उत्तराखंड

मुफ्त का राशन अल्प कालीन सुख, दीर्घकालिक मीठा जहर, पहाड़ बचाने है तो खेतोँ की जुताई करना इसलिये है आवश्यक

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क्यों आवश्यक है खेतों में हल लगाना (एस पी जोशी) 

देहरादून: जैसा कि सर्वविदित है कि उत्तराखण्ड के पहाडी क्षेत्रों में लगातार बादल फटना या आपदा आना दो-तीन दशकों से लगातार जारी है और यह भारी समस्या का कारण हमारे उत्तराखण्ड के पहाडी क्षेत्र के लिए यह किसी बिडम्बना से कम नही है, मैने स्वयं से आकलन किया और लगभग आठ दस वर्षों से अनुभव भी किया है कि पहाडी क्षेत्र में ही क्यों बादल फट रहे हैं ? क्यों अचानक आपदाएं आ रही हैं ? क्यों हमारे पहाडी क्षेत्र का लगातार नाश हो रहा है ? मेरा एक सबसे बडा आकलन जो सामने निकल कर आया वह मुख्य रूप से यह है कि लगातार पहाडी क्षेत्र में खेत बंजर हो रहे हैं,और खेतों का बंजर होने का कारण सीधे-सीधे सरकारों की नाकामी है, लगातार पलायन का दंश पहाड़ी क्षेत्र झेल रहा है,लगातार खेत बंजर हो रहे हैं,लगातार हम अपनी पारंपरिक खेती से दूर हो रहे हैं।  सरकार मुफ्त का राशन देकर शायद वोट तो ले सकती है लेकिन कटु सच्चाई यह भी है कि आप अपनी असलियत को भी छिपा रहे हैं, दोस्तों पहाड सदैव से ऐसे नही थे और आपको गर्व होगा कि पहाडी क्षेत्र में कभी कोई व्यक्ति भूखा नही मरा है क्योंकि पहाडी क्षेत्र में जिन्दगी जीने के लिए बहुत सारे संसाधन मौजूद हैं,सिर्फ़ नमक का उत्पादन उत्तराखण्ड के पहाडी क्षेत्र में नही होता अन्यथा ऐसा कोई चीज नहीं जो उत्तराखण्ड में न होता हो, जीवन जीने‌ के सभी उत्पाद यहाँ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है, लेकिन सरकारी लापरवाही आज बहुत भारी पड रही है, पलायन के लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ सरकारों का ही दोष है क्योंकि सरकारों ने पहाडी क्षेत्र में रहने के लिए ऐसी व्यवस्था ही उपलब्ध नही की जिससे वह वहाँ टिके रह सकते, आज की परिस्थितियों को देखें तो मुफ्त अनाज देकर सरकार स्वयं को शंहशाह समझ रही है जबकि लोगों के लिए यह श्लो प्वाइजन का कार्य कर रहा है, किसान सम्मान निधि लोगों को आवंटित हो रही है।

लेकिन लगभग 90% लोग अपने खेतों को दशकों से बंजर छोडकर शहरों में जीवन जी रहे हैं, लोगों को पेंशन दी जा रही है वह भी यदि जांच की जाए तो 90% उस पेंशन के योग्य नही होंगे, राशन कार्ड लगभग 90% ऐसे ही बनें हैं, मेरा मानना है कि सरकारी पैसे का सदुपयोग इस प्रकार किया जाए कि लोग सरकारों पर आश्रित होने के बजाय स्वयं पर गर्व करें, लोगों को भिखारी बनाने के बजाय उन्हे उस कार्य में मदद करें जिन्हे वह कर सकते हैं इस धन को उन्ही लोगों को दें लेकिन उसे आसानी से दें और बिना ब्याज के वह राशी दें जिसे वह आसानी से स्वयं सक्षम होकर लौटा भी सकें और वही पैसा किसी और के काम आ सकें, लोगों को पैसा देना है तो खेतों में हल लगाने के लिए दें ताकि जो खेत बंजर हैं वह आबाद हो सकें, खेतों के लिए पानी की व्यवस्थाओं पर धन वहन करें।

खेतों पर पारम्परिक खेती को बढावा कैसे मिले उसपर करें, खेतों के लिए अच्छे उपकरण कैसे उपलब्ध हों उसपर खर्चा करें, लोगों को लोन देने की बेहद आसान प्रक्रिया हों,कोई भी कर्मचारी और अधिकारी उसमें अपनी हिस्सेदारी न समझे। आप यकीन मानिए जिस दिन बंजर खेत जहाँ भी दिखाई दे रहा है वहाँ हल लग जाएगा तो लोग अपने पारंपरिक खेती की तरफ भी बढ जाएंगे, यदि खेतों में हल लग गया तो उस क्षेत्र में आपदाओं का आना बन्द हो जाएगा क्योंकि पानी जमीन के अन्दर चला जाएगा, यदि पानी जमीन के अन्दर जाएगा तो जो पानी के पारम्परिक जल स्रोत हैं वह रिचार्ज हो जाएंगे और पानी की कमी काफी हद तक दूर हो जाएगी।  यदि खेतों में हल लगेगा तो जंगली जानवरों के लिए छिपने के लिए झाडी नही होगी जिस कारण जंगली जानवर जो आज चूल्हे के मुहाने पर आ गये हैं वह दूर हो जाएंगे, खेतों में पारम्परिक खेती वापस आ जाएगी, खेतों में घास के पेड,फलों के पेड पहाड को रोजगार देंगे।

इसलिए आप सभी से अनुरोध है कि सरकार को समझाएं और स्वयं भी समझें कि फ्री का वातावरण कुछ पल के लिए खुशी दे सकता है लेकिन एक मीठा जहर भी है।
एस पी जोशी

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