दस हजार बच्चों की फूलदेई के समापन पर बच्चों की सांस्कृतिक प्रस्तुति के साथ लोगों ने किये किताबें के कोने भेंट

दस हजार बच्चों की फूलदेई के समापन पर बच्चों की सांस्कृतिक प्रस्तुति के साथ लोगों ने किये किताबें के कोने भेंट
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फूलदेई को देश दुनिया के बच्चों को सृजनशील और संवेदनशील बनाने का पर्व बने

 

 

देहरादून :धाद द्वार प्रदेश के दस हजार बच्चों के लिए आयोजित सृजन के बाल पर्व फूलदेई का समापन संस्कृति विभाग के प्रेक्षागृह में किया गया. इस अवसर फूलदेई रचनात्मक प्रतिभाग में छात्रों द्वारा बनायीं गयी शीट की प्रदर्शनी भी लगायी गयी  एन आई वी एच और जी जी आई सी अजबपुर और जूनियर हाई स्कूल लाल तप्पड़ के बच्चों की संस्कृति प्रस्तुति के साथ इस अवसर पर कोना कक्षा का कार्यक्रम के सदस्य स्कूलों को किताबे भेंट की गयी.  फुलारी गीत के साथ फूलदेई को करोडो लोगों तक ले जाने वाले पांडवाज टीम आयोजन के मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए कहा कि जाड़ा जाने और बसन्त आने पर उत्तराखण्ड के बच्चे जो सैनिक परम्परा की पृष्ठभूमि से हैं वो अपने भूगोल, वन, प्रकृति से स्वयं को समझना ऊंचे-नीचे, फिसलन भरे रास्तों पर चलना शुरू करते हैं। उन्होंने फूलदेई गीत फूलदेई घोघा त्वेआसीस देला,तेरा चौक औलिब्वारि ढस्कैकि डोला।तेरि डेल़्हि माई धऽरि फूल पाती,भोल़ का साल तू खिलौली नाती।इन गीतों को भगवान के बाल रूप का आशीष भी माना जाता है।

आयोजक टीम कोना कक्षा का की और से बोलते हुए संयोजक गणेश चंद्र उनियाल और आशा डोभाल ने बताया कि कोन कक्षा का शिक्षा में समाज की रचनात्मक भूमिका का अभियान है जिसमे आम समाज के सहयोग से प्रदेश के सैकड़ों स्कूलों में 700 किताबों के कोने स्थापित किये जा चुके है उसी के अंतर्गत फूलदेई को सृजन का बालपर्व बनाते हुए इस बार प्रदेश के 400 से अधिक स्कूलों के दस हजार बच्चों ने फूलदेई का हिस्सा बनने के लिए प्रतिभग किया थाकोना कक्षा का के विचार को बनाने वाले तन्मय ममगाईं और सुनील भट्ट ने बताया की उत्तराखण्ड की सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था को लेकर समाज में गहरी उदासीनता है जबकि लाखों बच्चे इस व्यवस्था से निकल रहे है ऐसे मे समाज को उन स्कूलो से रचनात्मक रूप से जोड़ते हुए इस अभियान की नींव रखी गयी थी महज पांच सालों में आज प्रदेश के हर जिले  स्कूलों तक यह पहुंच गया है इस अवसर पर अभियान से जुडे हुए शिक्षक देहरादून से मनीषा ममगाईं, राजीव पांथरी, पौड़ी से जगमोहन सिंह रावत, ने बिमल रतूड़ी से अपने अनुभव साझा किये जिसमे समाज से जुड़ें के चलते स्कूलों पर हो रहे प्रभाव पर बात हुई. शिक्षक आज के दौर में नयी चुनौतियों से जूझ रहे हैं जिन्हे समझना जरुरी हैं सामाजिक सहयोग के साथ इनके लिए काम कर पाना  अभियान की सहयोगी महिला आयोग की पूर्व सचिव रमिंद्री मंद्रवाल, रूम टू रीड की स्टेट हेड पुष्पलता रावत पूर्व शिक्षा निदेशक पुष्प खंडूरी ने अर्चन ग्वाड़ी से बात करते हुए बताया की समाज को किसी भी गतिविधि में शामिल कर पाना एक विशेष चुनौती है लेकिन वास्तविक बदलाव यहीं से प्रारम्भ होता है आयोजन  की अध्यक्षता कर रहे लोकेश नवानी ने कहा कि दुनिया में किसी भी संस्कृति में जो सुंदर है वह बचा रहना चाहिए। उत्सव मूलतः खुशी और सामूहिकता के आयोजन हैं। यदि इनमें वर्तमान के अनुसार रचनात्मक और सकारात्मक विचार जुड़ते हैं तो ये अधिक सार्थक होंगे। क्योंकि परंपरा से इन्हें सामाजिक आधार प्राप्त है और वर्तमान से जोड़ने पर वे उद्देयपूर्ण और प्रासंगिक हो जाते हैं।

इस अवसर पर विभिन्न स्कूलों को औपचारिक रूप से  किताबों के कोने भेंट किये गये

इस अवसर पर अभियान में रचनात्म योगदान देने के लिए शिक्षकों- को भी सम्मानित किया गया

इस अवसर पर हिम फउंडेशन के अजय बहुगुणा, आर आई एम् टी के मितेश सेमवाल हुड़को के संजय भार्गव कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकान्त धस्माना प्रदीप डोभाल चकबंदी अभियान के प्रदीप कुकरेती गढ़वाल सभा के अध्यक्ष रोशन धस्माना माया इंस्टीट्यूट से प्रभा जुयाल बी एस उनियाल, डॉ राकेश बलूनी गणेश कंडवाल, किरन  कंडवाल,शादाब अली डॉ संध्या नेगी विनीता मैठाणी, विद्या सिंह, पुष्पा खण्डूरी, सिद्धार्थ शर्मा, जगमोहन रावत, मीना जोशी, डॉ राकेश बलूनी, ज्योति जोशी, विनीता उनियाल, डीसी नोटियाल, रुचि शेमवाल, अनिता विकास बहुगुणा, माधुरी रावत, शांति बिंजोला, विमल रातुरी, सुशील पुरोहित,अर्चना ग्वारी,आशा डोभाल,उपस्थित रहे।

Mankhi Ki Kalam se

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