यमकेश्वर क्षेत्र की अधिष्ठात्री ईष्ट देवी मॉ विन्ध्यवासनी मंदिर के लीज पर देने से छीन जायेगें सिरणी जैसे मूलभूत अधिकार

यमकेश्वर क्षेत्र की अधिष्ठात्री ईष्ट देवी मॉ विन्ध्यवासनी मंदिर के लीज पर देने से छीन जायेगें सिरणी जैसे मूलभूत अधिकार
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यमकेश्वरः खेत में हल लगाने से पहले, गायों गर्मियों के बाद बरसात में खेत में ले जाने से पहले, प्राईमरी से लेकर आगे तक की परीक्षा पास करने के बाद सिरणी बॉटने, शादी के बाद दुवारबाट के अगले दिन जोड़े सहित जाना, और जीवन की हर शुभ कार्य और मुसीबत में मॉ विन्ध्यवासनी का स्मरण करना, यमकेश्वर क्षेत्र के तालघाटी, त्याड़ो घाटी, डांडामण्डल, पयालस्यूं क्षेत्र के निवासियों की अधिष्ठात्री ईष्ट देवी मॉ विन्धयवासनी पर अटूट विश्वास और आस्था है। यहॉ के क्षेत्र वासियों के कण कण में मॉ विन्ध्यवासिनी बसी हुई हैं। मॉ विन्ध्यवासनी का यह प्राचीन मंदिर क्षेत्र की आस्था और विश्वास का मंदिर हैं, यहॉ पर विराजमान माता विन्ध्यवासनी क्षेत्र की अधिष्ठात्री और ईष्ट देवी के रूप में सबसे पहले पूज्यनीय है। मॉ विन्ध्यवासनी मंदिर में हर साल रामनवमी के अवसर पर मेले का आयोजन होता है, जिसमें स्थानीय लोग आस्था और श्ऱद्धा भाव से दर्शन करने आते हैं।

           यह मंदिर स्थानीय निवासियों की एक भौगोलिक पहचान है। सदियों से यह मंदिर स्थानीय लोगों की पवित्रता और उनकी अगाध भाव का प्रतीक के रूप में है। मॉ भगवती के प्रति स्थानीय निवासियों की इतनी अगाध ़श्रद्वा रहती है कि यदि किसी मांगलिक कार्य या अन्य कार्य को करने से पहले कोई विघ्न नजर आ रहा होता है तो लोग भेली या आटे का प्रसाद बनाकर मॉ विन्ध्यवासनी का स्मरण कर कार्य को निर्विघ्न रूप में पूर्ण करने की कामना करते हैं, और कार्य पूर्ण होने के बाद मंदिर में जाकर भक्ति भाव से प्रसाद को सिरणी के रूप में पूरे गॉव में बॉटते हैं। हमारे पूर्वज तो हर मौसम में हल लगाने से पहले रोपाई करने से पहले फसल के सफलता पूर्वक कटने की कामना से लेकर पशुओं की सुरक्षा से लेकर घर में सुखद समाचार मिलने पर दर्शन करने जाते हैं, और भक्ति एवं श्ऱ़द्धा के साथ सिरणी को बॉटकर सबकी कुशलता की कामना करते हैं। पहले हमारे यहॉ के निवासी बाहर से जब अपनो ंको पत्र भेजते थे तब उसमें मॉ विन्ध्यवासनी से ही परिवार की कुशलता की कामना करने की पंरपरा रही है। यह मंदिर हमारे लिए सिर्फ अटूट आस्था और विश्वास हीं नही बल्कि मा विन्ध्यवासनी हमारे रग रग में बसी हुई हैं, इनके बिना हम स्थानीय अपने अस्तित्व को समझते ही नहीं है। ऐसे में यदि बाहरी लोग आकर हमारे इस मंदिर को कोई लीज पर लेकर हमारी आत्मा को छीनने का प्रयास करेगें तो यह हम सबके लिए असहनीय है।

                        उक्त मंदिर में पिछले सालों से कुछ बाहरी लोगों के द्वारा ट्रस्ट बनाया गया है, जिसमें कोई स्थानीय व्यक्ति पदाधिकारी और सदस्य नहीं है। उक्त ट्रस्ट द्वारा शासन प्रशासन से 99 साल के लीज पर मंदिर को लेने और निर्माण करने की अनुमति मॉगी गयी है। जबकि मंदिर राजाजी नेशनल पार्क के अन्तर्गत आता है। यदि उक्त मंदिर को लीज पर लेने की अनुमति मिल जाती है तो विन्ध्यवासिनी मंदिर के प्रति स्थानीय व्यक्तियों के अगाध श्रद्धा और अटूट विश्वास पर सीधा प्रहार होगा। इस मंदिर का जो प्राचीन स्वरूप है, और जिस अवस्था में बना है, उस पर अन्य कोई भी निर्माण नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि उक्त मंदिर को जिस स्थान पर बनाया गया है, वह एक पहाड़ी स्थल पर है, और वहॉ पर जगह नहीं है, साथ ही मंदिर की पुरातन और आस्था के साथ तथाकथित ट्रस्ट के द्वारा अपनी मनमानी की जायेगी। मंदिर कोई रिजॉर्ट या संस्थान नहीं है, जिसको लीज पर लिया जाय, यह किसी की निजी संपति नहीं है, यह आम जनमानस का अटूट विश्वास है, उनकी आस्था है, उनकी प्रतिष्ठा है।

              यह हमसे हक हकूक को छीनने का प्रयास किया जा रहा है, इस तरह से मंदिर के प्रति जो हमारी अगाध श्रद्वा भाव है, उस पर डाका डालने का कूटरचित प्रयास किया जा रहा है। हमारी मूल आस्था पर प्रहार है। जिलाधिकारी कार्यालय पौड़ी के द्वारा राजस्व विभाग, उत्तराखण्ड शासन को प्रेषित पत्र में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि उक्त मंदिर को तथाकथित ट्रस्ट के द्वारा 99 साल के लीज पर लेकर निर्माण कार्य किये जाने की अनुमति मॉगी जा रही है। इस प्राचीन मंदिर पर पूर्ण रूप से स्थानीय निवासियों का अधिकार है, और साथ ही इस मंदिर का रखरखाव भी स्थानीय लोग करते आ रहे हैं, जबकि तथाकथित लोगों के द्वारा अपने आय के लिए ट्रस्ट बनाकर अपना एकाधिकार करने का प्रयास किया जा रहा है।
मॉ विन्ध्यवासनी के मंदिर पर लीज पर दिया जाना उचित नहीं होगा, क्योंकि मंदिर क्षेत्र राजाजी नेशनल टाईगर रिजर्व क्षेत्र के अन्तर्गत आता है,नियमानुसार पार्क के क्षेत्र के अंदर इस तरह से मंदिर का निर्माण एवं पुराने स्वरूप में किसी भी प्रकार का परिवर्तन करना आस्था और विश्वास पर सीधा प्रहार है। हम क्षेत्रवासियों की शासन प्रशासन से अनुरोध है कि मंदिर को लीज पर नहीं दिया जाय, और मंदिर जिस अवस्था में बना है, उसको वैसे ही रहना दीजिए, वहॉ पर किसी भी प्रकार का अतिरिक्त निर्माण वहॉ की भौगोलिक स्थिति के अनुसार उचित नहीं होगा, क्योंकि मंदिर जिस स्थल पर है, वह जगह कठोर चट्टान और संकरी जगह पर है, जहॉ पर निर्माण कार्य होने से मंदिर के अस्तित्व को खतरा हो सकता है।

मनखी की कलम से।

Mankhi Ki Kalam se

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