साहित्य

धारकोट जुलेड़ी मार्ग की पीडा

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मै धारकोट जुलेड़ी मोटर मार्ग राह भटका हॅूं
12 साल से त्रिशंकु की तरह लटका हॅॅ।
हर बार नये साल बदलने पर सोचता हॅू
अपनी किस्मत भी बदलेगी यह उम्मीद करता हॅू।

साल दर साल यूंही निकलते चल गये
हम अच्छे दिनों को आते देखते रहे
दिन वार त्यौहार आकर सब चले गये
हम जहॉ खड़े थे, वहीं खड़े रह गये।

मेरी किस्मत नहीं बदली, बदल गयी सत्तायें,
वादे इरादे और बदल गये नीति नियतायें,
बदल गयी आवो हवा, बदल गये शिष्टचार
नियम कानून बदले, नहीं बदला भ्रष्टाचार।

खत लिखने वालों ने खत भी लिख दिये
गुहार लगाने वालों ने गुहार भी लगायी
जहॉ बात पहॅुचनी थी वहॉ नहीं पहुॅच पायी
जय जयकारों की घोष में बात दब गयी।

कुछ मौन हैं कुछ मुखर हैं, कुछ हैं प्रखर
क्षेत्र का जनमानस ठोकरें खाता है दरबदर
जिनको भाग्य विधाता बनाकर दिखाया उच्च शिखर
आज वही सब जानते हुए भी हो रखे हैं बेखबर।।

सोचा था नीलकंठ आने वाले भक्तों की राह बनूंगा
उगते हुए यमकेश्वर का मैं भी नाम रोशन करूंगा
किसी के लिए सड़क किसी के लिए व्यवसाय बनूंगा
मैं धारकोट जुलेड़ी मोटर मार्ग, अपना लक्ष्य प्राप्त करूंगा।

हरीश कण्डवाल मनखी की कलम से।

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