उत्तराखण्ड के इन क्षेत्रों में देखने को मिलेगें पटपड़गंज, ककड़डुमा, राजौरी, खजूरी, दादरी जैसे नाम
यमकेश्वरः मानव प्राचीनकल से ही चलायमान रहा है, एक जगह से दूसरी जगह रहकर वह अपनी आवश्यकता अनुसार वहॉ निवास करने लगता है। मानव का पलायन का सिलसिला भी एक श्रृखंला जैसे है। पहाड़ो में मानव पहले भी मैदान से आया है, और फिर पहाड़ो से मानव मैदान की ओर जाने लगा। जो मानव मैदानी इलाकों में वर्षों से रह रहा है, वह अब पुनः पहाड़ों यानी कंदराओं की ओर लौटने की प्रवृत्ति शुरू गयी है। क्योकि पहाड़ी क्षेत्र का मानव शहरी क्षेत्र में 50 गज से एक बिस्वा जमीन लेकर अपना आशियाना बना रहा है, वहीं मैदानी क्षेत्र के लोग पहाड़ों में आकर अपनी मर्जी से औने पौने दामों में जमीन क्रय कर रहे है।
क्ल मै जब अपने गृह क्षेत्र यमकेश्वर डांडामण्डल की तरफ गया तो लोहा सि़द्ध नामक स्थान से आगे जैसे ही राजाजी नेशनल पार्क की सीमा पार करते हुए स्थानीय सिविल भूमि क्षेत्र में प्रवेश किया तो सड़क के किनारे की समस्त जमीन के बारे में पता चला कि यह बिकी हुई है। जानकारी मिली कि सड़क के किनारे की समस्त जमीन दिल्ली, हरिद्वार या अन्य क्षेत्रों के द्वारा औने पौने दामों में क्रय कर ली गयी है। अब उत्तराखण्ड की इन पहाड़ियों में कुछ दिन बाद नई कॉलोनीयों एवं विहारों के नाम देखने को मिलेगें। क्योंकि जब कोई भी व्यक्ति एक ही जगह से प्रवास करते हैं तो वह अपनी पैतृक स्थल का नाम नये प्रवास स्थल पर रख देते है, जिससे उनका जुड़ाव अपने पैतृक क्षेत्र से जुड़ा रहे।
ऐसी स्थिति में अब जो जमीन सड़क के किनारे बिक चुकी है, वहॉ पर जब लोग निवास करना शुरू करेगें तो इनका नाम भी पटपड़गंज, ककड़डुमा, राजौरी, खजूरी, दादरी, जैसे नाम देखने को मिलेगे और पहाड़ी क्षेत्र में रहकर दिल्ली का आभास करने को मिलेगा। हालांकि जमीन का क्रय विक्रय सालों से होता आ रहा है, यह एक प्रक्रिया है। लेकिन सवाल जमीन का क्रय विक्रय का नही हैं, बल्कि जमीन की कीमत को समझने का है। जिस जमीन को आज हमारे क्षेत्रवासी दोयम दर्जे की समझकर औने पौने दाम में बेच रहे हैं, वहीं जमीन बाहर वालों के लिए मुनाफे का सौदा बन रही है। यमकेश्वर क्षेत्र की अधिकांश जमीन इस समय बाहरी लोगों के पास जा चुकी है, जिसका अंदाजा लगाया जाना मुश्किल है। डांडामंडल क्षेत्र हो या लक्ष्मणझूला, नीलकंठ रोड़ हो या त्याड़ो घाटी से लेकर हेवंलघाटी और तालघाटी की अधिकांश जमीन अब रसूखदारों के पास जा चुकी है। क्रेता तो मुनाफे का सौदा देखकर उक्त जमीन पर पूंजी निवेश कर रहा है, लेकिन स्थानीय लोग उसी जमीन को दोयम दर्जे की मानकर उसे अपनी आने वाली पीढी के लिए गिरवी रख रहे हैं। ऐसे में कुछ समयान्तराल में इन क्षेत्रों में दिल्ली हरियाणा की अधिकांश आबादी देखने को मिलेगी।
हेंवल नदी के आस पास के क्षेत्र मे जिस तरह की गतिविधियॉ देखने को मिल रही है, वह दिन दूर नहीं जब स्थानीयों को यहॉ आश्रय लेने के लिए भी अपनी जमीन क्रेताओं से शरण लेनी पड़ेगी। हेंवल नदी त्याड़ो गाढ़ में जिस तरह से अव्यवस्थित तरीके से रिजॉर्ट बन रहे हैं, पार्किग, कचरे निस्तारण की उचित व्यवस्था नहीं हैं उससे होने वाली अव्यवस्था से पूरा क्षेत्र त्रस्त नजर आ रहा है। हेंवल नदी के किनारे जिस तरह से कूड़ा फैला नजर आता है, उससे लगता है, वह दिन दूर नहीं जब निर्मल हेंवल नदी दिल्ली की यमुना का रूप धारण कर लेगी।