यमकेश्वर का त्याड़ो स्टेडियम आपदा से हुआ क्षतिग्रस्त , क्रिकेट टूर्नामेंण्ट हो सकता है प्रभावित
यमकेश्वरः मिनी यमकेश्वर कप के नाम से से प्रसिद्ध त्याड़ो कप का आयोजन कराना मुश्किल प्रतीत हो रहा है। त्याड़ो स्टेडियम में इस बार भारी बरसात में आपदा के चलते पूरा मैदान क्षतिग्रस्त हो गया है। मैदान में नदी का रेत और पत्थर आने से पूरा मैदान क्षतिग्रस्त हो गया है, जिस कारण आगामी दिसम्बर जनवरी में होने वाले गेंद मेले से पूर्व त्याड़ो कप का आयोजन प्रभावित हो सकता है।
इस मैदान में यमकेश्वर क्षेत्र ही नहीं बल्कि हरिद्वार ऋषिकेश और अन्य जगह की टीमें प्रतिभाग करती आयी हैं, हर टीम का सपना होता है कि वह इस त्याड़ो कप को अवश्य जीते और उनकी टीम के प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को आगे का अवसर मिले। पिछले 30 सालों से इस मैदान में क्रिकेट का भव्य आयोजन होता आ रहा है जिसमें क्षेत्र की लगभग 40-50 टीमें प्रतिभाग करती हैं, और पूरे एक माह तक क्रिकेट का आयोजन होता है।
युवक मंगल दल ढौसण के सदस्य और क्रिकेट आयोजन कर्ता अरविंद पयाल ने बताया कि इस बार मैदान में बरसात के कारण यहॉ रेत और पत्थर आने से पूरा मैदान क्षतिग्रस्त हो गया है, जिसको खेलने लायक बनाना बहुत मुश्किल हो गया है। उन्होंने कहा कि युवक मंगल दल के पास इतने संसाधन नहीं है कि वह इस मैदान को पहले के जैसे बना सके। वहीं विमल पयाल ने कहा कि यदि जनप्रतिनिधियों द्वारा मैदान को बनाने के लिए सहायता प्राप्त होती है तो पुनः दिसम्बर जनवरी में त्याड़ो कप का आयोजन संभव हो पायेगा।
वहीं गेंद मेला त्याड़ो गाड़ समिति के अध्यक्ष पूरण कैन्तुरा ने कहा कि मैदान को बनाया जाना नितांत आवश्यक है, क्योंकि यह हमारे क्षेत्र की धरोहर है, और युवा पीढी को खेल भावना के साथ सामाजिक तौर पर एक दूसरे के साथ जुड़ने का अवसर मिलता है, वहीं खिलाड़ियों एवं आयोजनकर्ताओं में आपसी सामाजिक सद्भावना विकसित होती है। समिति के महासचिव सत्यपाल रावत ने कहा कि त्याड़ो कप के आयोजन से क्षेत्र में एक माह तक चहल पहल बनी रहती है, और साथ ही सभी प्रवासी एवं क्षेत्रीय खिलाड़ियों को एक दूसरे के साथ खेलने का अवसर मिलता है। सामाजिक कार्यकर्ता एस0 पी0 जोशी का कहना है कि हम सभी को संयुक्त रूप से प्रयास करना चाहिए और जनप्रतिनिधियों को आगे आकर इस मैदान के सुदृढीकरण के लिए हर संभव मदद करना चाहिए, क्योंकि त्याड़ो कप के आयोजन होने से गेंद मेले तक क्षेत्र में हर्षोल्लास तो रहता ही है, साथ ही खेल और सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन से हमारी क्षेत्रीय संस्कृति जीवित रहती है।