लोकवाद्य यत्रों की थाप से सामाजिक वर्जनाओं को तोड़ती शांति अमोली बिजोंला

लोकवाद्य यत्रों की थाप से सामाजिक वर्जनाओं को तोड़ती शांति अमोली बिजोंला
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लोकवाद्य यत्रों की थाप से सामाजिक वर्जनाओं को तोड़ती शांति अमोली बिजोंला

देहरादून : दुनिया की आधा आबादी के रूप में अपना वर्चस्व को स्थापित करती महिलायें आज समाज की दूसरी पंक्ति पर नहीं बल्कि पहली पंक्ति में भी पहले स्थान पर अपने को स्थापित कर रही हैं, आज महिलायें हर क्षेत्र में अपने हुनर को ना सिर्फ बता रही हैं, बल्कि उसको साबित भी कर रही हैं। हमारे प्राचीन समाज में वाद्य यंत्रों को बजाने के लिए एक विशेष व्यक्ति द्वारा ही वाद्य यंत्रों जैसे ढोल दमों को बजाने के लिए मान्यता दी गयी थी। यदि कोई अन्य व्यक्ति विशेष के द्वारा ढोल दमो का वादन करना भी सामाजिक रूप में स्वीकार्य नहीं था, जबकि वाद्य यंत्र बजाना एक श्रेष्ठ कला है, और कला को सामाजिक वर्जनाओं में बॉधा गया था।

महिलाओं के द्वारा हल लगाना या वाद्य यंत्रों को हाथ लगाना भी सामाजिक रूप से ना तो पुरूष प्रधान समाज को स्वीकार्य था और नहीं महिलाओं को। लेकिन समय बदला और आज महिलायें भी आवश्यकतानुसार अपनी कलाओं को प्रदर्शित कर रही हैं। आज एक ऐसी ही महिला जो कि रंगकर्मी और लोक संस्कृति की पर्याय के रूप में आज वाद्य यंत्र ढोल दमो की थाप पर अपनी धमक बिखेर रही हैं, शांति अमोली बिजोंला।

मूल रूप से यमकेश्वर ताछला अमोला गॉव में जन्मी शांति अमोली बिजोंला जिनकी बेसिक शिक्षा अमोला गॉव में हुई, और उसके बाद उनकी शादी द्वारीखाल ब्लॉक के नैल रैंस गॉव में हुई है। वर्तमान में आकाशवाणी देहरादून में उद्घोषिका के साथ लोक गीतों, मॉगल गीत, गढवाली कविता, कहानी लेखन कार्य करती हैं। शांति अमोली बिंजोला द्वारा लोक संस्कृति पर आधारित अपनी दो पुस्तक प्रकाशित कर चुकी हैं, जिसमें एक गढवाली भजन की ’’भक्ति अंजवाळ’’ और दूसरी, मॉगल गीत पर आधारित ’’मॉगल लोक गीत एवं लोकाचार’’ के नाम से है। मॉगल लोक गीत एवं लोकाचार पुस्तक में हिंदू रीति रिवाजों एंव गढवाली लोक संस्कृति में विवाह संस्कार की प्रचलित विधि एवं उनका आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व पर आधारित है।

शांति अमोली बिजोंला अपनी लोक संस्कृति की लोकपरंपराओं के लिए जानी जाती है, धाद संस्था द्वारा किये जाने वाले लोक संस्कृति के कार्यक्रम और उत्सवों में शांति अमोली बिजोंला द्वारा ढोल गले में डालकर उसकी थाप से सबको आश्चर्य चकित कर देती हैं। शांति अमोली बिजांला द्वारा जिस तरह ढोल एवं दमो पर जिस कुशलता और प्रवीणता से थाप दी जाती है, वह अनुकरणीय है। उन्होंने साबित कर दिया कि कला कोई भी हो उसे सामाजिक वर्जनाओं में नहीं बॉधा जाना चाहिए बल्कि उसको सर्वव्यापी कर देना चाहिए, आज का समय कला और हुनर को प्रदर्शित करना है। आपके द्वारा कई गढवाली कवि सम्मेलनों में प्रतिभाग किया जाता है, लोक गीतों का गायन हॉरमोनियम बजाना, ढोलक और तबला पर भी अपने हुनर को प्रदर्शित करती हैं।

आप अपनी मॉगल टीम का प्रतिनिधित्व करती हैं, और विवाह एवं मुण्डन के शुभअवसरों पर अपनी टीम के साथ पारंपरिक मॉगल गीतों के सांस्कारिक गीतों के माध्यम से देव आहवान करती हैं। आपकी मॉगल टीम दूरस्थ क्षेत्रों में जाती है, और प्रोत्साहित होती हैं। इसके साथ ही आप एक कुशल नाट्य कलाकार की भूमिका में अपनी कला को प्रदर्शित करती हैं। आकाशवाणी देहरादून में ग्राम जगत की उद्घोषिका के रूप में अपनी मधुर आवाज में श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करती हैं। आप कुशल गृहणी के साथ साथ बहुमुखी प्रतिभा की व्यक्तित्व की धनी हैं।

 

 

हरीश कंडवाल मनखी की कलम से.

Mankhi Ki Kalam se

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