भौगोलिक दृष्टिकोण से केदारनाथ का प्रतिरूप है तालेश्वर महादेव

भौगोलिक दृष्टिकोण से केदारनाथ का प्रतिरूप है तालेश्वर महादेव
Spread the love

 

यमकेश्वर : उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है, क्योकि यँहा कण कण में देवत्व का वास है। उत्तराखंड में अधिकतर शिवालय या फिर माता शक्ति के मंदिर हैं। माता शक्ति के मंदिर ऊंचे पहाड़ों में विराजमान हैं, वंही भोलेनाथ नदी या घाटियों के एकांत में रहना ज्यादा पसंद करते है, इसलिये शिवालय घाटियो में ही बने हैं। उत्तराखंड धार्मिक रूप से पर्यटन के रूप में जाना जाता है, चार धाम, हरिद्वार, ऋषिकेश, नीलकंठ या अन्य माता शक्ति के मंदिर हो या पंच बदरी या पंच केदार। उत्तराखंड में आस्था के प्रतीक ये मंदिर प्राकृतिक रूप में भी अलौकिक है। आज केदारनाथ धाम 12 ज्योतिर्लिंग में से प्रमुख है, इसलिये 2013 के आपदा के बाद भी श्रद्धालुओं की आस्था में कोई कमी नही आई। भौगोलिक दृष्टिकोण से केदारनाथ धाम उच्च हिमालयी क्षेत्र में बना 8वी शताब्दि में जनमेजय ने बनाय था, यह कत्यूरी शैली में निर्मित है। यह मंदिर मंदाकिनी नदी के किनारे बसा हुआ है, यँहा गौरीकुंड से पैदल या खच्चरो से या संभ्रात लोग हैली सेवा से यात्रा करते हैं।

अब हम भौगोलिक स्थिति के अनुसार तालेश्वर धाम से परिचय कराते हैं, केदारनाथ और तालेश्वर धाम में निम्न समानताएं पायी जाती हैं-

1- केदारनाथ की तरह तालघाटी भी घाटी में बसा शिव धाम है।

2- केदारनाथ धाम मन्दाकिनी नदी तट पर है, जबकि तालेश्वर ताल नदी के तट पर।

तालेश्वर धाम लोक मान्यतानुसार भगवान शिव का गुप्त स्थान है, जनश्रुति के अनुसार वेदों और पुराणों में वर्णन आता है कि जब भष्मासुर राक्षस ने भगवान भोलेनाथ का कठोर तप करके भोले भंडारी को खुश कर उनसे वरदान में भष्म कंकण प्राप्त कर लिया तो तब भस्मासुर ने भष्म ककंण का उपयोग पहले भगवान भोलेनाथ पर ही करने के लिये आतुर हो गया तो तब भगवान शिव ने अपनी जान बचाते हुए हिमालय से निकल पड़े, तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप रखकर भस्मासुर को रिझा लिया। भस्म ककंण को नृत्य के भाव भंगिमाओ से खुद भस्मासुर को उसके हाथों ही उसके सिर पर रखकर उसे भष्म कर दिया। जब भोलेनाथ भष्मासुर से अपनी जान जोखिम से बचाते हुए तालेश्वर धाम में आये और गुप्त रूप में अंतर्धान हो गए।

दूसरी लोक मान्यता यह है कि 1989 में जँहा पर वर्तमान मंदिर निर्मित है वँहा पर एक साल के पेड़ का ठूंठ था जिस पर कुछ समय तक पानी और सफेद दूध के जैसे द्रवित पदार्थ का श्राव होता रहता था। एक बार वँहा पर नेपाली मूल का परिवार काम करने आये हुए थे, उन्हें चूल्हा जलाने के लिये सूखी लकड़ी की जरूरत थी तो उन्होंने उस साल के ठूंठ को अनजाने में काट लिया, रात को उसकी लकड़ी से चूल्हा जला और उनमे खाना बनाकर खा लिया, सपरिवार सब लोग सो गए। लेकिन एक ऐसी घटना घटित हुई जिसने सबको चकित कर दिया। पूरा नेपाली परिवार तक तीन दिन तक बेसुध सोया रहा, अगले दिन जब परिवार की महिला जिसका नाम पार्वती था वह चीखने चिल्लाने लगी और नाचते हुए उस खूंटे के पास पहुंची उसके साथ अन्य लोग भी पहुंचे तो देखा कि उस साल के खूंटे पर साँप लटका हुआ था, वह नेपाली मूल की महिला उस सांप को पकड़कर नाचते हुए कहने लगी कि यँहा पर मेरा स्थान है, और यँहा पर मंदिर बनवाओ।।

