काठियूं मा औण से पैलि पुस्तक का लोकार्पण, काव्य पर विचार एवं विमर्श

काठियूं मा औण से पैलि पुस्तक का लोकार्पण, काव्य पर विचार एवं विमर्श
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देहरादून। वरिष्ठ साहित्यकार देवेन्द्र जोशी की गढवाली काव्य पुस्तक कांठियूं मा औण से पैलि नामक दूसरे संस्करण का विमोचन दून विश्वविद्यालय के सभागार में किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि पदम् श्री लीलाधर जगूड़ी,, विशिष्ट अतिथि, जयन्ती प्रसाद नवानी, राजेश सकलानी तथा धाद संस्था केन्द्रीय अध्यक्ष लोकेश नवानी ने विचार व्यक्त किये। देवेन्द्र जोशी ने अपनी कविताओं का काव्य पाठ किया, जिसमें सियां लोग, हड़ताल आदि विषयों पर उन्होंने अपने भावों को काव्य के माध्यम से व्यक्त किया। देवेन्द्र जोशी की कविताओं में स्थानीय शब्द एवं लुप्त होते शब्द हैं, जो कविता की अभिव्यक्ति में सभी अलंकारों को पूर्ण करते हैं। उनकी कविताओं की समीक्षा की जाय तो यह कवितायें भले ही स्थानीय एवं आंचलिक विषयों की प्रासंगिकता के आधार पर लिखी हैं, लेकिन वही समीचीनता को प्रतिनिधित्व करती हैं।

धाद के केन्द्रीय अध्यक्ष लोकेश नवानी ने देवेन्द्र जोशी की कविताओं का काव्य पाठ करतेह हुए वर्तमान साहित्य सृजन पर अपने विचार रखते हुए कहा कि आज साहित्य लेखन में वर्तमान समय को देखते हुए परिवर्तन की आवश्यकता महसूस हो रही है, अधिकांशतः देखने में आ रहा है कि लोकभाषाओं पर आधारित साहित्य सृजन में अभी भी हम पहाड़ की वादियों में ही हमारा लेखन घूम रहा है जो कि रीति काल का है, जबकि आज समय में परिवर्तन हो गया है, हमें साहित्य नयी पीढी के लिए तैयार करना है, नई पीढी को पुराने समाज या रहन सहन आदि से कोई भी लगाव होना स्वतः ही अस्वाभाविक है, क्योंकि उनके द्वारा उसका अनुभव नहीं किया गया है, अतः लोकभाषाओं में साहित्य सृजन में मौलिकता के साथ-साथ समीचीन विषयों पर साहित्य का सृजन किया जाना आवश्यक हो गया है। साथ ही उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि हमें साहित्य की समीक्षा करनी होगी आत्ममुग्धता से बचना होगा और साहित्य की सटीक समालोचना किये जाने की आवश्यकता है।

वहीं मुख्य अतिथि लीलाधर जगूड़ी ने कहा कि कविता का भाव महत्वपूर्ण होता है,वह किसी भी भाषा में लिखी गयी हो। विशिष्ट अतिथि जयंती प्रसाद नौटियाल ने कहा कि गढवाली की पुस्तक के दूसरे संस्करण को पाठकों के बीच पहुॅचना का आशय है कि गढवाली में अच्छी कविताओं को पाठक पढते हैं, वही राजेश सकलानी ने कहा कि देवेन्द्र जोशी की कविताओं में समसामयिकता के साथ मौलिकता के प्रवाह को आगे बढाने में सक्षम हैं। मंच सचांलन बीना बेंजवाल द्वारा किया गया।इस अवसर पर श्री कुलानंद घनशाला, रमांकात बेजवाल, शांति प्रकाश जिज्ञासु, मंजू काला, शांति अमोली बिजोंला, अर्चना गौड, विनिता मैठानी, सूर्य प्रकाश कुकरेती आदि उपस्थित रहे।

Mankhi Ki Kalam se

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