मोदी का उत्तराखंड लगाव और सोनिया करती हैं अनदेखी
देहरादून। पिछले 8 सालों से केन्द्र की सत्ता से दूर कांग्रेस पार्टी अपनी जड़े जमाने के लिए नए सिरे से योजनाएं बनाने में लगी हुए है। राजस्थान के उदयपुर में इसको लेकर चिंतन शिविर का आयोजन किया गया। जिसमें कई अहम फैसलों पर मुहर लगी। उदयपुर में हुए चिंतन शिविर के बाद कांग्रेस ने पॉलिटिकल अफेयर ग्रुप और टास्क फोर्स-2024 का गठन किया है। इसमें तमाम राज्यों से वरिष्ठ नेताओं को जगह दी गई है, लेकिन उत्तराखंड को कोई प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है। उत्तराखंड की अनदेखी से प्रदेश कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता अंदर ही अंदर नाराज हैं।
कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इन दो समूहों के अलावा भारत जोड़ो यात्रा के लिए केंद्रीय संगठन की स्थापना की है। इसमें भी तमाम राज्यों से जुड़े नेताओं को स्थान दिया गया है। जो आने वाले समय में पार्टी की नीति और दिशा तय करने में अहम भूमिका अदा करेंगे। पार्टी के भीतर पावर सेंटर की तरह काम करने वाले इन ग्रुपों में उत्तराखंड की अनदेखी यहां के नेताओं को खल रही है। प्रदेश स्तरीय नेता और कार्यकर्ता इस संबंध में खुलकर तो कुछ नहीं कह रहे हैं, लेकिन उनके भीतर इस बात को लेकर असंतोष जरूर पनप रहा है। वैसे भी केंद्रीय राजनीति में प्रदेश का प्रतिनिधित्व न के बराबर है। वर्तमान में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत जहां एआईसीसी की वर्किंग कमेटी में सदस्य हैं, वहीं पूर्व विधायक काजी निजामुद्दीन के पास सचिव का पद है।
पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि पार्टी को बीते विधानसभा चुनाव में भले ही अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाए हैं, लेकिन पार्टी के वोट प्रतिशत में किसी तरह की कमी नहीं आई है। उल्टा पार्टी को इस बार चार से पांच प्रतिशत अधिक वोट मिले हैं। पार्टी 11 सीटों से 19 पर पहुंची है।ऐसे में केंद्रीय राजनीति में यदि पार्टी की भलाई के लिए कोई बड़े फैसले लिए जा रहे हैं, उसमें उत्तराखंड को भी दायित्व दिया जाना चाहिए था। पार्टी प्रदेश अध्यक्ष करन मेहरा का कहना है कि उदयपुर में चिंतन शिविर में मंथन के बाद ही सोच समझकर पार्टी हाईकमान के स्तर पर पार्टी हित में यह फैसला लिया गया है।
प्रदेश की राजनीति में मिथक को तोड़ते हुए भाजपा लगातार दूसरी बार सत्ता में काबिज हुई है। असंतोषी कांग्रेसी नेताओं की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उत्तराखंड लगाव उन्हें यहां के लोगों के करीब लाता है। उन्होंने पार्टी नेताओं को ही नहीं नौकरशाह को तक केंद्र में तवज्जो दी है। जबकि सोनिया गांधी पिछली बार उत्तराखंड कब आईं थीं, यह खुद कांग्रेस के नेताओं को भी याद नहीं है। असंतोषी नेताओं को सोनिया गांधी की उत्तराखंड के प्रति ये अनदेखी भी अखरती है।