उत्तराखंड

आज का विकास बीमार हो रहा है उसे सही समय पर टीका नही लगा इसलिए अब उसका इलाज असंभव है

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जोशीमठ की आपदा विस्थापन और अवैज्ञानिक दोहन पर सवाल उठाये

आज का विकास बीमार हो चूका है उसे सही समय पर टीका नहीं लगाया गया और अब उसका इलाज असम्भव हो गया है जोशीमठ आपदा और उसके सवालों पर धाद की आम सभा में लोगों ने विकास के मौजूदा मोडल पर सवाल उठाए।
गोष्ठी का अजेंडा रखते हुए संस्था के सचिव तन्मय ममगाईं ने कहा की जोशीमठ के साथ विकास के मौजूदा सवाल आम समाज की चिंता में शामिल हो और इसमें जनता के स्तर समझ और उस पर आधारित सामूहिक पहल हो इसके लिए धाद ने यह पहल की है
सभा का आधार वक्तव्य देते हुए भूगर्भ शास्त्री उत्तम सिंह रावत ने कहा कि आपदाओं से बचाव की कोशिशें दुनिया भर में जागरूक समाज और सरकारें करती हैं. कई आपदाओं को कम करने में सफल भी हुई हैं. पर यहां वे आपदाओं की ज़िम्मेदारी प्रकृति पर थोप कर, और हम आपदाओं को नियति मानकर बैठे हैं. और आपदायें जीवन, धन, विकास, उम्मीद सब निगल रही हैं. यहां राज्य बनने के बाद एक चक्र तेज चला है. पहाड़ी राज्य की सुरक्षा ज़रूरतों की अनदेखी या आपदा का इन्तज़ाम, फिर आपदा का इन्तज़ार, फिर राहत बांटना, और फिर सब भुलाकर वही चक्र चल रहा है .।


गढ़वाल विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष प्रो एम् सी सती ने कहा की विस्थापन की सामग्री और समन्वित नीति उत्तराखण्ड की पहली जरुरत है क्यूंकि उत्तराखंड निरनतर आपदा की मार झेल रहा है. विस्थापन केवल आर्थिक ही नहीं सामाजिक सांस्कृतिक और रोजगार के सवाल से भी जुड़ी है इसलिए एक समन्वित नीति आज की पहली जरुरत है।


पर्यावरण कार्यकर्त्ता अशीष गर्ग ने इस संबंध में सुझाव देते हुए कहा कि हिमालय क्षेत्र में सभी निर्माण इस प्रकार से हो जो आने वाले जलवायु परिवर्तन जनित खतरों को झेलने में समर्थ हों।हिमालयन क्षेत्र में भूस्खलन रोकने के लिए प्रत्येक शहरों में उचित ड्रेनेज प्लान जल्द से जल्द विकसित किए जाएं । प्राकृतिक जंगलों और पेड़ो का संरक्षण किया जाए और ढलानों पर वनस्पति और घास इत्यादि का रोपण किया जाए।. विस्थापन पर सरकार को न केवल उपयुक्त घरों की व्यवस्था की जाए बल्कि उनके रोजगार और आमदनी के अवसर उपलब्ध कराएं जाएं। . भारी पर्यटन को नियंत्रित कर सस्टेनेबल बनाने के कारण उठाए जाएं।

सामाजिक कार्यकर्त्ता समदर्शी बड़थ्वाल ने कहा की जोशीमठ की आपदा 1976 में मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट की अवहेलना की दुखद त्रासदी है । वैज्ञानिकों व पर्यावरणविदों की लगातार चेतावनियों के बावजूद जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण, कई किलोमीटर लंबी सुरंगों, बहुत चौड़ी सड़कों के लिए पहाड़ों के खुदान इस प्रकार के भूधसाव का कारण बनता जा रहा है । पहाड़ियों पर बड़े बड़े शहरों की बसावट का भी भारी बोझ पहाड़ों पर पड़ रहा है । इस हिमालयी भूभाग में किस प्रकार का विकास का मॉडल होगा, इस पर वैज्ञानिकों की राय को अहमियत दिए जाने की जरूरत आज पहले से भी ज्यादा है ।
अस्थिरोग विशेषज्ञ डॉ जयंत नवानि ने कहा कि जोशमठ में उनके जीवन का आरम्भिक काल गुजरा है किंतु इस बीच वहां की जनसंख्या घनत्व और निर्माण में बेहताशा बढ़ोत्तरी हुई है। अनियंत्रित निर्माण ने आज के हालातो को बिगाड़ने में बड़ी भूमिका निभाई है।

धाद के उपाध्यक्ष डी सी नौटियाल ने कहा की जोशीमठ में एन टी पी सी के साथ वहां के घरो के बीमा का प्रावधान नहीं लागु किया गया है जिसके खामियाजा लोग आज भुगत रहे हैं शासकीय स्तर पर आज भी विस्थापन की राशि की कोई स्पष्ट नीति नहीं नजर आती जबकि बद्रीनाथ में आपदा के लिए जिस तर्ज पर मुआवजे की नीति तय हुई है उसे यहाँ लागू किया जाना चाहिए।

इस अवसर पर हुडको के प्रदेश प्रमुख संजय भार्गव, धाद के केंद्रीय सदस्य हिमांशु आहूजा,सामाजिक कार्यकर्ता आशा टम्टा और अश्विनी त्यागी ने भी अपने विचार व्यक्त किये।

आयोजन का संचालन अर्चना ग्वाड़ी ने किया।
इस अवसर पर नीना रावत, टी आर बरमोला, शिव प्रकाश जोशी, वीरेंद्र खंडूड़ी, संजय भार्गव, डी सी नौटियाल, गणेश उनियाल किशन सिंह, हिमांशु आहूजा, सुशील पुरोहित, विनोद कुमार, शुभम शर्मा, साकेत रावत, एन सी सिडोला, ममता रावत, आशा टमटा, डा. जयंत नवानी, समदर्शी बड़थ्वाल, प्रेम साहिल, बी एस रावत, आशीष गर्ग, ए के मेहता, रमेश चंद्र जोशी, कल्पना बहुगुणा, सुजाता पटनी, विद्या सिंह, अश्विनी त्यागी, सुबोध सिन्हा, एम एल नौटियाल, राजीव पांथरी, आशा डोभाल, मेजर एम एस रावत, कृष्ण कुमार कोटनाला, दिनकर सकलानी आदि मौजूद थे।

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