बीन नदी की पीड़ा,आखिर कब होगा अहिल्या का उद्धार,
यमकेश्वर: रामनवमी को विंध्यवासनी मंदिर जाते वक़्त बीन नदी से गुजर रहा था, वहॉ पर बहती नदी ने सवाल किया कि अरे मनखी तुम आज इधर से कहा गुजर रहे हो, अब तो 2022 के चुनाव खत्म होने के बाद नई सरकार का गठन हो गया है, यमकेश्वर को नया नेतृत्व मिल गया है, आजकल हो हल्ला भी कम हो गया है, अब क्या करने जा रहे हो वहाँ। मैंने कहा लोकतंत्र का पर्व का ये दौर खत्म नही हुआ है, आज रामनवमी है उसके पर्व में जा रहा हूँ। बीन नदी ने कहा अरे सुनो तो तुम तो वहाँ से आ रहे हो ना जँहा से विकास की नींव पड़ती है। यहाँ तक सुना है कि तुम खुद को बड़े समझते हो, लिखवार बोलते है सब तूमको। अगर तुमारी कलम में इतनी ताकत है तो ये पुल बनवाओ। मैं रोज रोज इन गाडीयो के धक्के नही सह सकता हूँ। जब भी चुनाव होते हैं तो मुझे लगता है कि इस बार तो कोई मायका लाल प्रत्याशी बना है जरूर वह मेरी सुध लेगा। मैंने कहा कि आपसे ज्यादा तो जनता दुखी है। आप जब बरसात में विकराल रूप ले लेती हो तो किसी मे हिम्मत नही होती कि तुमसे कोई पार पा ले। बीन नदी ने कहा कि अरे भाई वह वक्त मेरा होता है, मैं भी उस समय अपने यौवन में होती हूँ, और जब यौवन अपने चरम पर होता है, उसको छेड़ने वाला ही गर्त में समा जाता है। मेरा तो वर्षो से यही रास्ता है, मैं अपना रास्ता क्यो बदलू। मैंने कहा कि हम तो चाहते हैं कि आपके ऊपर छांव हो जाये और वह हमारे लिये रास्ता बन जाये तो एक दूसरे को कोई दिक्कत नही होगी।
इस पर बीन नदी के पत्थर औऱ रेत जो गर्मी से उबले हुए थे गुस्से में आकर बोले कि तुम भी बस बोलोगे ही या कुछ करोगे, नदी ने उनको शांत रहने को कहा। उन्हें समझाते हुए कहा कि जब प्रदेश के मुखिया की घोषणा से पुल नही बन पाया, पूर्व मुख्यमंत्री की बेटी के प्रयास अभी धरताल पर कुछ नजर नही आ रहा है, तो ये वोटर तो पिछले 70 सालों से चिल्ला रहे है। ये तो बरसात के मेढक है, दो महीने बरसात में खूब आवाज निकालते है, और बरसात बंद होते ही ये भी चुप हो जाते हैं। यहाँ तो वोटर्स वोट देने के लिए बन गये है, औऱ रशूखदर तो बड़ी बड़ी गाड़ियों में प्रचार करने आते हैं, औऱ मेरी छाती में चढ़कर मुझे ही मुद्दा बनाते हैं। ये पुल बन जाता तो कम से कम मैं गंगा नदी में शांत होकर तो मिलती। लेकिन ये पुल तो अब चुनावी मुद्दा हो गया है क्षेत्रिय नेताओ के लिये जैसे कि राम मंदिर दिग्गज नेताओं के लिये। मैंने कहा कि पार्क प्रशासन भी तो पर्यावरण की दुवाही दे रहा है, वह भी तो नही चाहता है कि पुल बने।
नदी हंसते हुए बोली कि पार्क प्रशासन को सही में मेरी चिन्ता होती तो वह मेरी पीड़ा को समझते उनको भी तो अपनी रोटी सेखनी है, अरे जिनको भूख लगी हो उनके लिए तो गूलर भी गुलाब जामुन होते हैं। जिन्होंने कभी मुसीबत के दिन ना देखे हो उनके लिए तो पर्यवारण औऱ जंगली पशु महत्वपूर्ण है। मैंने तो कावंड़ मेले को, कुम्भ मेले को, सबको देखा है। लोकतंत्र के पर्व को देखा है तो फिल्मों के स्टार को भी देखा है, तो कभी पीनस पर ले जाते असहाय को भो देखा है, मगर मेरी पीड़ा तो तब ही होती है लोगों को जब बरसात में मेरा रौद्र रूप होता है। मेरे ऊपर पुल बनता है तो थोड़ा पीड़ा मुझे भी होगी लेकिन रोज रोज की जिल्लत से तो अच्छा है एक बार की ही परेशानी होगी। जब देहरादून राजधानी में पहुंच जाओगे तो सियासतकारो को मेरी मन की बात पहुचा देना।
©® @ मनखी की कलम से।