समळौण्या भेंट
चल भै यी कारिज भी निभी ग्यायी, चलो अब गौं तरफ जौला, कबरी बिटी घर जाणा कुणी जिकुड़ी मा उकताट हुयूं। बाटू कटण मुश्किल हुयूं छ्यायी कब आल हमर गॉव हमर चौक हमरी तिवरी, कब दिखेली ब्वे की मुखड़ी। इन सुचद सुचद दगड़यों दगड़ी छुई बत्थ लगणा छ्यायी लेकिन यूं प्राण त ढ्यार मा लग्यूं छ्यायी। बाट पर जांद जांद दगड़यों तै बतै कि यी पुंगड़ी पर मि बाबा दगड़ मा जोळ मा बैठदू छ्यायी, यूं मूंड़यूं बिटी फाळ मरदू छ्यायी। हळ लगाण बगत बाबा दगड़ी ब्वे लयीं चून रूट्टी मुर्या चटणी मा खांद छ्यायी। यूं पुंगड़ूयूं मा हमर गोट रैंद छ्यायी ये नाख मा हमर भूरा अर बुल्ला बळदू जोड़ी बंधी रैंद छेयी, उं गळ घंडूली आवाज यन सी लगणी कि यखी कखी आणी ह्वेली।
ठांगर स्कूल बिटी आण बगत यूं स्याळ अर आम डाळ छैलू मा थक बिसांद छ्यायी, यख बिटी आम टीपी बस्ता भरी कन लेकन जांद छ्यायी अपर दीदी दगड़ी। अपर बाळपन अर ज्वनी बात दगड़यों तै बतांद बतांद चौक मा पौछीं त ढोल दमो न मेरी आवाभगत करे ग्यायी सरा गौं खोळ लोग कठ्ठी हुयां छ्यायी, पर नजर ब्वे तै खुजणी छेयी, इन लगणू छ्यायी कि पितर हुयां बुब्बा भी इखी कखी दिखणा ह्वाल, याद आणी कि पैल ये चौक मा म्यार ग्वाया लगयां छन, कंची गोळी भुलों दगड़ी खिलयूं, दीदी दगड़ी पन पथरी खिलणा उ सब्बि याद समणी ऐ ग्यायी। भितर जैकन पैल ब्वे तै मिली, ब्वे पर बुढयाण दिख्याणी छेयी, या बुढाण अर बाळपन मा ब्वे बण बिटी ऐकन दूध पिलांद बगत अस्यों पस्यों ज्वा पस्याण आंद छेयी वैखी ज्वा महक छ आज भी जिकुड़ी मा बसी छ। ब्वे देखी कन बरसों बिटी खुद्यूं प्राणी उमाळ ऐ ग्यायी, भले जोगी बणी ग्यों देश समाज खातिर पर ब्वे तै मिलीकन बरसो बिटी घुटीं उमाळ नी रोकी साकी, सेवा लगायी त ज्वा कुंगळी खुट्टी छेयी ब्वे की उपंन अब झुर्री पड़ी छन, मयळी मुखड़ी पर भी अब झुर्रे गेयी, उमर तकाजा, यन कि ज्वा ब्वे कब्बी रूण जिरसी फुसफुसाट दूर बिटी सुण लींद छेयी आज अब द्वी बार बचाळी मुख मा दिखणी छेयी।
ब्वे शैद सुचणी रै ह्वेली कि आज येखी मुखड़ी देखी याल जै तै रोज टीवी मा दिखदू पर अपरी मन बात नी बिगैं सकदू, आज समणी साक्षात दिखे ग्यायी त जिकुड़ी मा बरसों बिटी जुगाळ करी आज देखी कन धीत त नी भरे पर चैन जरूर पड़ी ग्यायी। ब्वे की ममता बडी कळकळी हूंदी, ये बाबत ज्यादा नी बोल सकदू बस इथगा ही बुललू कि ब्वे की ममता से बड़ू कुछ नी छ। ब्वे जब बुक्खी प्यायी अर मुण्ड मलासी त लगी कि यी हत्थ जू मुण्ड मा रखीन यूंक इंतजार मितै भी छ्यायी लेकिन मर्यादा ऐथर मी बधेंलू छौं, आज यूं हत्थू न फिर जुग जुग तकक आशीर्वाद दियाल।
