उत्तराखंडयमकेश्वर

जानिये किन कारणों से कम रहा यमकेश्वर विधानसभा में मतदान प्रतिशत कम

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उत्तराखण्ड राज्य में सम्पन्न हुए चुनाव में जहॉ पिछली बार की अपेक्षा इस बार प्राप्त आंकड़ों के हिसाब 5 प्रतिशत कम हुआ है। निर्वाचन आयोग द्वारा मतदान करने के लिए जनता से अनेकों प्रकार से अपील की गयी, साथ ही मतदान प्रतिशत बढाने के लिए हर संभव प्रयास किये गये। निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव सम्पन्न कराने के लिए सभी प्रकार की तैयारियॉ की गयी और पूरे प्रदेश में शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव सम्पन्न कराने में सफल रहा है। शहरी मतदाताओं में मतदान के लिए उत्साह दिखाया गया, वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में लोगों में उत्साह कम ही नजर आया।
      वहीं भाजपा की गढ कहे जाने वाली यमकेश्वर विधानसभा में इस बार 41 प्रतिशत ही मतदान हुआ है, जो कि पिछली बार की अपेक्षा कम है। वहीं यमकेश्वर विधानसभा में डांडामण्डल क्षेत्र में चुनाव बहिष्कार के चलते मतदान 20 प्रतिशत ही हो पाया, जबकि 1273 मतदाता वाले बूथ गंगाभोगपुर में मात्र 01 वोट ग्रामीण द्वारा डाला गया, और मतदान का बहिष्कार किया गया।
  डांडामण्डल के अन्य बूथों की बात की जाय तो वहॉ पर भी लगभग 30 प्रतिशत मतदान हुआ हैै।
गंगा भोगपुरः  कुल मतदाता 1273 कुल मतदान 01 
तल्ला बनास  – कुल मतदाता 997 कुल मतदान 301 पुरूष 147 महिला 154 कुल प्रतिशत 30.19
मल्ला बनास. कुल मतदाता 289 कुल मतदान 77 पुरूष 34 महिला 45 कुल प्रतिशत 28
किमसार- कुल मतदाता 666 कुल मतदान 249 पुरूष 101 महिला 148 कुल प्रतिशत 38.07
धारकोट- कुल मतदाता 629 कुल मतदान 175 पुरूष 73 महिला 102 कुल प्रतिशत 30.59
अमोला कुल मतदाता 800 कुल मतदान 213  कुल 26 प्रतिशत मतदान
ताछला अमोला- कुल मतदाता 244 कुल मतदान 109 पुरूष 57 महिला 57 कुल प्रतिशत 45.79
ताल – कुल मतदाता 482 कुल मतदान 152 पुरूष 62 महिला 90 कुल प्रतिशत 45.79
उपरोक्त ऑकड़ों पर नजर डाली जाय तो डांडामण्डल क्षेत्र में कुल 5326 मतदाताओं में से 1264 मतदाताओं ने ही अपना मत का प्रयोग किया। कुल 23 प्रतिशत मतदान पूरे क्षेत्र में हुआ है। वहीं बुकण्डी – कुल मतदाता 490 कुल मतदान 252 पुरूष 143 महिला 109 कुल प्रतिशत 47.74 और हीराखाल- कुल मतदाता 728 कुल मतदान 349 कुल प्रतिशत 46.05 प्रतिशत मतदान हुआ है। उपरोक्त ऑकड़ों पर नजर डाली जाय तो इस बार मतदाता ने चुनाव में अपना उदासीन रवैया दिखाया है।
     डांडामण्डल और पूरे यमकेश्वर क्षेत्र में इस बार मतदान प्रतिशत कम होना चिंतनीय विषय है। एक ओर जहॉ डांडामण्डल क्षेत्र में जहॉ पूर्ण बहिष्कार का मुद्दा स्थानीय जनता उठा रही थी, उसके बावजूद भी गंगाभोगपुर को छोड़कर अन्य बूथों पर औसतन 32 प्रतिशत मतदान हुआ है। स्थानीय लोगों का चुनाव बहिष्कार का मुख्य मुद्दा बीन नदी पुल और वन अधिनियम के साथ सड़के और अन्य मूलभूत सुविधाओं को लेकर रहा है। ऐसा ही कुछ आंकड़ा द्वारीखाल और दुगड्डा मण्डल का भी रहा है, जहॉ 2019 में यमकेश्वर विधानसभा में 48 प्रतिशत मतदान हुआ था इस बार 07 प्रतिशत घटकर 41 प्रतिशत ही मतदान हुआ है।
   वैसे तो पूरे प्रथम चरण का मतदान में मतदाताओं ने उदासीन रवैया दिखाया है, इस उदासीन रवैया ने सत्ता पक्ष और विपक्ष की देनों की चितांओं को बढाया है, वहीं लोकतंत्र के लिए यह नुकसान दायक है। अभी पूरे चुनाव की विवेचना करना उचित नहीं है, क्योंकि अभी 06 चरण के मतदान होना शेष है। लेकिन उत्तराखण्ड के परिपेक्ष्य में जिस तरह से अलग अलग क्षेत्रों में चुनाव बहिष्कार हुआ है, उसके लिए राज्य स्तरीय नेतृत्व और विकास अवधारणा पर प्रश्न चिन्ह लगता दिख रहा है। मतदाताओं की लोकतंत्र के प्रति विश्वास खत्म होने का कारण चुने हुए जनप्रतिनिधियों का क्षेत्र की समस्याओं का निराकरण करना नहीं है। मोदी और योगी फैक्टर पर स्थानीय नेतृत्व का नकारापन भारी पड़ता दिखाई दे रहा है। जनता से मिले रूझानों ने यह भी बताया कि प्रत्याशी कब तक केन्द्रीय और शीर्ष नेताओं के नाम से रोटी खाते रहोगे, अपनी उपलब्ध्यिं से भी तो मतदाताओं को बताओ। इस बार के चुनाव में खासकर पहाड़ी क्षेत्र का मतदाता बहुत ज्यादा उत्साहित नजर नहीं आया है। इसके पीछे कई कारण बताये जा रहे हैं।
