’एम्स’ की मदद से घर वापस लौटा ’हिमांशु’ 22 दिनों से लापता था 14 वर्ष का नाबालिग

’एम्स’ की मदद से घर वापस लौटा ’हिमांशु’ 22 दिनों से लापता था 14 वर्ष का नाबालिग
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पिता के द्वारा प्रताड़ित किए जाने और रोज-रोज की डांट से क्षुब्ध होकर 14 साल का एक नाबालिग घर छोड़कर 250 किमी दूर भाग आया। इस दरम्यान दृष्टिबाधित इस मासूम के पैर की एड़ी में कील चुभ गई और इलाज के अभाव में जख्म गहरा हो गया। असहनीय दर्द झेल रहे इस बच्चे के पास इलाज के लिए पैसे नहीं थे। किसी ने उसे एम्स पहुंचाया तो एम्स के चिकित्सकों व अन्य स्टाफ ने न केवल घर से भागे इस नाबालिग का निःशुल्क इलाज किया अपितु इसके घर सूचना भेजकर उसे माता-पिता के सुपुर्द कराने में विशेष भूमिका भी निभाई। अस्पताल से बच्चे को सकुशल घर लौटते वक्त परिजनों के चेहरे की खुशी देखते ही बनती थी। कहने लगे ’’थैंक्यू एम्स’’।

दिल्ली से हरिद्वार और हरिद्वार से एम्स अस्पताल ऋषिकेश तक के सफर की कहानी में 14 वर्षीय हिमांशु को जीवन की इस छोटी उम्र में पेश आए तमाम झंझावातों ने तोड़ कर रख दिया था। मानसिक वेदना और दिन-प्रतिदिन गहराते पैर के जख्म के कारण हिमांशु अवसादग्रस्त होने के कारण कुछ बोल पाने की स्थिति में नहीं था। बीते माह 28 मई को किसी ने इस नाबालिग को एम्स के गेट तक पहुंचाने में मदद की तो इसके पैर के घाव को देखकर सुरक्षा कर्मियों की मदद से इसे तत्काल एम्स की ट्राॅमा इमरजेंसी में भर्ती कराया गया। एक आंख जन्म से ही दृष्टिबाधित होने के कारण परेशानी यह थी कि यह बच्चा न तो ढंग से देख पा रहा था और पकड़े जाने के डर से न ही खुलकर बोल पा रहा था। आंखें बता रही थी कि वह अपनों से बिछुड़ गया है और कई दिनों से इधर-उधर भटकते रहने के कारण कुछ स्पष्ट बोलने की स्थिति में नहीं है।

इन हालातों में उसे अज्ञात पेशेंट के रूप में दर्ज कर उचित इलाज के लिए ट्राॅमा इमरजेंसी से पीडियाट्रिक सर्जरी वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया। साथ ही ट्राॅमा विभाग ने नाबालिग अज्ञात बच्चे के भर्ती होने की सूचना संस्थान के जनसंपर्क कार्यालय तक पहुंचाई। अस्वस्थता के कारण यह बच्चा गुमसुम था और किसी को कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं था, जिससे यह पता नहीं चल पा रहा था कि उसका घर कहां है और किन हालातों में वह एम्स तक पहुंचा है। इस पर विभागीय स्टाफ के माध्यम से विभिन्न स्तर से कई बार प्रयास किए गए। बच्चे से कई बार पूछने के बाद जब कुछ स्पष्ट नहीं हो पाया तो उसके कपड़े खंगाले गए। उसके कपड़ों से बरामद हुई एक पर्ची में एक फोन नम्बर पाया गया। इसी फोन नम्बर के आधार पर बच्चे के घर तक सूचना भेजी जा सकी। चिकित्सकों के अनुसार पैर में कील घुसने और समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण उसके घाव से मवाद बहने की स्थिति आ गई थी।

3 दिन तक अस्पताल में इलाज करने के बाद बीते रोज सूचना मिलने पर जब बच्चे के परिजन एम्स पहुंचे तो बच्चे को परिवार वालों के सुपुर्द कर दिया गया है। एम्स की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) मीनू सिंह ने इसे लीक से हटकर किया गया एक रचनात्मक कार्य बताया। उन्होंने सेवाभाव से किए गए इस उत्कृष्ट कार्य के लिए संबन्धित स्टाफ की प्रशंसा की।

इंसेट-

8 मई से गायब था हिमांशु

थाना बसंत कुंज, नई दिल्ली के महिपालपुर इलाके से हिमांशु 8 मई से गायब था। आर्थिक तंगी की वजह से परिवार में रोज कलह होती थी। कुछ महीनों से पिता बेरोजगार हैं। कक्षा 7 में पढ़ रही अपनी छोटी बहन को स्कूल से लेने के लिए निकला मगर, हिमांशु जब शाम ढलने तक घर नहीं लौटा तो घरवालों ने इधर-उधर तलाश करने के बाद बसंत कुंज थाने में बच्चे की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दी। उधर, हिमांशु अपने पिता की बार-बार डांट खाने और प्रताड़ित किए जाने से परेशान था। हालांकि उसने हाल ही में हाईस्कूल की परीक्षा दी है और वह प्रथम श्रेणी से पास हुआ है लेकिन परीक्षा परिणाम आने से पहले ही वह बिना बताए घर छोड़ चुका था और दिल्ली के ही एक हलवाई की दुकान पर काम करने लगा। दुकान में काम करते हुए अभी 3-4 दिन ही हुए थे कि उसके दाएं पैर की एड़ी में एक कील घुस गई। कील चुभने से जब हिमांशु काम करने लायक नहीं रहा तो दुकानदार ने बोझ समझकर उसे दिल्ली से हरिद्वार की ट्रेन में बिठा दिया। 14 साल के हिमांशु के लिए हरिद्वार नया शहर था। पैर के दर्द को सहते हुए हिमांशु ने हरिद्वार में भी कुछ दिन एक दुकान पर काम किया। बकौल हिमांशु कुछ दिन तक उसने जख्मी पैर की परवाह नहीं की और काम पर लगा रहा लेकिन जब पैर की एड़ी से मवाद बहने लगा तो दुकानदार ने हिमांशु की स्थिति भांप ली। ऐसे में दुकानदार ने एक टैम्पो…

Mankhi Ki Kalam se

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