लोकसभा ने ‘प्रेस और पत्र-पत्रिका रजिस्ट्रीकरण विधेयक 2023′ को किया पारित

लोकसभा ने ‘प्रेस और पत्र-पत्रिका रजिस्ट्रीकरण विधेयक 2023′ को किया पारित
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नई दिल्ली। लोकसभा ने अखबार, पत्रिका आदि निकालने वाले लोगों के लिए पंजीकरण की प्रक्रिया को सरल बनाने वाले ‘प्रेस और नियतकालिक पत्रिका रजिस्ट्रीकरण विधेयक 2023′ को पारित कर दिया है। इस विधेयक को राज्यसभा मानसून सत्र में ही पारित कर चुकी है। सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग सिंह ने प्रेस और नियतकालिक पत्रिका रजिस्ट्रीकरण विधेयक 2023 पर चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि पंजीकरण के लिए लोगों को बार-बार चक्कर लगाने पड़ते थे और जिला अधिकारी की अनुमति का इंतजार करना पड़ता था लेकिन अब इसे आसान बना दिया गया है और जो बेवजह की बाधाएं इसमें थीं उन सभी कानूनों को हटा दिया गया है।

RNI का चक्कर नहीं लगाना पड़ेगा
अब ऑनलाइन घोषणा पत्र के माध्यम से अखबार निकालने के इच्छुक लोग आरएनआई का चक्कर नहीं लगाना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र  मोदी के नेतृत्व में पिछले 10 वर्षों में पुराने संसद भवन हो या नया संसद भवन हो इनमें गुलामी की मानसिकता से बाहर निकल कर नए भारत के लिए नए कानून बनाने का जो शानदार काम हुआ है, इसके लिए वह प्रधानमंत्री को धन्यवाद देना चाहते हैं। अगर किसी पत्रिका या पत्र को दो साल तक नहीं चलाया जाता है तो उसे इसे कैंसिल किया जा सकता है। इसी तरह से यदि एक ही नाम से दो राज्यों में समाचार पत्र चल रहे हैं तो उनको एक ही जगह चलाने का आनएनआई आदेश दे सकता है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि राज्य सरकारों को भी पत्रकारों की मदद करनी चाहिए। कोविड के समय पीड़ति परिजनों को पांच लाख रुपए की मदद दी गई थी। सरकार ने नई व्यवस्था में पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन को सालाना विवरण अपने घर से ही ऑनलाइन कराने की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। ठाकुर ने कहा कि यह मूल कानून 1867 का है और उस समय 1867 में भारत गुलाम था और अंग्रेजों की मानसिकता थी कि प्रेस को भी कहीं न कहीं अपने हाथ में रखें। यहां तक कि उनके लिए पंजीकरण करना भी अपने आप में बहुत बड़ी चुनौती थी। प्रिंटिंग प्रेस लगाना या प्रकाशन करना, ये अपने आप में बहुत बड़ी बात थी। इसमें जिला मजिस्ट्रेट की बहुत बड़ी भूमिका होती थी और एक बड़ा जटिल तंत्र था। इसको 8 चरणों में किया जाता था।

 

 

जिला मजिस्ट्रेट के पास पहले जाकर आप पंजीकरण का आवेदन दो फिर वहां फाइल को आगे बढाने में कई महीने लगते थे। उसके बाद उसको दिल्ली में भारत के समाचारपत्र पंजीकार के पास लेकर आओ, फिर उसके चक्कर काटो। इस काम के लिए लगभग आठ चरण पार करने पड़ते थे। नए कानून में अब दो-तीन साल नहीं लगेंगे बल्कि केवल दो महीने के अंदर आपको अपना समाचार पत्र हो या पत्रिका हो उसकी अनुमति मिल जाएगी। ये सरल और स्मार्ट भी है और समानांतर भी है। उन्होंने कहा, ‘‘पहले जिला मजिस्ट्रेट के पास रजिस्टर करना पड़ता और फिर भारत के समाचारपत्र पंजीकार के पास करना पड़ता था। अब ऐसा नहीं है। अब जिला मजिस्ट्रेट के पास भी और आरएनआई के पास भी एक ही समय पर पंजीकरण किया जा सकेगा। यदि किसी आवेदन पर जिला मजिस्ट्रेट 60 दिन में जवाब नहीं देता है तो 60 दिन के बाद आरएनआई ही अनुमति दे देगा। इससे बहुत बड़ी सुविधा मिलने वाली है।” उन्होंने कहा,‘‘ हमने पिछले दो दिनों में भी देखा कि कैसे अंग्रेजों के समय के कानूनों और गुलामी की मानसिकता से मुक्ति दिलाने का काम किया गया। नए भारत के लिए नए कानून भी मिले और इस सदन ने सर्वसम्मति से उन विधेयकों को पारित भी किया। चाहे वो भारतीय न्याय संहिता हो या भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता हो, दूरसंचार विधेयक हो।”

 

 

ठाकुर ने कहा कि ऐसे अन्य विधेयक जो अब अगले कई सैकड़ों वर्षों के लिए भारत के काम आएंगे। उसी दिशा में आज प्रेस एवं पत्र पंजीकरण विधेयक 2023 लाया गया है। इस विधेयक के माध्यम से गुलामी की मानसिकता से बाहर निकलकर नए भारत के लिए एक नया कानून लाने का कार्य किया जा रहा है। ठाकुर ने कहा, ‘‘मैं एक बात जरूर कहूंगा कि हमने राज्यों से भी मशविरा किया, अलग- अलग संस्थाओं से भी परामर्श किया और उसके बाद हम आपके बीच में ये विधेयक लेकर आए हैं। मैं इसमें एक-दो बातें पर जरूर प्रकाश डालना चाहता हूं। ‘इज ऑफ डूइंग बिजनेस’ इसको हर क्षेत्र में बल देने का काम मोदी सरकार ने किया है।

 

 

हजारों पुराने कानूनों को या ऐसे कानून जिनकी आवश्यकता नहीं थी उनसे भी मुक्ति दिलाने का काम हमने किया है।” उन्होंने कहा,‘‘ अधिकतर कानूनों में कारोबारी सुगमता और जीवन की सुगमता मिले ये मोदी सरकार की बड़ी प्राथमिकता रही है। इसलिए इस विधेयक में भी हमने जितने अपराध वाले प्रावधान थे हमने उसको गैरआपराधिक कर दिया है। और केवल एक ही ऐसा प्रावधान है जहां पर अगर किसी ने प्रिंटिंग प्रेस या प्रकाशन शुरू करने की अनुमति ना ली हो तो इसे बंद करने अथवा अनुमति लेने के लिए छह महीने का समय देने का प्रावधान किया गया है। अगर यह नहीं किया जाता है तब जाकर सजा हो सकती है।

Mankhi Ki Kalam se

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