साहित्य

चुनाव और आपदा ( हरीश कण्डवाल मनखी की कलम से)

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चुनाव में दल बल होता है,
आपदा में सुनपट्ट होता है,
चुनाव में पूरी टीम होती है,
आपदा में कोई नहीं दिखता है।

चुनाव में दारू की बोतले
कोने कोने पहॅुच जाते है
आपदा में पानी की बोतल
के लिए लोग तरस जाते हैं।

चुनाव में संगठन काम करता है
आपदा में संगठन बिखर जाता है
चुनाव में रातों रात पैंसा बिकता है
आपदा में चवन्नी भी नहीं निकलती है।

चुनाव में गली गली घूमा जाता है
आपदा में सड़क सड़क जाया जाता है
चुनाव में गले मिलकर, पॉव छूये जाते हैं
आपदा में देखकर मुॅह फेर लिया जाता है।

चुनाव में जीतने के लिए छदम किये जाते हैं
आपदा में जाने से बचने के लिए बहाने होते हैं
चुनाव में खूब दिल खोलकर धन लुटाया जाता है
आपदा में अवसर, से खूब धन कमाया जाता है।

बस यही प्रार्थना है कि चुनाव हर समय आ जाय
लेकिन ऐसी आपदा कभी कहीं किसी पर ना आय
चुनाव हार जीतकर कुछ ही बरबाद, आबाद होते हैं
लेकिन आपदा में सभी लोग बरबाद हो जाते हैं।

हरीश कण्डवाल मनखी की कलम से।

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