      यमकेश्वर के गंगा भोगपुर से लेकर पूरे डांडामण्डल क्षेत्र में चुनाव बहिष्कार की बात पिछले बरसात के बाद से ही शुरू हो चुका था, जिस पर स्थानीय शीर्ष नेताओं ने ध्यान नहीं दिया, साथ ही बीन नदी पुल, धारकोट जुलेड़ी मोटर मार्ग, कड़े वन अधिनियम, कौड़िया किमसार मोटर मार्ग, तालघाटी ऑलवेदर रोड़, अशासकीय विद्यालयों का प्रांतीकरण, ब्लॉक मुख्यालय से जोड़ने वाला मोटर मार्ग, अंकिता हत्याकांड जैसे आदि मुख्य मामले प्रमुख रहे।
      वहीं मीडिया और सोशल मीडिया में भले ही चुनाव प्रचार प्रसार हुआ, लेकिन धरातलीय स्थिति कुछ और ही नजर आती दिखी। यमकेश्वर के ऑकड़ों पर नजर डाली जाय तो भाजपा की सबसे मजबूत सीट मानी जाने वाली यमकेश्वर में हमेशा भाजपा लोकसभा में 15 हजार मतों से बढ़त लेती रही है, इस बार के ऑकड़ों को देखते हुए राजनीति के चाणक्यों का कहना है कि इस बार बढत में ज्यादा अंतर देखने को नहीं मिलेगा। पूरी समीक्षा तो चुनाव परिणाम आने पर ही होगी, लेकिन प्राप्त रूझान भाजपा और कागें्रस दोनों के लिए चिंताजनक जरूर बताये जा रहे हैं।
     डांडामण्डल क्षेत्र में आखिर चुनाव बहिष्कार पूर्ण रूप से क्यों नहीं हो पाया 
लोकतंत्र के लिए मतदाताओं द्वारा चुनाव बहिष्कार करना घातक होता है,क्योंकि इससे लोकतंत्र को मजबूती नहीं मिलती है, और चुनाव आयोग द्वारा की गयी समस्त तैयारी भी बेकार चली जाती है, जिस पर करोड़ो का व्यय होता है। गंगाभोगपुर में जिस तरह ग्रामीणों ने पूर्ण बहिष्कार किया उसके पीछे बहुत बड़े कारक माने जा रहे हैं। जिसमें बीन नदी पुल और वन अधिनियम कानून दोनों हैं। वहीं कुमार्था गॉव में सड़क निर्माण नहीं हुआ वहॉ भी चुनाव बहिष्कार का परिणाम दिखाई दिया और मात्र 25 प्रतिशत मतदान ही हुआ ।  डांडामण्डल क्षेत्र में आखिर में मतदाताओं ने मतदान करने का निर्णय लिया। स्थानीय निवासियों से मिली प्राप्त जानकारी के अनुसार बताया जा रहा है कि मतदाताओं ने स्वैच्छिक मतदान ना करके बल्कि उनको डराकर मतदान करवाया गया है। उनको राशन कार्ड से नाम हटाने शांति भंग करने पर मुचलके और मुकदमे दर्ज करने, सरकारी नौकरी में आवेदन नहीं कर पाने जैसे अिद प्रकार का डर बिठाने का आरोप स्थानीय निवासी लगा रहे हैं। इस बात पर कितनी सच्चाई है, इसकी हम पुष्टि नहीं कर रहे हैं।
    वहीं पार्टी के पुराने कार्यकर्ता भी अपनी अपनी पार्टी से नाराज नजर आते दिखे जिस कारण धरातल पर उतना प्रचार नहीं हो पाया। हालांकि महिलाओं ने मतदान किया है, उन पर आज भी कुछ पुराने फैक्टर आज भी हावी रहे।  लेकिन बाहर नौकरी करने वाले युवा इस बार मतदान के लिए गॉव नहीं गया और जो घरों में भी थे वह घर से बाहर नहींं निकले, इसके पीछे शादी विवाह भी बताया जा रहा है।
    स्थानीय निवासी सबसे ज्यादा अपने जनप्रतिनिधियों से नाराज दिखाई दे रहे हैं, उनका कहना है कि स्थानीय स्तर पर क्षेत्रीय प्रतिनिधियों द्वारा विकास कार्य नहीं किया जाना, स्वहित पर ज्यादा ध्यान दिया जाना, साथ ही जनता के बीच संवाद स्थापित नहीं करना प्रमुख कारण माना जा रहा है। मतदाताओं का कहना है कि हम बहिष्कार नहीं करना चाहते हैं, और उन्हें मतदान में प्रतिभाग नहीं करने पर भी मलाल है, किंतु उनका कहना है कि हमारी मूल भूत सुविधाओं के साथ यदि खिलवाड़ ही होना है तो फिर हमारे मत का तो दुरपयोग सत्ताधारी नेता कर लेते हैं, और हमें मिलती है सिर्फ और सिर्फ आश्वासन। यदि इसी तरह चलता रहा तो आने वाले समय में लोकतंत्र पर इसका दुष्प्रभाव अवश्य पड़ेगा जिसका खामियाजा लोकतांत्रिक पंरपरा पर पड़ेगा।

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