केदारनाथ धाम के पुराने पैदल मार्ग को फिर से पुनर्जीवित करने की उम्मीद, केंद्र सरकार ने गौरीकुंड तक के रास्ते को दी अनुमति

केदारनाथ धाम के पुराने पैदल मार्ग को फिर से पुनर्जीवित करने की उम्मीद, केंद्र सरकार ने गौरीकुंड तक के रास्ते को दी अनुमति
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रुद्रप्रयाग। केदारनाथ के पुराने पैदल मार्ग को फिर से पुनर्जीवित करने की उम्मीद जग गई है। केंद्र सरकार ने रामबाड़ा से गौरीकुंड तक रास्ते के पुनर्निर्माण के लिए प्रारंभिक स्तर पर अनुमति दे दी है। अब जल्द ही अंतिम सर्वेक्षण कर डीपीआर बनाई जाएगी। रास्ते के आबाद होने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तपस्थली गरूड़चट्टी के दिन बहुर जाएंगे।आपदा में केदारनाथ का पुराना रास्ता रामबाड़ा से धाम तक सात किमी पूरी तरह से ध्वस्त हो गया था। गरूड़चट्टी वीरान पड़ा है। बीते दस सालों में क्षेत्र में भूस्खलन का दायरा भी बढ़ा है। क्षेत्र को संरक्षित करने और पुराने रास्ते को पुनर्जीवित करने के लिए 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं केदारनाथ भ्रमण के दौरान उत्तराखंड शासन को निर्देश दिए थे।

इसके बाद तत्कालीन मुख्य सचिव उत्पल कुमार के निर्देश पर केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग, भू-गर्भ विशेषज्ञों, जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण-लोनिवि और प्रशासन द्वारा पुराने पैदल मार्ग को पुनर्जीवित करने के लिए सर्वेक्षण कर खाका तैयार किया था। योजना के तहत रास्ते को दो चरणों में बनाने की बात हुई जिसमें पहले चरण में केदारनाथ से गरूड़चट्ती तक लगभग साढ़े तीन किमी रास्ता 2019 में बनकर तैयार हो चुका है। साथ ही रास्ते को केदारनाथ मंदिर से जोड़ने के लिए मंदाकिनी नदी पर 60 मीटर स्पान का पुल भी बीते वर्ष बन चुका है। अब, दूसरे चरण में रामबाड़ा से गरूड़चट्टी तक लगभग पांच किमी रास्ते को पुनर्जीवित किया जाना है। अब, रास्ते के निर्माण को लेकर वन संपदा क्षतिपूर्ति सहित अन्य जरूरी कार्रवाई पूरी की जानी है जिसके बाद जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा अंतिम डीपीआर शासन को भेजी जानी है।

अस्सी के दशक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केदारनाथ से दो किमी पहले मंदाकिनी नदी किनारे गरूड़चट्टी में डेढ़ माह तक साधना की थी। बताते हैं कि पीएम मोदी तब, प्रत्येक दिन गरूड़चट्टी से बाबा केदार के दर्शनों के लिए केदारनाथ मंदिर पहुंचते थे। प्रधानमंत्री बनने के बाद 20 अक्तूबर 2017 को पहली बार धाम पहुंचे पीएम मोदी ने गरूट्चट्टी में बिताएं दिनों को याद किया था। संवाद

आपदा के बाद से रामबाड़ा से गरूड़चट्टी तक भूस्खलन का दायरा निरंतर बढ़ रहा है। वाडिया संस्थान से सेवानिवृत्त वैज्ञानिक डाॅ. डीपी डोभाल बताते हैं कि रामबाड़ा से गरूड़चट्टी तक विभिन्न प्रजातियों के पौधों का रोपण करना चाहिए जिनकी जड़ें मिट्टी को रोके। साथ ही इस क्षेत्र में नदी के किनारों में सुरक्षा दीवारें बनाकर भू-कटाव को रोकना होगा।
रामबाड़ा से केदारनाथ तक पुराने पैदल मार्ग को पुनर्जीवित के प्रस्ताव को केंद्र सरकार से सैद्धांतिक स्वीकृति मिल गई है। जल्द अन्य औपचारिकताएं पूरी कर डीडीएमए के माध्यम से डीपीआर शासन को भेजी जाएगी। इस रास्ते के बनने से केदारनाथ यात्रा काफी सुलभ हो जाएगी।

Mankhi Ki Kalam se

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