कन जमन (गढविळ कविता मनखी कलम बिटी )

कन जमन (गढविळ कविता  मनखी कलम बिटी )
Spread the love

कन जमन अयूं, सब्बी समझणा अर बिगंणा
कर्म अफी कना छवां, दोष हैंक तै दीणा।

मूल निवास गॉव बणे कन भली नौकरी पायी
गॉव़ छोड़ी ट्रांसफर जुगाड़ लगे देहरादून आयी।

क्या धर्यू वै पहाड़ मा, लिड़क ब्वारी लेक शहर आयी
घर बिटी, हल्दी, दाळ, चून, गहथ ब्वे मा मॅगायी।

हम जणी सब्बी किराया कू़ड़ पर झाड़ू पोछा लगाणा
घर कूड़ी पर ताळ लग्यूं, वख अब हमसे नी रयाणा।

घर पर स्कूल मा अब पढै लिखै नी हूणा, रोज लड़ै
कोटद्वर ऐकन कमरा लियूं, कैक पढै अर कैक लिखै।

भौजी गौडी जंगळ छोड़ी कन टीवी मा गौ कथा सुणनी
ब्वे बुबा पैली वृ़द्धाश्रम मा छेयी, मर्या बाद भागवत कथा हूणी।

हरीश कण्डवाल मनखी कलम बिटी

Mankhi Ki Kalam se

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *