सिंधु सभ्यता की तरह यमकेश्वर की प्राचीन कण्डरह मंडी की अंतिम दुकान आपदा में बही, अब अवशेष भी शेष नहीं
यमकेश्वर क्षेत्र की सन 1950 से 2000 तक गुलजार रहने वाली जानी मानी कण्डरह मंडी की अंतिम दुकान भी इस आपदा में धराशयी हो गई है। आजादी के बाद की यमकेश्वर क्षेत्र की सबसे पुरानी प्रचलित कण्डरह मंडी एक समय पूरे क्षेत्र की आर्थिकी की रीढ़ कही जाती थी। 1950 में ज़ब पूरे दुगड्डा द्वारीखाल एव समस्त यमकेश्वर में सड़क नहीं थी उस समय ताल घाटी में गंगा बस सर्विस की बसें एवं बाद में गढ़वाल मोटर्स की बसों का संचालन ऋषिकेश हरिद्वार से होता था और पूरे इलाके की मंडी कण्डरह मंडी थी। कभी इसे मिनी कनखल के नाम से जाना जाता था। एक जमाने में यँहा से सारे यमकेश्वर और दुगड्डा का आधार भाग का व्यापार यही से होता था।
कण्डरह मंडी में सभी सामान से लेकर होटल, ठहरने के लिए छोटा सा ढाबा उपलब्ध था। जहाँ दूर के यात्री रात्रि विश्राम करते थे.। उस समय कण्डरह मंडी में लगभग तीन दर्जन से अधिक दुकाने थी। तीनो वक्त जीएमवो की बसे चलती थी। इसी तरह ताल और कुशाशील में भी मंडी होती थी।
लगभग 50. साल तक कंडरह मंडी गुलजार रही, उसके बाद जैसे ही डांडामंडल सड़क गई पलायन के कारणों से कंडरह मंडी की पतन की इबारत लिखी गई। 2000 के बाद यँहा धीरे धीरे दुकाने बंद हो गई और 2005 के बाद एक मात्र दुकान श्री धनवीर सिंह रावत ने साक्ष्य के तौर पर खोल रखी थी और कंडरह साईकिलवाड़ी के लोगो की छोटी जरूरतो को पूरी कर रही थी वह भी 20 अगस्त 2022 की आपदा में धराशयी हो गई हैं, अब कंडरह मंडी के अवशेष भी शेष बनकर रह गई हैं, अब यह हम जैसे लोगो के लिए एक इतिहास का विषय बनकर रह गई है।
जिन लोगो ने कंडरह मंडी देखी है उनके लिए अब यह स्मृति शेष रह गई है। हम जैसे लोगो की तो इस मंडी से बहुत सी यादे जुडी हैं, यँहा पर पूर्व में स्व लाल सिंह बिष्ट ( भूमियाकिसार ) स्व जमन सिंह चौहान (जामल गाँव ) श्री किशन सिंह रावत( परचुन की दुकान ) , श्री त्रिलोक सिंह रावत,( कपड़ो की दुकान ) स्व गेंदन सिंह रावत,( जलेबी और चाय की दुकान ) स्व बादर सिंह रावत,( परचुन की दुकान बैकरी ) स्व गोविन्द सिंह रावत,( चाय की दुकान ) स्व राजेंद्र सिंह रावत ( बर्तनो की दुकान ) स्व सोहन सिंह रावत छोटा सा ढाबा और रात्रि ठहरने की व्यवस्था, अब्दुल्ल के खच्चरों की घुड़साल जगदीश सिंह रावत की ग्रेन डीलर और श्री धनवीर सिंह रावत की चक्की और बस एव मैक्स गाड़ियों का अड्डा यँहा पर होता था। उस समय पूरा डांडामंडल और आधा यमकेश्वर क्षेत्र सीधे ताल घाटी पर निर्भर था। दूर दराज क्षेत्र के लोग बस देखने यँहा आते थे, और यँहा से चौलाई और कददू देकर नमक गुड और सीरा लेकर जाते थे।
शायद अब यह बातें यह यादे केवल सोशल मीडिया के जरिये एक स्मृति शेष बनकर रह गई हैँ, लेकिन आज भी और आगे भी यादे हमेशा जेहन में रहेगी।
हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।