इस सब घटना को देवत्व का प्रतीक समझकर आस्थावान समाज के लोगो ने वँहा पर सामूहिक प्रयासों से मंदिर का निर्माण करवाया, उसके बाद पुनः कंडरह निवासी श्री भोपाल सिंह रावत ने उसका पुनरुद्धार करवाया।

2017- 18 में तालेश्वर मंदिर ट्रस्ट बनाया गया जिंसमे श्री महिपाल रावत, श्री मोहन सिंह बिष्ट, श्री यशपाल असवाल, श्री आनंद सिंह बिष्ट, श्री सत्यपाल रावत एवम समाज के अन्य मनीषियों के द्वारा पुनः नए ढांचे के रूप में मंदिर का आधुनिक ढंग से निर्माण किया गया। तालेश्वर मंदिर तालघाटी में ताल नदी के किनारे रमणीक स्थल पर बना है, नदी के दाहिनी ओर कल कल करती हुआ छोटी नदी बह रही है, मंदिर के चारो ओर हरे भरे पेड़, सामने ऊंचे पहाड़ की चोटियां सबको आकर्षित करती हैं। अभी नवनिर्मित मंदिर शैशवावस्था में है, एवं शिव भक्तों के प्रयासों से अभी यँहा पर अन्य सुविधाओ पर कार्य चल रहा है। एकांत प्रिय एवम प्रकृति प्रेमियों एवम शिव भक्त पर्यटकों के लिए यह धाम बहुत ही आकर्षित करने वाला है।

उक्त मंदिर के बारे में क्षेत्रीय ज्योतिषी एवं पंडित श्री गुणांनन्द कंडवाल एवं पंडित श्री संजय कंडवाल ने बताया कि इस मंदिर में लोगो की अगाध श्रद्धा भक्ति है। इस मंदिर में मांगी गई मनौतियां पूर्ण होती हैं। उन्होंने कहा कि मैं इस मंदिर में शुरू के निर्माण से लेकर आज तक यँहा पर क्षेत्र के यजमानों का रुद्री पाठ करवा चुका हूँ। इस मंदिर में जिस भी निःसंतान दम्पति के द्वारा रुद्री पाठ करवाकर मनौती के रूप में घड़ा चढ़ाया गया अधिकांश को संतान की प्राप्ति अवश्य हुई है, इसके कई उदाहरण उन्होंने बताया।

तालेश्वर मंदिर जिला पौड़ी गढ़वाल के यमकेश्वर प्रखंड के मल्ला बनास ग्राम सभा का तालघाटी के ताल सहजादा में अवस्थित है, यह ऋषिकेश से 22 किलोमीटर दूर और हरिद्वार से 30 किलोमीटर दूर राजाजी नेशनल पार्क होते हुए यँहा पहुँचने के लिये दो रास्ते हैं, जो गंगाभोगपुर ( कौड़िया) से है। पहला कच्चा रास्ता जो जोखिम भरा जरूर है लेकिन प्रकृति प्रेमी और वाइल्डलाइफ के शौकीन लोगो के लिये इस रास्ते मे जाते हुए हाथियों के दर्शन साथ ही अन्य जंगली जानवरों को निहारते हुए आगे माता रानी माँ विंदयवासनी के दर्शन करते हुए आप आगे तीन किलोमीटर दूर कच्चे रास्ते पर जाते हुए तालेश्वर धाम पहुंचा जा सकता है।

वंही दूसरा रास्ता गंगाभोगपुर से डांडामण्डल के लिये जाने वाली सड़क से जंगल का लुफ्त उठाते हुए, प्रकृति को आलिंगन करते हुए पहाड़ के टेढ़े मेढ़े जोखिम भरे सड़क पर ट्रेक करते हुए कांडाखाल जा सकता है। कांडाखाल से लिंक रोड जो तालघाटी के लिये निकली है, घुमावदार सड़को से होते हुए तालेश्वर धाम में भगवान भोलेनाथ के दर्शन कर अविभूत हो सकता है।

 

©®@ हरीश कंडवाल मनखी की कलम से।

Mankhi Ki Kalam se

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *