चुनाव बहिष्कारः सोशल मीडिया तक ही सिमट कर रह जायेगा यमकेश्वर डांडामण्डल क्षेत्र का चुनाव बहिष्कार, या धरातल पर होगा साबित कारगार

चुनाव बहिष्कारः सोशल मीडिया तक ही सिमट कर रह जायेगा यमकेश्वर डांडामण्डल क्षेत्र का चुनाव बहिष्कार, या धरातल पर होगा साबित कारगार
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यमकेश्वरः मार्केण्डेय ऋषि की तपस्थली और महामृत्युजंय मंत्र की उत्पत्ति क्षेत्र यमकेश्वर विधानसभा राजधानी देहरादून से करीब 70 किलोमीटर दूरी पर है, वहीं तीर्थ नगरी और योगनगरी ऋषिकेश से बिल्कुल सटी हुई है, वहीं गढवाल के द्वार कोटद्वार से मात्र 15 किलोमीटर दूर दुगड्डा से लगी हुई है। चारधाम यात्रा के पुराने पैदल यात्रा मार्ग और प्रमुख सात चट्टियों के लिए प्रसिद्ध यह स्थल आज भी विकास से कोषों दूर है। स्वर्गाश्रम से लेकर नीलकंठ तक ही पर्यटन तक यह क्षेत्र सिमट कर रह गया है। नीलकंठ से आगे पर्यटकों को ले जाने में हमारा क्षेत्र पिछड़ा साबित हुआ है। यमकेश्वर क्षेत्र उत्तर प्रदेश से ही पिछड़ा हुआ था, लेकिन उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद विकास की आश जगी थी किंतु राज्य निर्माण के बाद भी यथास्थिति जस की तस है।

यमकेश्वर क्षेत्र में सर्वाधिक पिछड़ापन का कारण यहॉ से कुशल नेतृत्व नहीं मिलना बताया जाता है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि राज्य गठन के बाद अब तक पॉच बार विधानसभा चुनाव और चार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं जिसमें विधानसभा में पॉच बार भाजपा की विधायक और सांसद प्रतिनिधि वहीं 1999 -2007 तक भाजपा के सांसद, बीसी खण्डूरी 2007 से 2009 तक टीपीएस रावत (भाजपा) 2009 से 2014 तक कांग्रेस से सतपाल महाराज, और 2014 से 2019 तक पुनः बीसी खण्डूरी और 2019 से अब तक तीरथ सिंह रावत (भाजपा) के सांसद रहे हैं। यमकेश्वर क्षेत्र भाजपा का गढ माना जाता है, यमकेश्वर के वासियों द्वारा हर बार डबल इंजन सरकार को समर्थन दिया गया, किंतु राज्य और केन्द्र सरकार ने यहॉ के निवासियों द्वारा दी गयी सौगात की कीमत को शून्य ही आंका है, जिसका परिणाम धरातत पर यहॉ विकास भी शून्य है।

वैसे तो पूरा यमकेश्वर क्षेत्र विकास की गति से कोसों दूर है, किंतु डांडामण्डल और तालेश्वर घाटी क्षेत्र सर्वाधिक पिछड़ा हुआ है। इतिहास गवाह है कि आजादी के बाद सर्वाधिक गतिशील तालेश्वर घाटी आज सबसे ज्यादा विरान है। तालेश्वर घाटी और डांडामण्डल क्षेत्र के पिछड़ने का मुख्य कारण राजा जी नेशनल रहा है। यह पार्क क्षेत्र के विकास और पलायन के लिए सबसे बड़ा कारक बना, अगर इसे नासूर कहा जाय तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। डांडामण्डल यानी किमसार न्यायपंचायत क्षेत्र के 12 गॉवों को जोड़ने वाली एक मात्र सड़क खस्तेहाल में हैं, वहीं पिछले 22 सालों से बीन नदी पुल की मॉग यहॉ की जनता करती आ रही है, हर चुनाव में बीन नदी पुल निर्माण की घोषणा जरूर होती है, किंतु वह बस जुमला ही साबित हुई है।

बीन नदी पुल का निर्माण, गंगाभोगपुर तटबंध का निर्माण, कौड़िया किमसार मोटर मार्ग का डामरीकरण की त्रिसूत्रीय मॉगों को लेकर क्षेत्रीय जनता लांमबंद हुई थी और गंगाभोगपुर में वर्ष 2017 में ग्रामीण लगातार 56 दिन तक क्रमिक अनशन पर बैठे थे किंतु नतीजा अभी तक सिफर ही रहा है।

बीन नदी पुल की मॉग हर बरसात में पुरजोर तरीके से उठती है किंतु बरसात के बाद फिर वही ढाक के तीन पात साबित हो जाता है। यमकेश्वर की तालेश्वर घाटी और त्याड़ो घाटी बरसात के चार माह के लिए कैद जैसे हो जाती है। धारकोट जुलेड़ी मोटर मार्ग सिपछले 12 सालों से अधर मे लटका हुआ है। कांडाखाल खैराणा तालेश्वर ़महादेव रोड़ अभी तक अधूरी है, वहीं ताछला मोटर मार्ग की मॉग ग्रामीणों द्वारा सालों से की जा रही है, किंतु वह भी कागजी कार्यवाही तक सीमट कर रह गयी है, वही अन्य सम्पर्क मार्ग जो गॉवो को जोड़ने के लिए विधायक और जिला पंचायत निधि से काटे गये थे वह भी अधूरे और क्षतिग्रस्त हैं। स्वास्थ्य का हाल इतना बुरा है कि बरसात मे मरीजों को चारपाई और कुर्सी के सहारे एम्स ऋषिकेश तक पहुॅचाने का प्रयास किया जाता है, कई मरीज आधे रास्ते पर ही दम तोड़ देते हैं। वहीं जोग्याणा में बीएसएनएल का टावर शो पीस बन कर रह गया है। यमकेश्वर के सभी अशासकीय विद्यालयों में अभिभावकों द्वारा दिये गये शुल्क से शिक्षक रखने की व्यवस्था की गयी है, इन सभी विद्यालयों में स्थायी शिक्षक नही है, ग्रामीणों द्वारा प्रान्तीयकरण की मॉग की जा रही है, किंतु नतीजा निराशाजनक ही है।

इन सभी को देखते हुए क्षेत्रीय युवाओं के द्वारा सोशल मीडिया में लोकसभा चुनाव 2024 के पूर्ण बहिष्कार का सोशल मीडिया में अभियान चलाया जा रहा है,जिसमे कि युवाओं के द्वारा अपील की जा रही है कि यदि क्षेत्र का विकास और बीन नदी पुल का निर्माण करवाना है तो इस बार क्षेत्र से लोक सभा चुनाव का पूर्ण बहिष्कार किया जायेगा। हांलांकि युवाओं का यह अभियान अभी केवल सोशल मीडिया तक सीमित है, धरातल पर यह अभियान कितना सफल होता है, यह तो आने वाला वक्त ही तय करेगा। चुनाव बहिष्कार का परिणाम सुखद अवश्य हो सकता है लेकिन तब जब पूरे 12 ग्राम सभाओं के सभी बूथों से मतपेटियॉ खाली जाय, लेकिन यह संभव नहीं है, क्योंकि क्षेत्र में पार्टी से जुड़े कार्यकर्ताओं के द्वारा लोकसभा चुनाव के समय सब बातों को भूलकर चुनाव प्रचार करने मे जुट जाना है। ऐसे मे पूर्ण चुनाव बहिष्कार की संभावनायें कम ही नजर आ रही हैं।  हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में जहॉ युवाओं और महिलाओं के द्वारा यमकेश्वर क्षेत्र में चुनावी समीकरण को पूरी तरह से उलट दिया था, यदि यह सभी विकास को दृष्टिगत रखते हुए एकमत होकर चुनाव बहिष्कार की ठान ले तो असंभव को संभव कर सकते है। हालांकि चुनावी इतिहास में आज तक ऐसा नहीं हो पाया है।

Mankhi Ki Kalam se

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