्योंकि वह अपने दिल के प्यार के तार को सबके सामने नही झनझनाना नहीँ चाहता था, यही मानसी का भी हाल था, यदि कोई अजय की तारीफ कर दे या उसकी खूबसूरती और व्यवहार के बारे मे कह देते तो खुशी औऱ जलन के दोनों भाव में आते, लेकिन दोनों भावों को दबाकर रखती।

     नया साल आया तो दोनों ने एक दूसरे को  ग्रेटिंग कार्ड देने की सोची,  लेकिन दे कैसे, अभी तक तो बस निगाहों ने शर्माते हुए नैनो से बात की है,  आमने सामने मिलने पर तो बस नजरें झुकाकर चली जाती थी मानसी, यदि किसी के पास दे  भी तो विश्वास कैसे किया जाय, यह बात मन को और डरपोक बना रही थी।  इस बार अजय ने सोचा कि नए साल का ग्रेटिंग में कुछ शायरी लिखकर इजहार करूँ, चार पेज का प्रेम पत्र भी लिख दिया, देंने की पूरी योजना भी बना दी कि इस बार कॉपी या किताब के अंदर छुपाकर दूंगा, जैसे जैसे दिसम्बर का महीना आखिरी तिथि की ओर बढ़ रहा था अजय की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी,  हर रोज नए दिवास्वपन, फिल्मी गीतों में अपने को हीरो और मानसी को अपनी नायिका देखता था।  नव वर्ष के ग्रीटिंग कार्ड में अजय ने बहुत सुंदर शायरियां लिखी हुई थी कुछ दिल को तोड़ने वाली और कुछ दिल को जोड़ने वाली कुछ नए साल की और कुछ अपने दिल की। एक शायरी कुछ इस प्रकार थी,

उगता हुआ सूरज रोशनी दे आपको
खिलता हुआ फूल खुशबू दे आपको
हम तो दिले इजहार नहीं कर पाए
नव वर्ष में खूब सारा प्यार मिले आपको।

      इधर मानसी को इसकी भनक तक नहीं थी,  घर में पानी भरते हुये कभी किताब पढ़ते हुए कभी रोटी बनाते हुए उसे बस अजय का ही ख्याल आता था। तरुणी उम्र में अजय ही उसका राजकुमार था। अक्सर हिंदी फिल्मों में वह खुद को नायिका और अजय को नायक समझकर दिवास्वपनो में खो जाती थी। किशोरावस्था में अक्सर यह सब होता है लेकिन तब युगल एक दूसरे में अपना संसार सजा बैठता है ऐसे ही कुछ हाल अजय और मानसी के थे।

    लेकिन वक्त भी शायद अजय और मानसी की प्रेम की परीक्षा ले रहा था उसी समय राजकीय विद्यालयों की शीतकालीन अवकाश की घोषणा हो गई, अजय का प्रेम पत्र हिंदी के किताब के अंदर ही रह गया और उसके  अरमानों पर पानी फिर गया अब तो उसे देने के लिए कोई और रास्ता नहीं बचा  था । मायूस मन से वह घर आया और अपने प्रेम पत्र को संभाल कर रख दिया, ग्रीटिंग कार्ड भी रख दिया।

       अजय को लगा कि वह अब मानसी को अपनी दिल की बात नहीँ कह पायेगा, सारी उम्मीदे टूट चुकी थी। इधर मानसी के लिए शीतकालीन की छुट्टियां भारी लग रही थीं दिन तो जैसे तैसे कट जाते लेकिन राते तन्हाई में गुजरती।।

अगले दिन अजय को याद आया कि अभी तो नए साल के 4 दिन बचे है, पोस्ट ऑफिस जाकर पत्र पोस्ट कर देता हूँ।  डरते डरते उसने अपने ख्यालो की दुनिया के एक एक शब्द जो पत्र में लिखे थे अपनी दिल की हर बात कही थी उसे वह डाक के पेटी में डाल आया।

क्या प्रेम पत्र मानसी को मिल पायेगा या मानसी उसे स्वीकार कर लेगी, कहानी का शेष अगले अंक मे.।

Mankhi Ki Kalam se

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