आज गौं खोळूं मा मील पुरण गौं द्याखी, आज भी गौं मा मनख्यात देखी, लगी कि अजों भी गौं मा मुखाभेंट कना रिवाज छैंछ, पर जौ घर पर ताळ लग्यूं छ्यायी उ जिकुड़ी मा भारी कसक दे गीन, जौं चौक डिडंयळी मा हमुन छ्वी बत्थ लगैन, जख काकी बड़ी दगड़ बैठी कन गुड़ डळी खायी काका बाड़ों कांध मा चढों आज वी डिंडयळी तिवरी पर द्वर ढक हुयूं देखी कन लगी कि हम त पहाड़ बिसरी ग्यवां। मित समाज देश धर्म खातिर जोगी रूप धारी यूंन केक बाना यू मोह माया छोड़ी।
ब्यखन बगत भतीज मुण्डन अर चुल्ल भंभरांद आग न फिर बाळपन खुद अर गळ मा भडुळी लगै द्यायी। सत्यनारायण कथा चुरमा कैखन एक बार फिर लगी कि अहा ये चुरमा वास्तव मा प्रसाद छ, गौं रौ रिश्तेदारू प्रेम देखी कन मन एक बार फिर गवड़या व्हे ग्यायी। सुबेर गौं खोळू मा रस्ता हिटद हिटद काकी बड़ी बुलण बचळण सब्ब फिर एक बार वी बगत लौटी कन जणी ऐ ग्यो हो इन लगी। कुछ भलू भी लगी कुछ नखरी भी लगी। नखरी इन लगी कि घर ऐथर सग्वड़ अर पुंगड़ी बांझ देखी कन मन बड़ू उदास व्हे, जौं पुगंड़यू पर क्वाद हळयूं, जौ कि पिंपरी बजैन आज वीं सग्वड़ी अर पुंगड़ी पर घास अर झाड़ी जमी देखीकन रूण ऐ ग्यायी। पुंगड़यूं पर बाप ददों न भीड़ा लगै छ्यायी सी सब्ब फजंक निखळयां देखीकन अफसोस भी व्हायी अर दुख भी पर पलायन यी बीमरी क्या समाधान च ये पर विचार कना बगत भी ऐ ग्यायी।
यमकेश्वर महादेव पूजा करद बगत कणसू सोमवार ख्याळ म्याळ, रूड़या बगत ढंडी मा कचमुळयाण दिन फिर याद ऐ गीन, लेकिन सतेड़ी पाणी सुख्यूं देखीकन तरस भी आयी, हम ऐथर बढों कि पैथर छुटी ग्यवां इन समझण मा फेर व्हे ग्यायी। बरसूं बिटी टीस ज्वा मन मा छेयी कि घर नी ग्यां वा पूर त नी कब्बी नी व्हे सकदी लेकिन तबरी तकन मन तै बिळमाण लैक व्हे ग्यायी। अब द्वी दिन यी ख्याळ म्याळ याद तै दगड़ी लेकन जांद अपर कर्म भूमि मा जब भी याद आली त यीं समळौण तै देखीकन मन तै बुथे द्योलू फिर कब्बी यीं यमकेश्वर धरती मा आणा जाणा रौलू।
नोटः या मेरी अपरी कल्पना छ कि योगी जी जब अपर गौं पंचुर ऐन त उन कुछ इन सोची व्हाल अपर मन मा किलै कि येख पहाड़ी आदमी जब उ अपर घर गौं आंद वैतै अपर पुरण दिनू याद जरूर ऐ करदी। या लेखक की एक कल्पना मात्र छ।
हरीश कण्डवाल मनखी कलम बिटी।